गुनाहों के देवता – धर्मवीर भारती
भाग 2
सिविल लाइन्स के एक उजाड़ हिस्से में एक पुराने-से बँगले के सामने आकर मोटर रुकी। बँगले का नाम था ‘रोजलान’ लेकिन सामने के कम्पाउंड में जंगली घास उग रही थी और गुलाब के फूलों के बजाय अहाते में मुरगी के पंख बिखरे पड़े थे। रास्ते पर भी घास उग आयी थी और और फाटक पर, जिसके एक खम्भे की कॉर्निस टूट चुकी थी, बजाय लोहे के दरवाजे के दो आड़े बाँस लगे हुए थे। फाटक के एक ओर एक छोटा-सा लकड़ी का नामपटल लगा था, जो कभी काला रहा होगा, लेकिन जिसे धूल, बरसात और हवा ने चितकबरा बना दिया था। चन्दर मोटर से उतरकर उस बोर्ड पर लिखे हुए अधमिटे सफेद अक्षरों को पढऩे की कोशिश करने लगा, और जाने किसका मुँह देखकर सुबह उठा था कि उसे सफलता भी मिल गयी। उस पर लिखा था, ‘ए. एफ. डिक्रूज’। उसने जेब से लिफाफा निकाला और पता मिलाया। लिफाफे पर लिखा था, ‘मिस पी. डिक्रूज’। यही बँगला है, उसे सन्तोष हुआ।
”हॉर्न दो!” उसने ड्राइवर से कहा। ड्राइवर ने हॉर्न दिया। लेकिन किसी का बाहर आना तो दूर, एक मुरगा, जो अहाते में कुडक़ुड़ा रहा था, उसने मुडक़र बड़े सन्देह और त्रास से चन्दर की ओर देखा और उसके बाद पंख फडफ़ड़ाते हुए, चीखते हुए जान छोडक़र भागा। ”बड़ा मनहूस बँगला है, यहाँ आदमी रहते हैं या प्रेत?” कपूर ने ऊबकर कहा और ड्राइवर से बोला, ”जाओ तुम, हम अन्दर जाकर देखते हैं!”
”अच्छा हुजूर, सुधा बीबी से क्या कह देंगे?”
”कह देना, पहुँचा दिया।”
कार मुड़ी और कपूर बाँस फाँदकर अन्दर घुसा। आगे का पोर्टिको खाली पड़ा था और नीचे की जमीन ऐसी थी जैसे कई साल से उस बँगले में कोई सवारी गाड़ी न आयी हो। वह बरामदे में गया। दरवाजे बन्द थे और उन पर धूल जमी थी। एक जगह चौखट और दरवाजे के बीच में मकड़ी ने जाला बुन रखा था। ‘यह बँगला खाली है क्या?’ कपूर ने सोचा। सुबह साढ़े आठ बजे ही वहाँ ऐसा सन्नाटा छाया था कि दिल घबरा जाय। आस-पास चारों ओर आधी फर्लांग तक कोई बँगला नहीं था। उसने सोचा बँगले के पीछे की ओर शायद नौकरों की झोंपडिय़ाँ हों। वह दायें बाजू से मुड़ा और खुशबू का एक तेज झोंका उसे चूमता हुआ निकल गया। ‘ताज्जुब है, यह सन्नाटा, यह मनहूसी और इतनी खुशबू!’ कपूर ने कहा और आगे बढ़ा तो देखा कि बँगले के पिछवाड़े गुलाब का एक बहुत खूबसूरत बाग है। कच्ची रविशें और बड़े-बड़े गुलाब, हर रंग के। वह सचमुच ‘रोजलान’ था।
वह बाग में पहुँचा। उधर से भी बँगले के दरवाजे बन्द थे। उसने खटखटाया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। वह बाग में घुसा कि शायद कोई माली काम कर रहा हो। बीच-बीच में ऊँचे-ऊँचे जंगली चमेली के झाड़ थे और कहीं-कहीं लोहे की छड़ों के कटघरे। बेगमबेलिया भी फूल रही थी लेकिन चारों ओर एक अजब-सा सन्नाटा था और हर फूल पर किसी खामोशी के फरिश्ते की छाँह थी। फूलों में रंग था, हवा में ताजगी थी, पेड़ों में हरियाली थी, झोंकों में खुशबू थी, लेकिन फिर भी सारा बाग एक ऐसे सितारों का गुलदस्ता लग रहा था जिनकी चमक, जिनकी रोशनी और जिनकी ऊँचाई लुट चुकी हो। लगता था जैसे बाग का मालिक मौसमी रंगीनी भूल चुका हो, क्योंकि नैस्टर्शियम या स्वीटपी या फ्लाक्स, कोई भी मौसमी फूल न था, सिर्फ गुलाब थे और जंगली चमेली थी और बेगमबेलिया थी जो सालों पहले बोये गये थे। उसके बाद उन्हीं की काट-छाँट पर बाग चल रहा था। बागबानी में कोई नवीनता और मौसम का उल्लास न था।
