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बिहार के पूर्णिया जिले के रहने वाले दृष्टिहीन शिक्षक निरंजन झा खुद दृष्टिहीन होने के बावजूद भी बच्चों के बीच शिक्षा का दीप जला कर समाज के लिए एक मिसाल पेश कर रहे हैं। पूर्णिया शहर के गुलाबबाग शानिमंदिर मोहल्ले में टीन के शेड में गरीबी की दंश झेल रहे 37 वर्षीय दिव्यांग निरंजन झा आज के दिनों में किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं।
बचपन में चली गयी थी दोनों आंखों की रोशनी
‘जितेन्द्र सिंह ने मुझे बहुत प्रेरित किया, भौतिक विज्ञान और गणित विषय में एक अच्छी पकड़ बनाने में भरपूर सहयोग दिया। ब्रेल लिपि की सुविधा न मिलने के कारण मैंने मौखिक शिक्षा ग्रहण की।’
लुई ब्रेल की कहानी से ली प्रेरणा
निरंजन ने लुई ब्रेल की कहानी से प्रेरणा ली और ब्रेल लिपि से पढ़ना सीखा। कुछ दिनों तक तो उन्होंने एक स्कूल चलाया लेकिन बाद में घर पर ही ट्यूशन पढ़ाने लगे। निरंजन झा जितने धैर्यवान हैं उतने ही साहसी। दोनों आंखों की रोशनी चली जाने के बावजूद भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी, बल्कि अपने हौसलों को और बुलंद कर उन्होंने समाज के लिए कुछ कर गुजरने की मन बना लिया। अपनी निष्ठा और एकाग्रता के बदौलत उन्होंने इस दो विषयों में अधित से अधिक ज्ञान अर्जित कर बारहवीं कक्षा तक के छात्रों को भौतिक विज्ञान और गणित की टयूशन देना शुरू कर दिया।
बिना ब्लैक-बोर्ड के ही सब कुछ समझा देते है
निरंजन की कक्षा काफी चटख और जीवंत रंगों से रंगी हुई है। झा भले हीं उसे देख नहीं सकते हैं मगर यहां का रंगीन माहौल और विद्यार्थियों के मनोदशा उन्हें हमेशा उत्साहित करती रहती है। निरंजन जब अपने छात्रों को ‘प्रकाश के गुण’ विषय के बारे में पढ़ाते हैं तब वे शब्दों को पिरो कर विद्यार्थियों के सामने ऐसी तस्वीर बना देते हैं जिसे समझाने के लिए बाकी शिक्षकों को ब्लैक-बोर्ड का सहारा लेना पड़ता है।
मुफ्त में पढ़ाते हैं अनाथ और गरीब बच्चों
दृष्टिहीनता रुकावट नहीं, ताकत है
निरंजन बच्चों को सुबह 6 बजे से 9 बजे तक पढ़ते हैं। निरंजन झा से पढ़ने वाली छात्रा अलीशा कुमारी का भी कहना है, ‘सर दिव्यांग और दृष्टिहीन होने के बावजूद भी काफी अच्छा पढ़ाते हैं। वे गणित और विज्ञान के कठिन सवाल को भी आसानी से हल कर लेते हैं।‘ सरकार के तरफ से निरंजन जैसे लोगों के लिए कुछ करने की बजाये उन्हें मात्र 400 रुपये की मासिक दिव्यांगता पेंशन दी जाती है। निरंजन के बड़े भाई को 10 साल पूर्व गुजरने के बाद वे अपने विधवा भाभी एवं परिवार के देख-रेख में अपनी जिन्दगी गुजार रहे हैं। झा अपनी भाभी को अपनी मां मानते हैं। उन्होंने खुद शादी नहीं की है।
खुद करते है सारा काम
निरंजन की भाभी शिवानी झा का कहना है कि निरंजन झा बचपन से दिव्यांग होने के बावजूद अपना सारा काम खुद कर लेते हैं। पढ़ाने के अलावा वे रेडियो भी खुद ठीक करते हैं। और बाकी के दिनों में टीवी या रेडियो सुना करते हैं। अपने अनुभव के आधार पर उन्होंने कहा कि रेडियो शिक्षा को बढ़ावा देने का बहुत ही कारगर माध्यम है, लोकल रेडियो स्टेशन को अपने चैनलों पर शिक्षात्मक एवं ज्ञान-वर्धक प्रोग्रामों को शुरू करना चाहिए। जिससे अधिक से अधिक छात्र लाभान्वित हो सकें।
विधायक ने भी की उनके प्रयास की सराहना
निरंजन ने अपने इस दृष्टिहीन दिव्यांगता को खुद पर कभी हावी नहीं होने दिया और आज तक न हीं कभी अपने परिवार तथा समाज पर बोझ बने। इन्होंने अपने सामने आने वाली हर-एक बाधा को बखूबी अपने अंदाज़ में हल किया। ये अपने अदम्य हौसले की बदौलत समाज में सम्मान के साथ जी रहे हैं। सदर विधायक विजय खेमका ने दिव्यांग निरंजन की संघर्ष भरी कहानी सुनकर काफी प्रेरित हुये और उन्होंने भी अपने स्तर से निरंजन झा की हर संभव मदद करने का भरोसा दिलाया है। विधायक ने कहा कि दिव्यांगता के बावजूद जिस तरह निरंजन झा बच्चों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं ये काफी सराहनीय है। बचपन से दृष्टिहीन होने के बावजूद निरंजन झा ने अपने अदम्य हौसले के बदौलत समाज में सम्मान के साथ जीना सीखा है।