22.8 C
New York
Friday, December 27, 2024
Home Blog Page 34

यह कदम्ब का पेड़ -सुभद्राकुमारी चौहान

0

यह कदम्ब का पेड़

रचनाकार: सुभद्राकुमारी चौहान

यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।

मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे।।

ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली।

किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली।।

तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता।

उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता।।

वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता।

अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता।।

बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता।

माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता।।

तुम आँचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे।

ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मीचे।।

तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता।

और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता।।

तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती।

जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं।।

इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे।

यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।।

Thanks for reading

मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है..

0

मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है..

02OCT

कुछ जिद्दी, कुछ नक्चढ़ी हो गई है
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है

अपनी हर बात अब मनवाने लगी है
हमको ही अब वो समझाने लगी है
हर दिन नई नई फरमाइशें होती है
लगता है कि फरमाइशों की झड़ी हो गई है

मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है

अगर डाँटता हूँ तो आखें दिखाती है
खुद ही गुस्सा करके रूठ जाती है
उसको मनाना बहुत मुश्किल होता है
गुस्से में कभी पटाखा कभी फुलझड़ी हो गई है

मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है

जब वो हँसती है तो मन को मोह लेती है
घर के कोने कोने मे उसकी महक होती है
कई बार उसके अजीब से सवाल भी होते हैं
बस अब तो वो जादू की छड़ी हो गई है

मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है

घर आते ही दिल उसी को पुकारता है
सपने सारे अब उसी के संवारता है
दुनियाँ में उसको अलग पहचान दिलानी है
मेरे कदम से कदम मिलाकर वो खड़ी हो गई है

मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है…

(Source: Whatsapp )

Thanks for reading

जब आप किसी से रूठ कर नफरत से बात करो

0
जब आप किसी से रूठ कर नफरत से बात करो
 और वो उसका जवाब मोहब्बत से दे 
तो समझ जाना की वो 
आपको खुद से ज्यादा प्यार करता है |
 
Thanks for reading

अपनी सोच को हमेशा ऊँचा रखे

0
 

अपनी सोच को हमेशा ऊँचा रखे 

 

एक बार एक आदमी ने देखा की एक बहुत ही गरीब बच्चा उसकी महँगी कार को काफी देर से देख रहा था ।

उसे रहम आ गया और उसने उस बच्चे को अपनी कार में बैठा लिया।

बच्चा : साहब आपकी कार बहुत ही सुन्दर है बहुत महंगी है ना।

अमीर आदमी ने गर्व से कहा, ‘‘हां, यह लाखों रुपए की है।’’

गरीब लड़का बोला, ‘‘इसे खरीदने के लिए तो आपने बहुत मेहनत की होगी?’’ आदमी हंस कर बोला : हाँ। मेरे बड़े भाई ने मुझे उपहार में दी है।
बच्चा : आपके बड़े भाई कितने अच्छे आदमी हैं।
आदमी: मुझे पता है तुम क्या सोच रहे हो। तुम भी ऐसी कार चाहते हो ना?
बच्चा: नहीं। मै भी आपके बड़े भाई जैसा बनना चाहता हूँ।

मेरे भी छोटे भाई बहन हैं ना।

“अपनी सोच को हमेशा ऊंचा रखें, दूसरों की अपेक्षाओं से भी कहीं ज्यादा ऊंचा।”

आपकी सोच ऊँची रहेगी तो आपको बड़ा बनने से कोई नहीं रोक सकता है ।हम दूसरों की महँगी चीजो को देखकर हमेशा सोचते है कि काश हमारे पास भी ऐसी चीज होती । लेकिन हम ये नहीं सोचते की इस चीज को पाने के लिए उस आदमी ने कितनी मेहनत की होगी । इस ऊपर के कहानी में उसके भाई ने भी मेहनत की होगी तभी वो अपने भाई को इतना महंगा कार गिफ्ट कर सका ।

Thanks for reading

पानी की बूंद – PANI KI BUND

0

पानी की बूंद – PANI KI BUND

 

 ”पानी की बूंद गरम तवे पर पड़ जाये तो मिट जाती है ,

 कमल के पत्ते पर गिरे तो मोती की तरह चमकने लगती  है ,

सीप में आये तो खुद मोती ही बन जाती है |

पानी की बूंद तो वही है ,बस संगत का फर्क है |

Thanks for reading

आधे अधूरे सच से बचे-प्रेरणादायक कहानी

0

आधे अधूरे सच से बचे

AADHE ADHURE SACH SE BACHE

 

एक नाविक तिन साल से एक ही जहाज पर कम कर रहा था . एक रात वह नशे में धुत हो गया |
ऐसा पहली बार हुआ था | कप्तान ने इस घटना को इस तरह दर्ज किया
“नाविक आज रत नशे में धुत था |”
नाविक ने यह बात पढ़ ली | वह जनता था की इस एक वाक्य से उसकी नौकरी पर असर पड़ेगा |
इसलिए वह कप्तान के पास गया , माफ़ी मांगी और कप्तान से कहा की उसने जो कुछ लिखा  है ,
उसमे यह भी जोड़ दे  कि ऐसा तिन साल में पहली बार हुआ है ,क्योकि यही सच्चाई है |
कप्तान ने मना कर दिया और कहा की “मैंने जो कुछ भी रजिस्टर में दर्ज किया है वही असली सच है|”
अगले दिन रजिस्टर भरने की बारी नाविक की थी |
उसने लिखा ,’आज की रात कप्तान ने शराब नहीं पी  “
कप्तान ने इसे पढ़ा ,और नाविक से कहा की इस वाक्य को वह या तो बदल दे अथवा पूरी बात लिखने के लिए
आगे कुछ और लिखे , क्योंकि जो लिखा गया था ,उससे जाहिर होता था की कप्तान हर रात शराब पिता है |
नाविक ने कप्तान से कहा जो कुछ रजिस्टर में लिखा है वही सच है |

                                                                                         VIA -YOU CAN WIN

SHIV KHEDA
========================================================================

           तो देखा दोस्तों दोनों बाते सही थी ,लेकिन दोनों से जो सन्देश मिलता है, वह एकदम भटकने वाला है | उसमे सच्चाई की कोई झलक नहीं है

दोस्तों हमारे साथ भी ऐसा होता है हम बिना पूरी बातो को जाने बगैर किसी को सही या गलत मन लेते है | जरुरी नहीं है की सामने जो दिखाई दे रहा है वही पूरा सच हो | अतः बिना पूरा सच जाने कोई भी फैसला लेने से बचे

धन्यवाद

Thanks for reading

स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण

0
11 सितंबर 1893 को शिकागो (अमेरिका) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद ने  एक बेहद चर्चित भाषण दिया था। विवेकानंद का जब भी जिक्र आता है उनके इस भाषण की चर्चा जरूर होती है। पढ़ें विवेकानंद का यह भाषण…

अमेरिका के बहनो और भाइयोआपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनियामें सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है।

मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसेदेश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है।

मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्त्राइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं,जिनके धर्म स्थलों को रोमनहमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था। और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी।

मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्मसे हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी औरअभी भी उन्हें पाल-पोस रहाहै।

भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है: जिस तरह अलग-अलग स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैंवर्तमान सम्मेलन जोकि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है,

गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है: जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उसतक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं।

सांप्रदायिकताएं , कट्टरताएं और इसके भयानक वंशज हठधमिर्ता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं।अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।

Thanks for reading