45 साल का हुआ रोहतास -जानिए रोहतासगढ़ किले का इतिहास

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 45 साल का रोहतास खुले में शौच से मुक्त बना 

रोहतास बस एक जिले का नाम  नहीं बल्कि खुद अपने आप में एक इतिहास  है, जो बिहार में आर्यो के प्रसार के साथ पड़ा। सूर्यवंशी राजा हरिशचन्द्र के पुत्र रोहिताश्व द्वारा स्थापित ‘रोहतास गढ़’ के नाम पर इस क्षेत्र का नाम रोहतास पड़ा। मुगल बादशाह अकबर के शासन काल 1582 में ‘रोहतास सरकार’ थी, जिसमें सात परगना शामिल थे। 1784 ई. में तीन परगना को मिलाकर रोहतास जिला बना। इसके बाद यह शाहाबाद का अंग बना और 10 नवम्बर 1972 से रोहतास जिला कायम है। आज रोहतास जिला के  45 वर्ष पुरे  हो गये  है और यह  46 वें वर्ष में प्रवेश कर गया है | इस वर्ष  रोहतास एक और नया इतिहास रचने वाला है। क्योंकि बहुत जल्द ही रोहतास पूरे सूबे में खुले में शौच से मुक्त जिला बनने का गौरव हासिल करने वाला है। 10 नवम्बर को इसकी अधिकारिक घोषणा होगी जिसके गवाह मुख्यमंत्री, मंत्री, जन प्रतिनिधि व केंद्र तथा राज्य सरकार के कई आला अधिकारी बनने वाले हैं।
इस अवसर पर हम आपको बताने जा रहे है रोहतासगढ़ के किले का इतिहास जिसे बहुत कम लोग ही जानते है 

रोहतासगढ़ किले के कभी स्वामी थे उराँव 

सोन नदी के तट पर सीधी खडी कैमूर पर्वतमाला के रोहतास पहाड़ के ऊपर निर्मित था उराँव का किला रोहतासगढ़ | दुर्गम ,दुर्जेय और दुसाध्य रोहतास के इस किले के कभी स्वामी थे उरांव | सहसराम (वर्तमान सासाराम) के पठान हसन सुर के बेटे फरीद खान की महत्वकांक्षा थी दिल्ली का ताज हासिल करना | अफगान पिता और कायमखानी राजपूतानी माँ का पुत्र फरीद खान का विजयरथ चल पड़ा और अब उसे शेरखान के नाम से जाना जाने लगा | दिल्ली की और कुच करने से पहले शेरखान अपनी जड़ो को मजबूत करना चाहता था | दूरदर्शी शेरशाह  सूरी अपने घर के आसपास की भूमि पर कब्ज़ा जमाना चाहता था ताकि उसकी अनुपस्थिति में सहसराम से सटा कोई राजा या कबीला उसका लाभ न उठा सके |

रोहतासगढ़ पर गयी शेरशाह की नजर 

शेरशाह का ध्यान उरांवो के किले रोहतासगढ़ पर टिक गयी | जब पठानों ने रोहतासगढ़ पर चढ़ाई की तो उस समय उराँव सरहुल का त्यौहार मानाने में व्यस्त थे | वैसे तो उराँव के लड़ाके युवक पराक्रम या शौर्य में पठानों से कम नहीं ठहरते थे पर पूजा के बाद हँड़िया पिने और नाचने गाने के बाद किले के भीतर इधर उधर लुढके पड़े थे | हठी पठानों ने जब रोहतास दुर्ग को घेर लिया तो  उरांव स्त्रियाँ चौकन्नी हो गयी  | स्त्रियों ने सहस संजोया और तिन महिला दस्ते गठित किये |

उरांव की महिलाओ ने संभाला मोर्चा 

उरांव की स्त्रियों ने माथे पर पगड़ी बंधी और दुधमुहे बच्चे को चादर में लपेटकर शत्रुओ से लोहा लेने लगी |पठान पर्वत की दुर्गम चढ़ाई चढ़कर जब किले के मुख्य फाटक तक पहुंचे तो किले के ऊपर से तिरो की वर्षा होने लगी | अचंभित पठानों के पैर उखाड़ने लगे और उन्हें पीछे हटना पड़ा | उरांव स्त्रियों के प्रबल प्रतिरोध ने पठानों को किले की प्राचीरो के आसपास भी फटकने नहीं दिया | शेरशाह सूरी के पठानी सैनिक लज्जित और निराश हो गए | जिनकी आँखों में दिल्ली सल्तनत के सपने थे वे घर के पिछवाड़े में मुट्ठी भर वनवासी वीरांगनाओ के आगे नतमस्तक थे |अभेद्य रोहतासगढ़ पर पताका फहराने की लालसा सूखने लगी |

घर का भेदी लंका ढाहे

लेकिन कहते है न घर का भेदी लंका ढाहे | पठानों को नित्य दूध दही पहुचने वाली लुन्दारी ग्वालिन पर नजर पड़ी | लुन्दारी के पति को किलेदार बना देने का प्रलोभन देने पर लुन्दारी ने बता दिया की सारा मोर्चा स्त्रियों ने संभाल रखा है | पठान सैनिको ने  अपना खोया आत्मविश्वास पा लिया | दिल्ली विजय का सपना संजोये शेरशाह के लिए चूड़ी बिंदी धारण करने वाली महिलाओ से हार कर लौटना असंभव था |

