RAMNATH KOVIND BIOGRAPHY IN HINDI

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NDA's presidential nominee Ram Nath Kovind
New Delhi: NDA's presidential nominee Ram Nath Kovind arrives to attend an NDA meeting at Parliament in New Delhi on Friday. PTI Photo by Subhav Shukla (PTI6_23_2017_000151B)

रामनाथ कोविंद (RAMNATH KOVIND)

भारत के तत्कालीन  राष्ट्रपति 

(PRESIDENT OF INDIA)

केआर नारायणन के बाद दलित समुदाय से देश के दूसरे राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि एक छोटे से गांव में मिट्टी के घर में पले-बढ़े और उनकी यात्रा बहुत लंबी रही है। यह यात्रा अकेले उनकी नहीं बल्कि हमारे देश और समाज की यही गाथा रही है। कोविंद ने कहा कि सवा सौ करोड़ नागरिकों ने जो विश्वास उन पर जताया है उस पर खरा उतरने का वचन देते हैं। साथ ही डा राजेंद्र प्रसाद, डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन, एपीजे अब्दुल कलाम और अपने पूववर्ती प्रणब मुखर्जी के पदचिन्हों पर चलने का भी भरोसा देते हैं।

जानिए  रामनाथ कोविन्द जी के बारे में …

राम नाथ कोविन्द भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेताओं में से एक हैं। हैं। वह राज्यसभा सदस्य और बिहार के राज्यपाल भी रह चुके हैं। इस समय वह भारत के 14 राष्ट्रपति   हैं।

रामनाथ कोविंद का जीवन परिचय

राम नाथ कोविंद का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले की (वर्तमान में कानपुर देहात जिला), तहसील डेरापुर के एक छोटे से गांव परौंख में  1 अक्टूबर 1945 को   हुआ था. कोविंद का सम्बन्ध कोरी या कोली जाति से है जो उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति के अंतर्गत आती है.

दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस

 कानपुर विश्वविद्यालय से एलएलबी करने के बाद श्री कोविन्द ने दिल्ली हाईकोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट में करीब 16 वर्ष सन् 1993 तक वकालत की।वकील रहने के दौरान कोविंद ने गरीब दलितों के लिए मुफ़्त में क़ानूनी लड़ाई लड़ी।

संसदीय जीवन

 इनका संसदीय जीवन भी सुदीर्घ रहा। सन् 1994 में उत्तर प्रदेश से निर्वाचित होकर राज्यसभा गये और अगले बारह वर्ष, मार्च 2006 तक संसद के उच्च सदन में रहे। संयुक्त राष्ट्रसंघ में भी इन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया और अक्टूबर 2002 में संयुक्त राष्ट्र संघ को संबोधित किया। भारतीय जनता पार्टी में भी लम्बे समय तक राष्ट्रीय संगठन में प्रमुख भूमिका निभाई। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और दलित प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में अपनी पहचान इन्होंने बड़ी की। वह भाजपा दलित मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अखिल भारतीय कोली समाज अध्यक्ष भी रहे। वर्ष 1986 में दलित वर्ग के कानूनी सहायता ब्युरो के महामंत्री भी रहे।

कई कमेटियों के रह चुके है  चेयरमैन

आदिवासी, होम अफ़ेयर, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, सामाजिक न्याय, क़ानून न्याय व्यवस्था और राज्यसभा हाउस कमेटी के भी चेयरमैन रहे। कोविंद गवरनर्स ऑफ इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के भी सदस्य रहे हैं। 2002 में कोविंद ने संयुक्त राष्ट्र के महासभा को भी संबोधित किया था। इसके अलावा वो बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी रह चुके हैं।

घाटमपुर से लड़ चुके हैं लोकसभा चुनाव

कोविंद को पार्टी ने वर्ष 1990 में घाटमपुर लोकसभा सीट से टिकट दिया लेकिन वह चुनाव हार गए. वर्ष 1993 व 1999 में पार्टी ने उन्हें प्रदेश से दो बार राज्यसभा में भेजा. पार्टी के लिए दलित चेहरा बन गये कोविंद अनुसूचित मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रवक्ता भी रहे.

घाटमपुर से चुनाव लड़ने के बाद कोविंद लगातार क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं से संपर्क में रहे. राज्यसभा सदस्य के रूप में क्षेत्र के विकास में लगातार सक्रिय रहने का ही परिणाम है कि उनके राज्यपाल बनने की खबर सुनते ही लोग फोन पर बधाई देने लगे.

वर्ष 2007 में पार्टी ने उन्हें प्रदेश की राजनीति में सक्रिय करने के लिए भोगनीपुर सीट से चुनाव लड़ाया, लेकिन वह यह चुनाव भी हार गए.

आईएएस परीक्षा में तीसरे प्रयास में मिली थी सफलता

परौख गांव में 1945 में जन्मे रामनाथ कोविद की प्रारंभिक शिक्षा संदलपुर ब्लाक के ग्राम खानपुर परिषदीय प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालय हुई. कानपुर नगर के बीएनएसडी इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद डीएवी कॉलेज से बी कॉम व डीएवी लॉ कालेज से विधि स्नातक की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद दिल्ली में रहकर आईएएस की परीक्षा तीसरे प्रयास में पास की.

