दुनिया में रोज लाखो करोड़ो लोग मंदिर जाते है और पूजा अर्चना करते है | मंदिर के अन्दर लोग नंगे पैर ही जाते है और पूजा करते समय देवी देवताओ की परिक्रमा करते है | मंदिर में लगे घंटे को बजाते है और कपूर अगरबती जलाकर फुल पत्ती देवताओ को अर्पण करते है | लेकिन हम ऐसा क्यों करते है क्या आपको पता है | बहुत सारे लोग प्राचीन समय से चली आ रही परंपरा को बस निभाते जाते है | उसके पीछे का कारण बहुत सारे लोगो को नहीं पता है | प्राचीन समय में हर एक चीज के पीछे कुछ न कुछ वैज्ञानिक कारण जरुर रहता था | तो चलिए हम आपको बताते है ये कारण —–
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मंदिर का निर्माण
प्राचीन समय में मंदिर से जुड़ी प्रत्येक चीजो के पीछे कुछ न कुछ कारण होता था. मंदिर की स्थापना से लेकर उसकी संचरना तक, सारी चीज़ों के पीछे वैज्ञानिकों का दिमाग़ होता था | मंदिर के निर्माण के लिए हमेशा ऐसा जगह चुना जाता था जहाँ से अधिक से अधिक सकारात्मक उर्जा मिल सके | एक ऐसा स्थान जहाँ उत्तरी ओर से सकारात्मक रूप से चुम्बकीय और विद्युत् तरंगो का प्रवाह हो | अक्सर ऐसे ही स्थानों पर मंदिर का निर्माण करवाया जाता था , ताकि लोगो के शरीर में अधिकतम सकारात्मक उर्जा मिल सके | पर आजकल के मंदिरों के निर्माण में ये सारी बाते बहुत कम ध्यान में राखी जाती है |
मंदिर के शिखर पर कलश का वैज्ञानिक कारण
मंदिर का कलश पिरामिड की आकृति का होता है, जो ब्रम्हांडीय ऊर्जा तरंगों को अवशोषित करके नीचे बैठने वालों को लाभ पहुंचाता है | .और मंदिर में भगवान की मूर्ति को उसके निचे यानि गर्भ गृह के बिलकुल बिच में रखा जाता है ताकि कोई भी भगवान का दर्शन करे तो उसके शरीर को अधिक से अधिक उर्जा प्राप्त हो सके | बहुत सारे संत लोग अपने शारीर पर बहुत कम वस्त्र धारण किये हुए रहते थे ताकि उनको अधिक से अधिक सकारात्मक उर्जा मिल सके | मंदिर को तीन तरफ़ से बंद रखने का सबसे बड़ा कारण है कि इससे ऊर्जा का असर ज़्यादा बढ़ता है.
मंदिर के अन्दर नंगे पैर प्रवेश करने का वैज्ञानिक कारण
क्या आपने कभी सोचा है की हम मंदिर में नंगे पैर ही क्यों प्रवेश करते है | बहुत सरे लोग तर्क देते है की मंदिर पवित्र जगह है गन्दा नहीं हो इसलिए | लेकिन इसके पीछे भी वैज्ञानिक कारण है | दरअसल प्राचीन समय में मंदिर के फर्शो का निर्माण इस प्रकार कराया जाता था की इससे इलेक्ट्रिक और मैग्नेटिक तरंगे उत्पन्न हो सके | जिससे जब भी कोई नंगे पैर फर्श पर चले तो उसके पैरो के माध्यम से अधिकतम उर्जा उसके शारीर में प्रवेश कर सके | मंदिरों में साफ़-सफ़ाई का ध्यान भी इसलिए रखा जाता है कि गंदगी के माध्यम से नकारात्मक उर्जा मंदिर के अंदर प्रवेश न हो सके|
मंदिर के प्रवेश द्वार पर घंटा टांगने का वैज्ञानिक कारण
