फूल और काँटा / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध

0
8499

फूल और काँटा 

रचनाकार – अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध

 ‘फूल और कांटे’ अयोध्या सिंह ‘उपाध्याय’ जी द्वारा रचित कविता है | इस कविता में कवि ने यह सन्देश देना चाहा है कि किसी का कर्म ही होता है जो उसे महानता के शिखर पर ले जाते हैं | इसमें उसका जन्म या कुल का कोई हाथ नहीं होता | इस बात को स्पष्ट करने के लिए कवि ने फूल और कांटे का चयन किया |

हैं जन्म लेते जगह में एक ही,
एक ही पौधा उन्हें है पालता
रात में उन पर चमकता चाँद भी,
एक ही सी चाँदनी है डालता।

मेह उन पर है बरसता एक सा,
एक सी उन पर हवाएँ हैं बही
पर सदा ही यह दिखाता है हमें,
ढंग उनके एक से होते नहीं।

छेदकर काँटा किसी की उंगलियाँ,
फाड़ देता है किसी का वर वसन
प्यार-डूबी तितलियों का पर कतर,
भँवर का है भेद देता श्याम तन।

फूल लेकर तितलियों को गोद में
भँवर को अपना अनूठा रस पिला,
निज सुगन्धों और निराले ढंग से
है सदा देता कली का जी खिला।

है खटकता एक सबकी आँख में
दूसरा है सोहता सुर शीश पर,
किस तरह कुल की बड़ाई काम दे
जो किसी में हो बड़प्पन की कसर।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here