Table of Contents
मेरे जैसा कोई भी बन सकता है – Shaesta Waiz
दोस्तों आज हम बात कर रहे है एक ऐसी महिला के बारे में जिसका जन्म काबुल के शरणार्थी कैंप में हुआ । जंग के कारण उनके परिवार को भागकर अमेरिका जाना पड़ा । थोड़ी बड़ी हुई, तो पढ़ाई छोड़ने का दबाव बना । लेकिन उसने हार नहीं मानी। परिवार के विरोध के बावजूद अफगान मूल की पहली सिविलियन पायलट बनीं । 29 साल की उम्र में अकेले दुनिया का चक्कर लगाने के सफर पर निकली ।
सन 1987 में अफगानिस्तान में सोवियत सेना और मुजाहिदीन के बिच भयंकर लड़ाई चल रही थी | बहुत सारे अफगानी नागरिक देश छोड़कर जा रहे थे | हजारो लोग शरणार्थी कैंपों में नारकीय जिंदगी गुजारने के लिए विवश थे । उसी कैंप में शाइस्ता (shaista) का जन्म हुआ । इन कैंपों में भोजन, पानी और दवाई की बभी सही से व्यवस्था नहीं थी ।कब किस पल किसकी मौत आ जाएगी कोई नहीं जनता था । इसलिए शाइस्ता के परिवार को देश छोड़ना पड़ा ।
अफगानिस्तान छोड़कर आना पड़ा अमेरिका
शाइस्ता की माँ अपनी छह बेटियों को लेकर अमेरिका चली आईं। उनक परिवार बड़ा था पर आमदनी नहीं थी । शाइस्ता कैलिफोर्निया के रिचमंड इलाके के पास ही के एक स्कूल में पढ़ने लगीं। स्कूल में पढाई की व्यवस्था सही नहीं थी । अधिकांश गरीब परिवार के बच्चे ही पढने आते थे । स्कूल में बहुत कम किताबे थीं, जिन्हें बच्चे आपस में बांटकर पढ़ते थे।
बंद हुयी धमाकों और फायरिंग की आवाजें
शाइस्ता खुश थी क्युकी वो जानती थी मेरे पापा की इतनी कमाई नहीं थी कि वह हमें अच्छे स्कूल में पढ़ा पाते । परिवार भी खुश था क्युकी कैलिफोर्निया में अफगानिस्तान की तरह बम धमाकों और फायरिंग की आवाजें नहीं सुनाई देती थीं ।धीरे धीरे जिंदगी पटरी पर लौटने लगी।
परिवार की पिछड़ी सोच बनी रास्ते की रुकावट
अमेरिका में रहने के बाद भी बेटियों को लेकर परिवार की सोच पिछड़ी रही। बेटियों के बड़े होते ही परिवार के लोगो को उसकी शादी की चिंता सताने लगती । लेकिन शाइस्ता बड़े होकर कुछ बनना चाहती थीं । पर उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा, क्युकी उनके घर का माहौल अमेरिकी समाज की तरह खुला नहीं था बल्कि अभी भी कट्टर अफगान परंपरा से जुड़ा हुआ था । शाइस्ता को अमेरिकी लड़कियों की तरह हर तरह की आजादी नहीं थी बल्कि हमेशा याद दिलाया जाता था कि लडकियों को अपने दायरे में रहना चाहिए ।
हार नहीं मानी
इंटर की परीक्षा पास करने के बाद शाइस्ता को पढ़ाई छोड़ने को बोला गया , पर शाइस्ता ने हार नहीं मानी और जिद करके यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया । वह परिवार की पहली बेटी हैं जिन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल की है ।
शाइस्ता वैज-Shaesta Waiz
शाइस्ता कहती हैं- हमारे यहाँ रिवाज था कि लड़कियां हाईस्कूल पास करने के बाद शादी करें और बच्चे पैदा करें। मगर मैं तो आसमान में उड़ना चाहती थी, इसलिए पायलट बनने का फैसला किया।
परिवारवालों ने किया पायलट बनने का विरोध
