पाँव बढ़ाना चलते जाना – सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

0
2897
Sarveshwar dayal saxena

पाँव बढ़ाना चलते जाना – हिंदी कविता 

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

 

हँसा ज़ोर से जब, तब दुनिया
बोली इसका पेट भरा है

और फूट कर रोया जब
तब बोली नाटक है नखरा है

जब गुमसुम रह गया, लगाई
तब उसने तोहमत घमंड की
कभी नहीं वह समझी इसके
भीतर कितना दर्द भरा है

दोस्त कठिन है यहाँ किसी को भी
अपनी पीड़ा समझाना
दर्द उठे तो, सूने पथ पर
पाँव बढ़ाना, चलते जाना

Leave a Reply