GOPAL SINGH NEPALI BIOGRAPHY IN HINDI

1
4063

Table of Contents

‪गोपाल सिंह नेपाली(GOPAL SINGH NEPALI)‬

 

‪#‎जिनका_बिहारी_होने_पर_हमें_गर्व_है‬

 

‪#‎गोपाल_सिंह_नेपाली‬

कलम की स्वाधीनता के लिए आजीवन संघर्षरत रहे ‘गीतों के राजकुमार’ गोपाल सिंह नेपाली लहरों की धारा के विपरीत चलकर हिन्दी साहित्य, पत्रकारिता और फिल्म उद्योग में ऊंचा स्थान हासिल करने वाले छायावादोत्तर काल के विशिष्ट कवि और गीतकार थे।साहित्यिक कविताओं, जन कविताओं के साथ-साथ हिन्दी फिल्मों के लिए भी इन्होने 400 से अधिक गीत लिखे।

गोपाल सिंह नेपाली का जन्म 11 अगस्त 1911 को बेतिया, पश्चिमी चम्पारन (बिहार) में हुआ था। उनका मूल नाम गोपाल बहादुर सिंह है। नेपाली प्रवेशिका तक शिक्षित थे।

 बचपन से ही थे  कवी

गोपाल सिंह नेपाली की काव्य प्रतिभा बचपन में ही दिखाई देने लगी थी। एक बार एक दुकानदार ने बच्चा समझकर उन्हें पुराना कार्बन दे दिया जिस पर उन्होंने वह कार्बन लौटाते हुए दुकानदार से कहा- ‘इसके लिए माफ कीजिएगा गोपाल पर, सड़ियल दिया है आपने कार्बन निकालकर’। उनकी इस कविता को सुनकर दुकानदार काफी शर्मिंदा हुआ और उसने उन्हें नया कार्बन निकालकर दे दिया।

4 हिंदी  पत्रिकाओ का किया संपादन 

साहित्य की लगभग सभी विधाओं में पारंगत नेपाली की पहली कविता ‘भारत गगन के जगमग सितारे’ 1930 में रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा संपादित बाल पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। पत्रकार के रूप में उन्होंने कम से कम 4 हिन्दी पत्रिकाओं- रतलाम टाइम्स, चित्रपट, सुधा और योगी का संपादन किया।

रामधारी सिंह ‘दिनकर भी उनके  मुरीद हुए 

युवावस्था में नेपालीजी के गीतों की लोकप्रियता से प्रभावित होकर उन्हें आदर के साथ कवि सम्मेलनों में बुलाया जाने लगा। उस दौरान एक कवि सम्मेलन में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ उनके एक गीत को सुनकर गद्गनद् हो गए। वह गीत था


सुनहरी सुबह नेपाल की, ढलती शाम बंगाल की

कर दे फीका रंग चुनरी का, दोपहरी नैनीताल की

क्या दरस-परस की बात यहां, जहां पत्थर में भगवान है

यह मेरा हिन्दुस्तान है, यह मेरा हिन्दुस्तान है…

पत्नी थी नेपाल के राजपुरोहित के परिवार से

नेपालीजी के गीतों की उस दौर में धूम मची हुई थी लेकिन उनकी माली हालत खराब थी। वे चाहते तो नेपाल में उनके लिए सम्मानजनक व्यवस्था हो सकती थी, क्योंकि उनकी पत्नी नेपाल के राजपुरोहित के परिवार से ताल्लुक रखती थीं लेकिन उन्होंने बेतिया में ही रहने का निश्चय किया।


‘मजदूर’ के लिए नेपाली ने   लिखे गीत

वर्ष 1944 में मुंबई में उनकी मुलाकात फिल्मीस्तान के मालिक सेठ तुलाराम जालान से हुई जिन्होंने नेपाली को 200 रुपए प्रतिमाह पर गीतकार के रूप में 4 साल के लिए अनुबंधित कर लिया। फिल्मीस्तान के बैनर तले बनी ऐतिहासिक फिल्म ‘मजदूर’ के लिए नेपाली ने सर्वप्रथम गीत लिखे।

60 से अधिक फिल्मों के लिए लिखे  गीत 

फिल्मों में बतौर गीतकार नेपालीजी 1944 से 1962 तक गीत लेखन करते रहे। इस दौरान उन्होंने 60 से अधिक फिल्मों के लिए लगभग 400 से अधिक गीत लिखे। दिलचस्प बात यह है कि इनमें से अधिकतर गीतों की धुनें भी खुद उन्होंने बनाईं। नेपालीजी ने हिमालय फिल्म्स और नेपाली पिक्चर्स फिल्म कंपनी की स्थापना कर नजराना (1949), सनसनी (1951) और खुशबू (1955) जैसी कुछ फिल्मों का निर्माण भी किया।

नेपालीजी को जीते-जी वह सम्मान नहीं मिल सका जिसके वे हकदार थे। अपनी इस भावना को उन्होंने कविता में इस तरह उतारा था-


अफसोस नहीं हमको जीवन में कुछ कर न सके

झोलियां किसी की भर न सके, संताप किसी का हर न सके

अपने प्रति सच्चा रहने का जीवनभर हमने यत्न किया

देखा-देखी हम जी न सके, देखा-देखी हम मर न सके।



17
अप्रैल 1963 को अपने जीवन के अंतिम कवि सम्मेलन से कविता पाठ करके लौटते समय बिहार के भागलपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 2 पर गोपालसिंह नेपाली का अचानक निधन हो गया।

Thanks for reading

1 COMMENT

Leave a Reply