सपने देखने और उन्हें पूरा करने की कोई उम्र नहीं होती: बिसलेरी के फाउंडर खुशरू संतूक

Amit Kumar Sachin

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खुशरू संतूक (Khushroo Suntook-Founder Of Bisleri )


मिनरल वॉटर कंपनी बिसलेरी की  शुरुआत करने का ऑफर   खुशरू संतूक को उनके एक इटालियन दोस्त ने दी थी | पर जब इनका व्यपार रफ़्तार पकड़ा तभी दोस्त के परिवार में दुर्घटना हो गयी जिसके वजह से इन्हे मजबूरी में कंपनी के शेयर्स पार्ले को बेचने पड़े। खुशरू संतूक  की उम्र अब 81 हो चली है, लेकिन वह अभी भी पूरी तल्लीनता से अपने काम में लगे हुए हैं। आईये जानें खुशरू के बारे में और भी कुछ दिलचस्प बातें…

 टेनिस खेलना था पसंद 

भारत में ड्रिंकिंग वॉटर मार्केट का कारोबार 7,000 करोड़ के आस-पास है। इसमें सबसे बड़ा कारोबार करने वाली कंपनी बिसलेरी है। इस कंपनी की स्थापना मुंबई की एक पारसी फैमिली से आने वाले खुशरू संतूक ने की थी। मुंबई के प्लश मालाबार हिल्स में कई पीढ़ियों से रहने वाला यह परिवार कई बड़े नामी वकीलों से भरा हुआ है। खुशरू के पिता भी अंतरराष्ट्रीय ख्याति के वकील थे। खुशरू को टेनिस खेलना पसंद था और उन्होंने स्टेट से लेकर नेशनल लेवल तक टेनिस खेला। लेकिन पारिवारिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने वकालत की पढ़ाई की।

उनके एक मित्र ने दिया बिजनेस शुरू करने का प्रस्ताव 

गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से लॉ की पढ़ाई खत्म करने के बाद वे भी अपने पिता की तरह वकालत के पेशे में जाने वाले थे, लेकिन उनके एक पारिवारिक मित्र ने उनके सामने बिजनेस शुरू करने का प्रस्ताव रख दिया। उस मित्र का नाम रोसिस था। रोसिस का परिवार भारत में मलेरिया की दवाओं का व्यापार करता था और उनकी कंपनी का नाम बिस्लेरी था। खुशरू के पिता चूंकि एक कस्टोडियन संपत्ति के मालिक थे इसलिए रोसिस ने उन्हें बिजनेस में हिस्सेदारी का ऑफर दे दिया। उस वक्त बिस्लेरी कंपनी का एक छोटा सा ऑफिस मुंबई के डीएन रोड पर हुआ करता था।

 बॉम्बे में पानी की गुणवत्ता  थी खराब 

डॉ. रोसी के संबंध वेंकटस्वामी नायडू और देवराजुलू जैसे भारत के कई बड़े उद्यमियों से थे इसलिए उन्हें एक हद तक इन लोगों पर विश्वास भी था। उन्होंने खुशरू को भरोसे में लेकर बॉटलबंद पानी का बिजनेस शुरू किया। यह 1965 का वक्त था। खुशरू उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि वह काफी शक्तिशाली इटैलियन थे। इसके साथ ही उस वक्त बॉम्बे में पानी की गुणवत्ता काफी खराब थी और इसलिए लोगों को बीमारियां हो जाया करती थीं। और उस वक्त बॉटल में पेयजल के बारे में सोचना भी गुनाह समझा जाता था क्योंकि एक तो यह प्रतिबंधित था और दूसरा इसे पीना भी लग्जरी समझा जाता था। खुशरू ने रोसी के साथ मिलकर इस भ्रम को तोड़ा।

लोगो ने की आलोचना 

रोसी की इटली में भी एक कंपनी थी जो ‘फेरो चाइना’ नाम से वाइन बनाती थी। इसके साथ ही वे थोड़ा सा पानी की बोतलों का भी उत्पादन करते थे। उन्होंने मुंबई के ठाणे में वागले स्टेट में अपनी फैक्ट्री स्थापित की। जहां पहले केवल पानी को डीमिनरलाइज्ड किया जाता था ताकि वो एकदम डिसिल्ड हो जाए। लेकिन बाद में देखा गया कि यह पानी पाचन के लिए उपयुक्त नहीं है इसलिए उसमें सोडियमऔर पोटैशियम जैसे मिनरल मिलाया जाने लगा। लेकिन इससे उनकी आलोचना भी हुई। लोगों ने इसे बेवजह का काम बताया, लेकिन खुशरू अपने इस प्रयोग पर डटे रहे।

