आचार्य महेन्द्र शास्त्री
भोजपुरी कविता (BHOJPURI KAVITA)
पिता: वैद्य लक्ष्मी पाण्डेय
जनम थान: रतनपुरा, सारन (सीवान), बिहार
जनम: 16 अप्रैल, सन् 1901 ई॰.
मरन: 31 दिसम्बर, सन् 1973 ई0.
शिक्षा: काशी विद्यापीठ से शास्त्री अउरी विशारद कऽ उपाधि,
काव्यतीर्थ, साहित्याचार्य आ दर्शनाचार्य कऽ उपाधि
पेशा: अध्यापन (संस्कृत विद्यालय आ महाविद्यालय), बिहार सांस्कृतिक विद्यापीठ के प्राचार्य
विविध: नामी स्वाधीनता-सेनानी
लेखन के विधा: हिन्दी, भोजपुरी आ संस्कृत में निबंध, व्यंग्य, कविता बिधा में लेखन
संपादन: भोजपुरी के पहिलकी पत्रिका ‘भोजपुरी’ 1947
भोजपुरी कविता-संग्रहः भकोलवा (1921), चोखा (1950), धोखा (1962)
हिन्दी-भोजपुरी कविता संग्रह: हिलोर (1928), आज की आवाज (1947)
हिन्दी कविता-संग्रह : छुआछूत, प्रदीप (1957)
संस्कृत के संपादित कृति: संस्कृत-सार (1929), संस्कृतामोद (1950), सूक्ति-संग्रह (1952)
छोड़-छोड़ आसा अकेले नाव खोल रे।
ऊ खूब नीमन गइला पर जननी
लगेला सुहावन सुदूर वाला ढोल रे-
अब-तक उनकर मुँह हम जोहनी
निमने भइल कि खुल गइल पोल रे-
काम का बदले बदला दीहल
लटकवला से टरकावल भल
ना सँपरे तब-साफ-साफ बोल रे-
दउड़वला से फल पइबे ?
काहे खातिर टालमटोल रे-
नाहक सबकर दुश्मन बन-बन
कहलइबे तें एक भकोल रे-
बेहोसी में व्यर्थ परीक्षा
नम्बर मिलजाई एगो गोल रे-
तब तें पोंछिये बनल रहबे
तब तोर कइसे होई मोल रे-
अबहूँ से आपन आदर कर
कठपुतरी बनकर मत डोल रे-
ठोकर-पर-ठोकर तें खइले
न मनले तब मिल गइल ओल रे-
आचार्य महेन्द्र शास्त्री
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