जब भी हम मंदिर में प्रवेश करते है मंदिर के प्रवेश द्वार पर घंटा टंगा रहता है जिसे हर कोई बजाकर ही अन्दर जाता है | बहुत सारे लोगो को इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण नहीं मालूम है | दरअसल घंटा को बजाने से इससे निकलने वाली आवाज और तरंगे हमारी सतो इन्द्रियों को जागृत कर देता है | जिससे व्यक्ति की सारी समस्याए ख़त्म हो जाती है |
मंदिर में धुप अगरबत्ती जलाने का वैज्ञानिक कारण
मंदिर में लोग पूजा करते समय धुप अगरबत्ती और कपूर जलाते है | इससे वातावरण हमेशा सुगन्धित रहता है और वातावरण में उपस्थित बक्टेरिया और वायरस मर जाते है | आपने देखा होगा की मंदिर में मिलने वाले चरणामृत में तुलसी के पत्ते मिले रहते है और मंदिर का चैम्बर हमेशा कपूर की सुगंध से महकता रहता है | ऐसा माना जाता है की ये दोनों चीजे सर्दी खांसी जैसी बिमारियों से लड़ने में सहायक होती है |
दीपक के ऊपर हाथ घुमाने का वैज्ञानिक कारण
आरती के बाद सभी लोग दिए पर या कपूर के ऊपर हाथ रखते हैं और उसके बाद सिर से लगाते हैं और आंखों पर स्पर्श करते हैं। ऐसा करने से हल्के गर्म हाथों से दृष्टि इंद्री सक्रिय हो जाती है और बेहतर महसूस होता है।मंदिर में माथे पर लगने वाला कुमकुम का टिका मानव शारीर में उर्जा और एकाग्रता के स्तर को बनाये रखता है |
मंदिर का परिक्रमा करने के पीछे धार्मिक कारण
लगभग हर मंदिर में भगवान की पूजा और दर्शन करने के बाद परिक्रमा करने का नियम होता है | शास्त्र में बताया गया है भगवान की परिक्रमा से अक्षय पुण्य मिलता है और पाप नष्ट होते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार जब गणेश और कार्तिक के बीच संसार का चक्कर लगाने की प्रतिस्पर्धा चल रही थी तब गणेश जी ने अपनी चतुराई से पिता शिव और माता पार्वती के तीन चक्कर लगाए थे। इसी वजह से लोग भी पूजा के बाद संसार के निर्माता के चक्कर लगाते हैं। उनके अनुसार ऐसा करने से धन-समृद्धि होती हैं और जीवन में खुशियां बनी रहती हैं।
मंदिर का परिक्रमा करने का वैज्ञानिक कारण
इस परंपरा के पीछे धार्मिक महत्व के साथ ही वैज्ञानिक महत्व भी है। जिन मंदिरों में पूरे विधि-विधान के साथ देवी-देवताओं की मूर्ति स्थापित की जाती है, वहां मूर्ति के आसपास दिव्य शक्ति हमेशा सक्रिय रहती है। वैज्ञानिक भी मानते है की एक धार्मिक स्थल अपने भीतर कुछ ऊर्जा से लैस रहती है है, यह ऊर्जा मंत्रों एवं धार्मिक उपदेशों के उच्चारण से उत्पन्न होती है। मूर्ति की परिक्रमा करने से वो उर्जा हमें मिलती है । इस ऊर्जा से मन शांत होता है। जिस दिशा में घड़ी की सुई घुमती है, उसी दिशा में परिक्रमा करनी चाहिए।
परिक्रमा करते समय ध्यान रखनी चाहिए ये बातें
जिस देवी-देवता की परिक्रमा की जा रही है, उनके मंत्रों का जप करना चाहिए। भगवान की परिक्रमा करते समय मन में बुराई, क्रोध, तनाव जैसे भाव नहीं होना चाहिए। परिक्रमा नंगे पैर ही करना चाहिए। परिक्रमा करते समय बातें नहीं करना चाहिए। शांत मन से परिक्रमा करें। परिक्रमा करते समय तुलसी, रुद्राक्ष आदि की माला पहनेंगे तो बहुत शुभ रहता है।