चन्दर फूलों का बेहद शौकीन था। सुबह घूमने के लिए उसने दरिया किनारे के बजाय अल्फ्रेड पार्क चुना था क्योंकि पानी की लहरों के बजाय उसे फूलों के बाग के रंग और सौरभ की लहरों से बेहद प्यार था। और उसे दूसरा शौक था कि फूलों के पौधों के पास से गुजरते हुए हर फूल को समझने की कोशिश करना। अपनी नाजुक टहनियों पर हँसते-मुसकराते हुए ये फूल जैसे अपने रंगों की बोली में आदमी से जिंदगी का जाने कौन-सा राज कहना चाहते हैं। और ऐसा लगता है कि जैसे हर फूल के पास अपना व्यक्तिगत सन्देश है जिसे वह अपने दिल की पाँखुरियों में आहिस्ते से सहेज कर रखे हुए हैं कि कोई सुनने वाला मिले और वह अपनी दास्ताँ कह जाए। पौधे की ऊपरी फुनगी पर मुसकराता हुआ आसमान की तरफ मुँह किये हुए यह गुलाब जो रात-भर सितारों की मुसकराहट चुपचाप पीता रहा है, यह अपने मोतियों-पाँखुरियों के होठों से जाने क्यों खिलखिलाता ही जा रहा है। जाने इसे कौन-सा रहस्य मिल गया है। और वह एक नीचे वाली टहनी में आधा झुका हुआ गुलाब, झुकी हुई पलकों-सी पाँखुरियाँ और दोहरे मखमली तार-सी उसकी डंडी, यह गुलाब जाने क्यों उदास है? और यह दुबली-पतली लम्बी-सी नाजुक कली जो बहुत सावधानी से हरा आँचल लपेटे है और प्रथम ज्ञात-यौवना की तरह लाज में जो सिमटी तो सिमटी ही चली जा रही है, लेकिन जिसके यौवन की गुलाबी लपटें सात हरे परदों में से झलकी ही पड़ती हैं, झलकी ही पड़ती हैं। और फारस के शाहजादे जैसा शान से खिला हुआ पीला गुलाब! उस पीले गुलाब के पास आकर चन्दर रुक गया और झुककर देखने लगा। कातिक पूनो के चाँद से झरने वाले अमृत को पीने के लिए व्याकुल किसी सुकुमार, भावुक परी की फैली हुई अंजलि के बराबर बड़ा-सा वह फूल जैसे रोशनी बिखेर रहा था। बेगमबेलिया के कुंज से छनकर आनेवाली तोतापंखी धूप ने जैसे उस पर धान-पान की तरह खुशनुमा हरियाली बिखेर दी थी। चन्दर ने सोचा, उसे तोड़ लें लेकिन हिम्मत न पड़ी। वह झुका कि उसे सूँघ ही लें। सूँघने के इरादे से उसने हाथ बढ़ाया ही था कि किसी ने पीछे से गरजकर कहा, ”हीयर यू आर, आई हैव काट रेड-हैण्डेड टुडे!” (यह तुम हो; आज तुम्हें मौके पर पकड़ पाया हूँ)
और उसके बाद किसी ने अपने दोनों हाथों में जकड़ लिया और उसकी गरदन पर सवार हो गया। वह उछल पड़ा और अपने को छुड़ाने की कोशिश करने लगा। पहले तो वह कुछ समझ नहीं पाया। अजब रहस्यमय है यह बँगला। एक अव्यक्त भय और एक सिहरन में उसके हाथ-पाँव ढीले हो गये। लेकिन उसने हिम्मत करके अपना एक हाथ छुड़ा लिया और मुडक़र देखा तो एक बहुत कमजोर, बीमार-सा, पीली आँखों वाला गोरा उसे पकड़े हुए था। चन्दर के दूसरे हाथ को फिर पकडऩे की कोशिश करता हुआ वह हाँफता हुआ बोला (अँग्रेजी में), ”रोज-रोज यहाँ से फूल गायब होते थे। मैं कहता था, कहता था, कौन ले जाता है। हो…हो…,” वह हाँफता जा रहा था, ”आज मैंने पकड़ा तुम्हें। रोज चुपके से चले जाते थे…” वह चन्दर को कसकर पकड़े था लेकिन उस बीमार गोरे की साँस जैसे छूटी जा रही थी। चन्दर ने उसे झटका देकर धकेल दिया और डाँटकर बोला, ”क्या मतलब है तुम्हारा! पागल है क्या! खबरदार जो हाथ बढ़ाया, अभी ढेर कर दूँगा तुझे! गोरा सुअर!” और उसने अपनी आस्तीनें चढ़ायीं।