भेद पाकर ही अन्दर घुस पाए पठान 

पठानों ने लुन्दारी से प्राप्त सूचनाओ के अनुसार सुरक्षित पगडंडियों का अनुसरण करते हुए रोहतासगढ़ किले पर आक्रमण किया |अचानक किले के पीछे, दाए ,बाये से एकदम निकट प्रकट हुयी पठानों की सशस्त्र टुकडियो को देखकर उरांव की सरदारन हताश हो गयी | अब किले की रक्षा करना उनके वश में नहीं रह गया | निश्चित पराजय उनके सामने मुह बाये खडी  थी | अब उनकी प्राथमिकता  थी उराँव के वंशजो की रक्षा करना | जुझारू स्त्रियों की एक टोली पहले की भांति पठानों पर तीर और पत्थर चला रही थी और शेष स्त्रियाँ अपने बच्चो को गुप्त रस्ते से लेकर किले से बाहर निकल रही थी |

रोहतासगढ़ पर हुआ शेरशाह का कब्ज़ा 

पठानों ने उरांवो का पीछा नहीं किया क्योंकि  उनका लक्ष्य रोहतासगढ़ पर कब्ज़ा करना था जो अब उनके पास था | बिना रक्तपात के मिली विजय के उल्लास में सैनिक किले के फाटक को ध्वस्त कर किले में प्रविष्ट हुए |पहाड़ के पांव तले मौन बह रहा सोन नदी इस जय पराजय का साक्षी था |

अपनी ही तोप  फटने के कारण  मरा शेरशाह 

शेरशाह सूरी दिल्ली के बादशाह हुमायूँ को पराजित कर दिल्ली के सिंहासन पर बैठ तो गया परन्तु कालिंजर के किले पर उसके भाग्य ने दगा दे दिया | अपनी ही तोप  फट पड़ी | शेरशाह सूरी की जीवनयात्रा थम गयी परन्तु उसकी राज्यलिप्सा ने उरांवो को बेघर कर डाला |

जनिशिकार पर्व 

रोहतासगढ़ किले की लड़ाई में सहीद तिन सरदरिन सिनगी देई ,कईली देई ,और चम्पू देई  की स्मृति में उरांव की स्त्रियों ने गोदने की तिन बिंदिया धारण करने की परम्परा डाली | रोहतासगढ़ की पराजय के प्रतिकार का पर्व मनाया जाने लगा | प्रतिक पर्व जनिशिकार | अब आखेट पर्व जनिशिकार |

ओरे छू गंगा ,पारे छू जमुना ,धीरे धीरे तुरका अवै रे

हाथा में तरवारे ,खांदा में बंदुका ,धीरे धीरे तुरका आंवे रे

गाछा केरा मैना लियो झोरा कान्दाय

नदी तीरे तीरे घोड़ा दाडय रे

45 सालो का हुआ रोहतास 


25 फरवरी 1702 को वजीर खां के पुत्र अब्दुल कादिर को रोहतास का किलेदार नियुक्त किया गया। उसी समय रोहतास का किला अवांछित तत्वों के काम आने लगा। 1764 ई. में मीर कासिम को बक्सर युद्ध में अंग्रेजों से पराजय के बाद यह क्षेत्र अंग्रेजों के हाथ आ गया। 1774 ई. में अंग्रेज कप्तान थामस गोडार्ड ने रोहतास गढ़ को अपने कब्जे में लिया और उसे तहस-नहस किया।  अकबर के समय से चली आ रही रोहतास सरकार में औरंगजेब ने कई परिवर्तन कर सातों परगना को पुनगर्ठित किया। शाहाबाद गजेटियर में पुन: 1784 में रोहतास जिला स्थापित होने का उल्लेख है। उसके अनुसार रोहतास, सासाराम व चैनपुर परगनों को मिलाकर जिला बनाया गया। 


वैदिक काल में भी है रोहतास का महत्त्व 

वैदिक काल में भी रोहतास का अपना विशिष्ट स्थान रहने का प्रमाण पुराणों में प्राप्त हुए हैं। ब्रह्मांड पुराण-4/29 में इस क्षेत्र को कारुष प्रदेश कहा गया है।- ‘काशीत: प्राग्दिग्भागे प्रत्यक शोणनदादपि। जाह्वी विन्ध्योर्मध्ये देश: कारुष: स्मृत:।।’ महाभारत काल में कारुष राजा था। महाजनपद युग से लेकर परावर्ती गुप्तकाल तक यह क्षेत्र मगध और काशी के बीच रहा। भगवान बुद्ध उसवेला यानी बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के बाद रोहितवस्तु यानी रोहतास राज्य होते हुए ही ऋषिपत्तन अर्थात सारनाथ गए थे।

कई ऐतिहासिक धरोहर है रोहतास में 

यह क्षेत्र मौर्यकाल में भी प्रसिद्ध रहा है। तभी तो सम्राट अशोक ने सासाराम के निकट चंदतन शहीद पहाड़ी पर अपना लघु शिलालेख लिखवाया। सातवीं सदी में रोहतास गढ़ का राज्य थानेश्वर का राजा और हर्षवर्द्धन को मार डालने वाले गौड़ाधीप शशांक के हाथों में था। जिसके मुहर व सांचा उत्क्रीर्णन में प्राप्त हुए हैं। 12वीं सदी में भी यह राज्य ख्यारवालों यानी खरवालों (खरवारों) के हाथ में गया। इसी सदी के प्रतापी राजा प्रताप धवल देव के तुतला भवानी, ताराचंडी, रोहतास गढ़ की फुलवारी में स्थित शिलालेख इसके आज भी प्राचीनता की गाथा के मिसाल हैं।
Note – रोहतासगढ़ किले का तथ्य राकेश कुमार सिंह की लिखी पुस्तक “जो इतिहास में नहीं है” से ली गयी है

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