अाईएएस एलाइड सेवा के लिए चुने गए

मुख्य सेवा के बजाय एलायड सेवा में चयन होने पर नौकरी ठुकरा दी. जून 1975 में आपातकाल के बाद जनता पार्टी की सरकार बनने पर वे वित्त मंत्री मोरारजी देसाई के निजी सचिव रहे थे. जनता पार्टी की सरकार में सुप्रीम कोर्ट के जूनियर काउंसलर के पद पर कार्य किया.

बेदाग छवि और कानून के बड़े जानकार हैं कोविन्द

एनडीए के राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी व बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविन्द की छवि बेदाग और निष्पक्ष तथा निरपेक्ष है। कानून के वे बड़े जानकार हैं। 8 अगस्त 2015 को बिहार के राज्यपाल के रूप में उनकी नियुक्ति हुई थी और 16 अगस्त को उन्होंने पदभार संभाला था। करीब 22 महीने के कार्यकाल में इन्होंने राज्य सरकार से आदर्श और गरिमापूर्ण संबंध बनाए रखा। न सत्तापक्ष, न विपक्ष किसी की इनसे कोई शिकायत नहीं रही। गंभीर व ज्वलंत मुद्दों को भी इन्होंने बहुत ही सरल ढंग से सुलझाया। राज्यपाल के रूप में श्री कोविन्द ने एक मिसाल कायम की तथा अपनी बेहतरीन छवि बनायी।

सरकार के रचनात्मक फैसलों के साथ खड़े रहे

 बिहार के राज्यपाल के रूप में रामनाथ कोविन्द विकास के तमाम प्रयासों में राज्य सरकार के साथ खड़े रहे। उनके पद संभालने के तीन माह बाद ही बिहार में विधानसभा का शांतिपूर्ण चुनाव हुआ। उन्होंने चौथी बार मुख्यमंत्री बनने वाले नीतीश कुमार तथा उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों को गांधी मैदान में शपथ दिलायी। उसके बाद से सरकार के सभी रचनात्मक विधेयक और अध्यादेश पर अपनी मुहर लगायी। कभी सरकार तथा राजभवन के बीच गतिरोध या टकराव की स्थिति नहीं दिखी। वहीं, चांसलर के रूप में भी श्री कोविन्द ने राज्य के विश्वविद्यालयों में कई कारगर हस्तक्षेप किये, जिनमें से कई हस्तक्षेपों के परिणाम भी सामने आने लगे हैं।
’ राज्य सरकार के शराबबंदी के फैसले के साथ खड़े रहे। इसके लिए बने कानून पर मुहर लगायी। शराबबंदी को लेकर ऐतिहासिक मानव श्रृंखला की तारीफ की तथा शराबबंदी को सामाजिक परिवर्तन की दिशा में बिहार सरकार की कारगर पहल करार दिया’ राज्य सरकार के परामर्श से सर्च कमेटी की अनुशंसा पर राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपति और प्रतिकुलपतियों की नियुक्ति की ’ बिहार विश्वविद्यालय अधिनियम में संशोधन को हरी झंडी दी। इससे राज्य में दो नये पाटलिपुत्र और पूर्णिया विश्वविद्यालय की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ’ विकास पर चर्चा के लिए विधानमंडल सत्र के दौरान हर सुबह एक- एक प्रमंडल के विधायकों से मिलने की परंपरा शुरू की। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी ऐसी हर बैठक में मौजूद रहे

योगासन और घंटे भर की सैर से शुरू होती है दिनचर्या

एनडीए द्वारा राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी घोषित किए गए बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद की दिनचर्या अहले सुबह घंटेभर की सैर से शुरू होती है। फिर इतनी ही देर वह विपश्यना और योग करते हैं। इसके बाद सहज-सुलभ कोविन्द आम लोगों से मिलते हैं।सुबह दस बजे के करीब नियमित रूप से राजभवन के ऊपरी तल से नीचे दफ्तर में बैठते हैं और सात-आठ मुलाकातियों से मिलते हैं। मुलाकातियों में राजनीतिक कार्यकर्ता, विद्वान, कलाकार, कवि, साहित्यकार समेत विभिन्न सामाजिक संगठनों के लोग, जिसने भी मिलने की इच्छा जताई, आग्रह पत्र भेजा उन्हें निश्चित समय मिलता है।

राजधानी पटना समेत राज्य के हर हिस्से में अधिकाधिक कार्यक्रमों में शामिल होना उनका शगल था। कैमूर, जहानाबाद, मुंगेर, गया समेत प्राय: सभी प्रमुख शहरों के समारोहों में वे गए। विशुद्ध रूप से शाकाहारी भोजन, वह भी बिना मसाला, तेल का। चाय भी ग्रीन टी, बिना शक्कर के लेते हैं। आयोजकों को साफ निर्देश रहता था कि वे छाछ और नारियल पानी ही लेंगे। रात दस बजे सोने के लिए जाते हैं और सुबह पांच-साढ़े पांच बजे उठते हैं। पढ़ने की भी खूब आदत है। व्यक्तित्व केंद्रित किताबें उनकी टेबल पर हमेशा रहती हैं।
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