वह धक्के से गिर गया था, धूल झाड़ते उठ बैठा और बड़ी ही रोनी आवाज में बोला, ”कितना जुल्म है, कितना जुल्म है! मेरे फूल भी तुम चुरा ले गये और मुझे इतना हक भी नहीं कि तुम्हें धमकाऊँ! अब तुम मुझसे लड़ोगे! तुम जवान हो, मैं बूढ़ा हूँ। हाय रे मैं!” और सचमुच वह जैसे रोने लगा हो।
चन्दर ने उसका रोना देखा और उसका सारा गुस्सा हवा हो गया और हँसी रोककर बोला, ”गलतफहमी है, जनाब! मैं बहुत दूर रहता हूँ। मैं चिठ्ठी लेकर मिस डिक्रूज से मिलने आया था।”
उसका रोना नहीं रुका, ”तुम बहाना बनाते हो, बहाना बनाते हो और अगर मैं विश्वास नहीं करता तो तुम मारने की धमकी देते हो? अगर मैं कमजोर न होता…तो तुम्हें पीसकर खा जाता और तुम्हारी खोपड़ी कुचलकर फेंक देता जैसे तुमने मेरे फूल फेंके होंगे?”
”फिर तुमने गाली दी! मैं उठाकर तुम्हें अभी नाले में फेंक दूँगा!”
”अरे बाप रे! दौड़ो, दौड़ो, मुझे मार डाला…पॉपी…टॉमी…अरे दोनों कुत्ते मर गये…।” उसने डर के मारे चीखना शुरू किया।
”क्या है, बर्टी? क्यों चिल्ला रहे हो?” बाथरूम के अन्दर से किसी ने चिल्लाकर कहा।
”अरे मार डाला इसने…दौड़ो-दौड़ो!”
झटके से बाथरूम का दरवाजा खुला बेदिङ्-गाउन पहने हुए एक लड़की दौड़ती हुई आयी और चन्दर को देखकर रुक गयी।
”क्या है?” उसने डाँटकर पूछा।
”कुछ नहीं, शायद पागल मालूम देता है!”
”जबान सँभालकर बोलो, वह मेरा भाई है!”
”ओह! कोई भी हो। मैं मिस डिक्रूज से मिलने आया था। मैंने आवाज दी तो कोई नहीं बोला। मैं बाग में घूमने लगा। इतने में इसने मेरी गरदन पकड़ ली। यह बीमार और कमजोर है वरना अभी गरदन दबा देता।”
गोरा उस लड़की के आते ही फिर तनकर खड़ा हो गया और दाँत पीसकर बोला, ”अरे मैं तुम्हारे दाँत तोड़ दूँगा। बदमाश कहीं का, चुपके-चुपके आया और गुलाब तोडऩे लगा। मैं चमेली के झाड़ के पीछे छिपा देख रहा था।”
”अभी मैं पुलिस बुलाती हूँ, तुम देखते रहो बर्टी इसे। मैं फोन करती हूँ।”
लड़की ने डाँटते हुए कहा।
”अरे भाई, मैं मिस डिक्रूज से मिलने आया हूँ।”
”मैं तुम्हें नहीं जानती, झूठा कहीं का। मैं मिस डिक्रूज हूँ।”
”देखिए तो यह खत!”
लड़की ने खत खोला और पढ़ा और एकदम उसने आवाज बदल दी।
”छिह बर्टी, तुम किसी दिन पागलखाने जाओगे। आपको डॉ. शुक्ला ने भेजा है। तुम तो मुझे बदनाम करा डालोगे!”
उसकी शक्ल और भी रोनी हो गयी , ”मैं नहीं जानता था, मैं जानता नहीं था।” उसने और भी घबराकर कहा।
”माफ कीजिएगा!” लड़की ने बड़े मीठे स्वर में साफ हिन्दुस्तानी में कहा, ”मेरे भाई का दिमाग ज़रा ठीक नहीं रहता, जब से इनकी पत्नी की मौत हो गयी।”
”इसका मतलब ये नहीं कि ये किसी भले आदमी की इज्जत उतार लें।” चन्दर ने बिगडक़र कहा।
”देखिए, बुरा मत मानिए। मैं इनकी ओर से माफी माँगती हूँ। आइए, अन्दर चलिए।” उसने चन्दर का हाथ पकड़ लिया। उसका हाथ बेहद ठण्डा था। वह नहाकर आ रही थी। उसके हाथ के उस तुषार स्पर्श से चन्दर सिहर उठा और उसने हाथ झटककर कहा, ”अफसोस, आपका हाथ तो बर्फ है?”
