विवाह हमारे समाज का प्रधान और प्रसिद्ध संस्कार है । भोजपुरी समाज में, जहां मुंडन और यज्ञोपवीत संस्कार का विधान नही किया जाता है वजन भी विवाह संस्कार बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है ।
मनु ने आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन किया है-
1 ब्रह्म
2 दैव
3 आष
4 प्रजापत्य
5 आसुर
6 गान्धर्व
7 राक्षस
8 पैशाच
इनमे से प्रथम चार प्रशस्त तथा अंतिम चार अप्रशस्त विवाह माने जाते है । भोजपुरी में जो विवाह होते है उसे ब्रह्म और दैव का मिश्रण कहा जा सकता है ।
वर की खोज
भोजपुरी समाज सहित भारतीय समाज में लड़कियों का विबाह एक विषम समस्या बन गयी है। जिसका मुख्य कारण तिलक या दहेज जैसी कुत्सित प्रथा है। भोजपुरी क्षेत्र में बाल विवाह की प्रथा प्रचलित होने के कारण जब कन्या दस अथवा ग्यारह वर्ष की होती थी तो उसके मां बाप विवाह के लिए वर की खोज में लग जाते थे। हालांकि आजकल ये बहुत कम देखने को मिलता है ।
जब कन्या के पिता को पता चलता ही कि अमुक गांव में कोई लड़का कुँवारा है, वो वहां पहुँच जाते है। धनी मानी लोगो के यहाँ लड़का खोजने का काम नाई या ब्राह्मण करते है। परन्तु साधारण व्यक्ति स्वयं इस कार्य को करते है। वर को खोजने के लोए जाने वाले व्यक्ति को तिलकहरू कहते है। चूंकि भोजपुरी क्षेत्र में विवाह प्रायः गर्मियों के दिनों में होते है इसलिए ग्रीष्मऋतु को विवाह का सीजन माना जाता है।
जब कन्या का पिता , भाई या अभिभावक वर खोजने के लिए किसी के घर पहुँचते है , तब उनका बड़ा आदर सत्कार किया जाता है। उन्हें गुड़ का शर्बत (पुराने जमाने मे) और मिठाई दिया जाता है। पुरानी परंपरा के लोग वर के घर जलपान करना निषिद्ध मानते है । वे उनके घर आने का प्रयोजन बताते हुए ,सबसे पहले लड़के की जन्मकुंडली मांगते है,जिसे “टीपन” कहा जाता है। वर का पिता पहले “टिपन” देने में बड़ी आनाकानी करता है ,परंतु बहुत प्रार्थना करने पर उनकी ये इच्छा पूरी करता है। लड़की का पिता इस जन्मकुंडली को अपनी पुत्री के कुंडली से मिलान करवाता है । इस कार्य को गाँव का ज्योतिषी करता है ।
वर कन्या की कुंडली के मिलान में तीन वस्तुओं का विशेष ध्यान रखा जाता है
1 वर्ण
2 नाड़ी
3 गुण
वर और कन्या का वर्ण और नाड़ी समान ही होनी चाहिए । गुणों की संख्या चालीस होती है। यदि बीस गुण भी मिल जाएं ,तो विवाह प्रशस्त होता है। इससे अधिक गुण मिल जाएं तो बहुत ही अच्छा माना जाता है।
यदि कन्या “मंगली” होती है तो उसके लिए मंगल लड़का खोजना पड़ता है, अन्यथा वैधव्य योग की संभावना होती है। अतएव मंगली लड़की के लिए वर खोजना बड़ा ही कठिन कार्य है। यदि दोनों की कुंडली का मिलान ठीक हो गया तो विवाह निश्चित हो जाता है। सगोत्र में विवाह करना निषिद्ध माना गया है । इसलिए वर और कन्या वालों की एक उपाधि (दुबे,पांडेय,तिवारी) होने पर भी उनके गोत्र भिन्न भिन्न होने चाहिए। लड़की की शादी ठीक हो के के बाद कन्या का पिता चैन की नींद सोता है । भोजपुरी के एक गीत में कहा गया है कि जिसके घर मे कन्या कुँवारी पड़ी है, उसका पिता कैसे चैन की नींद सो सकता है।
जाही घर कनिया हो कुँवारी
से कईसे सोवे निरभेव हो
तिलक दहेज की प्रथा
कुंडली के मिल जाने के बाद अब लेन देन की बात शुरू होती है। बार का पिता वधूपक्ष से मनमाने तिलक की मांग करता है। भोजपुरी में एक कहावत प्रचलित थी कि
बिना हज़ार के बाजार ना लगी
अर्थत बिना हजार के विवाह का बाजार नही लग सकता (पुराने जमाने मे 1000 की कीमत बहुत थी)
तिलक की राशि तय करने में बड़ा झंझट उठाना पड़ता है।कन्यापक्ष वाला अपने सगे संबंधियों ,परिचितों से तिलक की राशि कम करवाने के लिए दबाव डलवाता है। परंतु वरवाला टस से मस नही होता है।
वर के चुनाव में लड़की का पिता अपने बेटी से सलाह नही लेता है कि ये लड़का तुम्हारे लिए ठीक रहेगा या नही। लोक लाज के मारे कन्या भी इस विषय के सलाह माही दे पाती है। अतः अपनी सुविधानुसार पिता वर को चुनता है और कभी कभी गलत लड़के के साथ भी लड़की का विवाह हो जाता है। उल्लेखनीय बात यह है कि वर के चुनाव में लड़की का पिता , लड़के के गुण और विद्या की ओर उतना ध्यान नही देता जितना परिवार की कुलीनता और वैभव पर । और इस कारण तिलक का भाव बढ़ जाता है