जब दादी ने यह खबर सुना कि पोती पायलट बनेगी, तो उनकी चिंता बढ़ गई। उन्होंने पूछा, हवाई जहाज चलाने वाली लड़की से कौन शादी करेगा? चाचा भी इस फैसले के खिलाफ थे । उनका मानना था कि पायलट जैसे काम महिलाओं के लिए नहीं हैं।मगर शाइस्ता ने किसी की नहीं सुनी।
अफगान मूल की पहली सिविलियन पायलट बनीं
28 साल की उम्र में वह अमेरिका में अफगान मूल की पहली सिविलियन पायलट बनीं। पहली बार वह जब हवाई जहाज की कॉकपिट में पहुंचीं, तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ कि उनका सपना सच हो गया है। उनका बचपन से ही आसमान में उड़ने का सपना था लेकिन जिस तरह उनके परिवार के आर्थिक हालत थे उन्होंने कभी नहीं सोचा था की उनका यह सपना किसी दिन्सच हो जायेगा । शाइस्ता बताती हैं, की हम लोकल बस या ट्रेन में सफर करते थे। हवाई जहाज में सफर करना हमारे लिए बहुत बड़ी बात थी।
शाइस्ता वैज-Shaesta Waiz
मै अक्सर ये सोचती हु की एक शरणार्थी होने के बावजूद मुझे अपना सपना पूरा करने मौका मिला, तो दुनिया की बाकी बेटियों को यह अवसर क्यों नहीं मिलना चाहिए?
लडकियों को आगे बढ़ने के लिए शुरू किया अभियान
बेटियों को पढ़ने और आगे बढ़ने की प्रेरणा देने के लिए उन्होंने एक वैश्विक अभियान शुरू किया। 29 साल की शाइस्ता वाइज विमान से अकेले दुनिया का चक्कर लगाने के सफर पर निकली । अभियान के तहत उन्होंने 18 देशों का हवाई दौरा किया। इस अफगानी युवती ने अपने सफर की शुरुआत अमेरिका के फ्लोरिडा में डेटोना बीच से की थी । इस 90 दिन की यात्रा में उन्होंने 25,800 किलोमीटर का सफर तय किया।
बच्चो को पढने के लिए किया प्रेरित
इस दौरान वह 33 जगहों पर रुकीं और वहां के बच्चों से मुलाकात कर उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित भी किया।उन्होंने बच्चों में साइंस, गणित तकनीक जैसे विषयों में रुचि जगाने की कोशिश की और समझाया कि ये विषय कठिन नहीं, बल्कि मजेदार हैं। शाइस्ता बताती हैं, मैं स्पेन, मिस्र, भारत, सिंगापुर और ऑस्टेलिया के बच्चों से मिली। हर बच्चे में प्रतिभा है। बस उन्हें सही रास्ता दिखाने की जरूरत है। इस यात्र के दौरान वह अफगानिस्तान भी गईं और अपने रिश्तेदारों से मिलीं। वह एक भावुक लम्हा था। रिश्तेदार अपनी बेटियों को लेकर उनसे मिलने आए।
काबुल में लड़कियों के लिए खोलेंगी कॉलेज
शाइस्ता ने तय किया कि वह काबुल में एक कॉलेज खोलेंगी, जहां लड़कियों को प्रोफेशनल ट्रेनिंग दी जाएगी, ताकि उन्हें अपना मनचाहा करियर चुनने में कोई दिक्कत न हो । शाइस्ता कहती हैं, अफगान बच्चियो की आंखों में भी मेरी तरह बहुत सारे सपने है । कुछ कर गुजरने का हौसला है । मेरा ख्वाब तो पूरा हो गया, अब मैं उनके लिए कुछ करना चाहती हूं।
कोई भी मेरे जैसा बन सकता है
अपने गैर लाभकारी संगठन ड्रीम्स सोर की वेबसाइट पर वे लिखती हैं, जब भी मैं किसी विमान का दरवाजा खोलती हूं, तो खुद से पूछती हूं-मेरी पृष्ठभूमि वाली कोई लड़की इतनी खुशकिस्मत कैसे हो सकती है? लेकिन, सच्चाई यह है कि कोई भी मेरे जैसा बन सकता है।