लड़की चौंक गयी। वह सद्य:स्नाता सहसा सचेत हो गयी और बोली, ”अरे शैतान तुम्हें ले जाए, बर्टी! तुम्हारे पीछे मैं बेदिङ् गाउन में भाग आयी।” और बेदिङ् गाउन के दोनों कालर पकडक़र उसने अपनी खुली गरदन ढँकने का प्रयास किया और फिर अपनी पोशाक पर लज्जित होकर भागी।
अभी तक गुस्से के मारे चन्दर ने उस पर ध्यान ही नहीं दिया था। लेकिन उसने देखा कि वह तेईस बरस की दुबली-पतली तरुणी है। लहराता हुआ बदन, गले तक कटे हुए बाल। एंग्लो-इंडियन होने के बावजूद गोरी नहीं है। चाय की तरह वह हल्की, पतली, भूरी और तुर्श थी। भागते वक्त ऐसी लग रही थी जैसे छलकती हुई चाय।
इतने में वह गोरा उठा और चन्दर का कन्धा छूकर बोला, ”माफ करना, भाई! उससे मेरी शिकायत मत करना। असल में ये गुलाब मेरी मृत पत्नी की यादगार हैं। जब इनका पहला पेड़ आया था तब मैं इतना ही जवान था जितने तुम, और मेरी पत्नी उतनी ही अच्छी थी जितनी पम्मी।”
”कौन पम्मी?”
”यह मेरी बहन प्रमिला डिक्रूज!”
”ओह! कब मरी आपकी पत्नी?ï माफ कीजिएगा मुझे भी मालूम नहीं था!”
”हाँ, मैं बड़ा अभागा हूँ। मेरा दिमाग कुछ खराब है; देखिए!” कहकर उसने झुककर अपनी खोपड़ी चन्दर के सामने कर दी और बहुत गिड़गिड़ाकर बोला, ”पता नहीं कौन मेरे फूल चुरा ले जाता है! अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद पाँच साल से मैं इन फूलों को सँभाल रहा हूँ। हाय रे मैं! जाइए, पम्मी बुला रही है।”
पिछवाड़े के सहन का बीच का दरवाजा खुल गया था और पम्मी कपड़े पहनकर बाहर झाँक रही थी। चन्दर आगे बढ़ा और गोरा मुडक़र अपने गुलाब और चमेली की झाड़ी में खो गया। चन्दर गया और कमरे में पड़े हुए एक सोफा पर बैठ गया। पम्मी ट्वायलेट कर चुकी थी और एक हल्की फ्रान्सीसी खुशबू से महक रही थी। शैम्पू से धुले हुए रूखे बाल जो मचले पड़ रहे थे, खुशनुमा आसमानी रंग का एक पतला चिपका हुआ झीना ब्लाउज और ब्लाउज पर एक फ्लैनेल का फुलपैंट जिसके दो गेलिस कमर, छाती और कन्धे पर चिपके हुए थे। होठों पर एक हल्की लिपस्टिक की झलक मात्र थी, और गले तक बहुत हल्का पाउडर, जो बहुत नजदीक से ही मालूम होता था। लम्बे नाखूनों पर हल्की गुलाबी पैंट। वह आयी, निस्संकोच भाव से उसी सोफे पर कपूर के बगल में बैठ गयी और बड़ी मुलायम आवाज में बोली, ”मुझे बड़ा दु:ख है, मिस्टर कपूर! आपको बहुत तवालत उठानी पड़ी। चोट तो नहीं आयी?”