होटल में खुद पानी भी  पहुंचाया

उस वक्त पानी की एक बोतल का दाम सिर्फ एक रुपये रखा गया। लेकिन उस जमाने में एक रुपये की भी अपनी कीमत थी। इससे कोई भी एक रुपया खर्च करके पानी नहीं खरीदना चाहता था। लेकिन धीरे-धीरे कुछ बड़े होटलों ने ऐसे पानी के बारे में सोचना शुरू कर दिया। खुशरू बताते हैं कि उन्होंने खुद से ईरानी होटल में पानी पहुंचाया था। उनकी कोशिश थी कि इस लग्जरी समझे जाने वाले पानी को लोगों की आम जिंदगी का हिस्सा बनाना है। सब कुछ अच्छे से चलने लगा था लेकिन इसी बीच मिलान में रोसी के परिवार में कुछ दुर्घटना घटित हो गई। इसके बाद उन्हें मजबूरी में कंपनी के शेयर्स पार्ले को बेचने पड़े।

खुशरू संतूक (Khushroo Suntook-Founder Of Bisleri )

 टाटा की  वेंचर कंपनियों के साथ मिलकर कम शुरू किया 

लेकिन खुशरू भला कहां हार मानने वाले थे। उनके पिता टाटा की कंपनियों में डायरेक्टर थे। उनके पास टाटा के यहां से कॉल आई और उन्होंने वहां काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने पहले 1968 में टाटा के एक वेंचर लक्मे को जॉइन किया और उसके बाद कई सारी छोटी कंपनियों के लिए भी काम करना शुरू किया। उन्होंने लगभग 30 सालों तक टाटा की कई कंपनियों के लिए काम किया। इनमें टाटा ऑयल मिल्स कंपनी, फाइनैंस कंपनी से लेकर टाटा मैक्ग्रॉ हिल, टाटा इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन, टाटा बिल्डिंग जैसी कंपनी शामिल थीं।

कारोबार इटली तक फैलाया कारोबार

उस वक्त टाटा का काफी कारोबार रूस के साथ होता था। लेकिन जो सामान रूस को बेचा जाता था उसके बदले में उन्हें पैसे के बदले सामान मिलते थे। क्योंकि रूस के पास टाटा को देने के लिए डॉलर नहीं होते थे। यहां से जितना भी सामान भेजा जाता था उसके बदले में उन्हें दवाईयां और कई अन्य सामान मिलता था। इसके बाद खुशरू की देखरेख में कई सारे उत्पाद बनाए गए और टाटा का कारोबार इटली तक फैल गया। उनके अंडर में कफ सिरप से लेकर स्किन क्रीम तक बनने लगीं जो इटली को एक्सपोर्ट की जाती थीं।

कई प्रसिद्द ऑरकेस्ट्रा में किया  शिरकत 

खुशरू को तो पहले से ही म्यूजिक का शौक था। उन्होंने इस दौरान दुनियाभर के संगीतज्ञों के साथ कई रिकॉर्ड रिलीज किए। उन्होंने जर्मनी, इटली, जपान, रूस औ इंग्लैंड जैसे देशों में भी म्यूजिक रिकॉर्ड एक्सपोर्ट किए। सन 2000 में 65 साल की उम्र में खुशरू ने एक्सटेंशन की डिमांड न करते हुए रिटायरमेंट ले लिया। लेकिन हमेशा काम में लगे रहने वाले खुशरू बताते हैं कि वह अपनी पूरी जिंदगी में सिर्फ 2 महीने के लिए फ्री हुए थे। टाटा की कंपनी का पदभार छोड़ने के बाद खुशरू ने नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट के डायरेक्टर पद की जिम्मेदारी संभाल ली। उन्होंने दुनियाभर के कई प्रसिद्द ऑरकेस्ट्रा में शिरकत की है और महाराष्ट्र में भी ऐसे कई ऑर्केस्ट्रा ऑर्गनाइज किए।

इंग्लैंड औऱ जर्मनी में भी इनवाइट किया गया इनकी ऑर्केस्ट्राग्रुप को

खुशरू ने अपने एक कजाख मित्र की सलाह पर भारत में भी ऑर्केस्ट्रा की स्थापना की जिसमें सिर्फ भारतीय संगीतकार और म्यूजिशन परफॉर्म करते हैं। इस ग्रुप में 16 से 18 सदस्य हैं। वह बताते हैं कि बिसलेरी की कंपनी की स्थापना करने से ज्यादा मुश्किल काम ये है। खुशरू की उम्र अब 81 हो चली है, लेकिन वह अभी भी पूरी तल्लीनता से अपने काम में लगे हुए हैं। जनवरी 2019 में उनके इस ऑर्केस्ट्राग्रुप को इंग्लैंड औऱ जर्मनी में इनवाइट किया गया है।

 इस उम्र में भी आशावान 

अफसोस कि खुशरू का पहला स्टार्टअप ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका था, लेकिन इस बार वे काफी आशावान हैं। इस उम्र में भी उनके पास एक उम्मीद है। वह कहते हैं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप जिंदगी के किस पड़ाव पर हैं, आपके सपने हमेशा बड़े होने चाहिए और वह कोई भी रूटीन वाला काम करने की सलाह कभी नहीं देते हैं। उनका कहना है कि अगर आप अपने काम के प्रति ईमानदार हैं और समर्पित होकर उस काम को करते हैं तो आपको सफलता जरूर हासिल होगी।

साभार -Yourstory.com

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