”नहीं, नहीं, कोई बात नहीं!” कपूर का सारा गुस्सा हवा हो गया। कोई भी लड़की नि:संकोच भाव से, इतनी अपनायत से सहानुभूति दिखाये और माफी माँगे, तो उसके सामने कौन पानी-पानी नहीं हो जाएगा, और फिर वह भी तब जबकि उसके होठों पर न केवल बोली अच्छी लगती हो, वरन लिपस्टिक भी इतनी प्यारी हो। लेकिन चन्दर की एक आदत थी। और चाहे कुछ न हो, कम-से-कम वह यह अच्छी तरह जानता था कि नारी जाति से व्यवहार करते समय कहाँ पर कितनी ढील देनी चाहिए, कितना कसना चाहिए, कब सहानुभूति से उन्हें झुकाया जा सकता है, कब अकड़कर। इस वक्त जानता था कि इस लड़की से वह जितनी सहानुभूति चाहे, ले सकता है, अपने अपमान के हर्जाने के तौर पर। इसलिए कपूर साहब बोले, ”लेकिन मिस डिक्रूज, आपके भाई बीमार होने के बावजूद बहुत मजबूत हैं। उफ! गरदन पर जैसे अभी तक जलन हो रही है।”
”ओहो! सचमुच मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ। देखूँ!” और कालर हटाकर उसने गरदन पर अपनी बर्फीली अँगुलियाँ रख दीं, ”लाइए, लोशन मल दूँ मैं!”
”धन्यवाद, धन्यवाद, इतना कष्ट न कीजिए। आपकी अँगुलियाँ गन्दी हो जाएँगी!” कपूर ने बड़ी शालीनता से कहा।
पम्मी के होठों पर एक हल्की-सी मुस्कराहट, आँखों में हल्की-सी लाज और वक्ष में एक हल्का-सा कम्पन दौड़ गया। यह वाक्य कपूर ने चाहे शरारत में ही कहा हो, लेकिन कहा इतने शान्त और संयत स्वरों में कि पम्मी कुछ प्रतिवाद भी न कर सकी और फिर छह बरस से साठ बरस तक की कौन ऐसी स्त्री है जो अपने रूप की प्रशंसा पर बेहोश न हो जाए।
”अच्छा लाइए, वह स्पीच कहाँ है जो मुझे टाइप करनी है।” उसने विषय बदलते हुए कहा।
”यह लीजिए।” कपूर ने दे दी।
”यह तो मुश्किल से तीन-चार घण्टे का काम है?” और पम्मी स्पीच को उलट-पुलटकर देखने लगी।
”माफ कीजिएगा, अगर मैं कुछ व्यक्तिगत सवाल पूछूँ; क्या आप टाइपिस्ट हैं?” कपूर ने बहुत शिष्टता से पूछा।
”जी नहीं!” पम्मी ने उन्हीं कागजों पर नजर गड़ाते हुए कहा, ”मैंने कभी टाइपिंग और शार्टहैंड सीखी थी, और तब मैं सीनियर केम्ब्रिज पास करके यूनिवर्सिटी गयी थी। यूनिवर्सिटी मुझे छोडऩी पड़ी क्योंकि मैंने अपनी शादी कर ली।”
”अच्छा, आपके पति कहाँ हैं?”
”रावलपिंडी में, आर्मी में।”
”लेकिन फिर आप डिक्रूज क्यों लिखती हैं, और फिर मिस?”
”क्योंकि हमलोग अलग हो गये हैं।” और स्पीच के कागज को फिर तह करती हुई बोली-
”मिस्टर कपूर, आप अविवाहित हैं?”
”जी हाँ?”
”और विवाह करने का इरादा तो नहीं रखते?”
”नहीं।”
”बहुत अच्छे। तब तो हम लोगों में निभ जाएगी। मैं शादी से बहुत नफरत करती हूँ। शादी अपने को दिया जानेवाला सबसे बड़ा धोखा है। देखिए, ये मेरे भाई हैं न, कैसे पीले और बीमार-से हैं। ये पहले बड़े तन्दुरुस्त और टेनिस में प्रान्त के अच्छे खिलाडिय़ों में से थे। एक बिशप की दुबली-पतली भावुक लड़की से इन्होंने शादी कर ली, और उसे बेहद प्यार करते थे। सुबह-शाम, दोपहर, रात कभी उसे अलग नहीं होने देते थे। हनीमून के लिए उसे लेकर सीलोन गये थे। वह लड़की बहुत कलाप्रिय थी। बहुत अच्छा नाचती थी, बहुत अच्छा गाती थी और खुद गीत लिखती थी। यह गुलाब का बाग उसी ने बनवाया था और इन्हीं के बीच में दोनों बैठकर घंटों गुजार देते थे।
”कुछ दिनों बाद दोनों में झगड़ा हुआ। क्लब में बॉल डान्स था और उस दिन वह लड़की बहुत अच्छी लग रही थी। बहुत अच्छी। डान्स के वक्त इनका ध्यान डान्स की तरफ कम था, अपनी पत्नी की तरफ ज्यादा। इन्होंने आवेश में उसकी अँगुलियाँ जोर से दबा दीं। वह चीख पड़ी और सभी इन लोगों की ओर देखकर हँस पड़े।