सीता चौधरी जब 10 साल की थी ,एक दिन उनके घर पर एक ठेकेदार आया और उनको अपने साथ चलने के लिए कहा । उन्होंने उसका विरोध किया रोई और मिन्नतें भी की । मगर ठेकेदार ने उन्हें डांटते हुए बताया कि तुम्हारे माता पिता तुम्हें बेच चुके हैं और मैंने उसके लिए पैसा भी दिया है । अब रोना धोना छोड़ो और मेरे साथ चलो । वैसे नेपाल के जिस गांव में सीता का जन्म हुआ था वहां पर बच्चियों को बेचना और उनसे बंधुआ मजदूरी करवाना एक आम बात थी। क्योंकि वहां के परिवार बहुत ही गरीब थे और वह अपने बच्चों से काम करने के लिए मजबूर थे ।ठेकेदार ऐसे बच्चों को घरेलू नौकर बना कर एक निश्चित समय के लिए शहर में भेज देते थे ।
सीता बताती है –मुझे अपने माता-पिता से कोई शिकायत नहीं है । लेकिन गांव में रोजगार नहीं थे खेत के लिए जमीन नहीं थी । गरीबी और भूख के कारण लोगो को अपने बच्चों से काम कराना पड़ता
जिंदगी बन गयी नरक
शहर में आकर सीता की जिंदगी नरक बन गई । ठेकेदार उन्हें एक घर में ले गया । घर के झाड़ू पोछा बर्तन और बच्चों की देखरेख का जिम्मा सीता के ऊपर था। सीता को सुबह 4:00 बजे से लेकर रात के 12:00 बजे तक काम करना पड़ता था । कुछ भी गलती होती थी तो घर की मालकिन उन पर भड़क जाती थी । 10 साल की सीता पर मालकिन को जरा सी भी दया नहीं आती थी ।छोटी सी गलती होने पर उन्हें पूरा दिन भूखा रखा जाता था । मजदूरी का ठेका 1 साल के लिए होता था और फिर ठेकेदार फिर उन्हें किसी नए परिवार में भेज देता था ।
बाहर पड़ता था सोना
सीता बताती है- हमारे देश में बहुत ही आसानी से सस्ते मजदूर मिल जाते हैं। अमीर परिवारों को सस्ते नौकर मिल जाते हैं और ठेकेदार को मोटा कमीशन । नौकरों की जिंदगी कभी भी बदलती नहीं है । काम करते समय हर पल खतरा रहता कि कहीं नाराज ना हो जाए । घरवालों की याद तो आती थी लेकिन उनसे संपर्क करने का कोई जरिया नहीं था । तबीयत खराब होने पर यह कहने की हिम्मत नहीं होती थी कि मैं आज काम नहीं कर पाऊंगी । घर में चाहे जितना स्वादिष्ट खाना बने उनके हिस्से में बासी खाना ही आता था । सर्दी हो या गर्मी उन्हें बाहर ही सोना पड़ता था ।
सरकार ने उठाया कदम
लोक घरेलू नौकरों को हिकारत की नजर से देखते थे । उन्हें लगता था कि हम गरीब बच्चों को दुखी आसमान का एहसास नहीं होता । साल 2000 में पहली बार नेपाल में घरेलू नौकरों के उत्पीडन का मुद्दा उठा और मामला कोर्ट तक पहुंचा ।देश में बाल मजदूरी पर कानूनी तौर से रोक लगाई गई ।मगर जमीन पर ऐसा कोई खास असर नहीं दिखा । साल 2013 में एक 12 साल की घरेलू नौकरानी की मौत के बाद यह मुद्दा दोबारा उठा।
सीता को मिली आजादी
सीता को पता चला की कई गरीब बच्चों को प्रताड़ना की वजह से अपनी जान गवानी पड़ती है। उन्हें डर लगा यदि वह जल्दी बंधुआ मजदूरी से आजाद नहीं हुई तो उनका भी यही हश्र हो सकता है । कई बार कोशिश की ठेकेदार के चुंगल से निकलने की पर वह कामयाब नहीं हो पाई । पिछले साल सरकारी अभियान के तहत तमाम बंधुआ मजदूरों को रिहा कराया गया। सीता को भी आजादी मिली ।
सीता बताती है – रिहाई के बाद सरकार ने जो वादा किया वह हमें बेहतर जिंदगी जीने का मौका देगा । लेकिन वह पूरा नहीं किया गया । मुआवजे में हमें ऐसी जमीन दी गई जो अक्सर में डूब जाती है । बाढ़ में हमारा घर और खेत सब डूब गए और एक बार फिर हम बर्बाद हो गए ।
शादी और बच्चे
इसी बिच सीता की शादी हुई और उनकी दो बच्चियां भी हुई । सीता ने तय किया कि वह अपनी बेटियों को जरूर पढ़ाएंगी । मगर इसके लिए उन्हें अपने पांव पर खड़ा होना जरूरी था । अनपढ़ होने की वजह से सीता को नौकरी मिलना मुश्किल था और वह घरेलू कामगार नहीं बनना चाहती थी ।
सीता बताती है –मैं अकेली महिला नहीं थी जिसे नौकरी की तलाश थी जो बंधुआ मजदूरी से आज़ाद होने के लिए भटक रही थी । हम काम करना चाहते थे पर बंधुआ मजदूर बनकर नहीं इसलिए हमने सोचा कि हम व्यवस्था के खिलाफ लड़ेंगे ।
प्रशासन के खिलाफ खोला मोर्चा
सीता ने अपने इलाके के महिलाओं को एकजुट किया और उन्हें बताया कि सरकारी योजना के नाम पर उनके साथ किस तरह का मजाक किया गया है । प्रशासन पर दबाव बनाया गया कि सभी बंधुआ मजदूरों को सही इलाके में जमीन दे ताकि वे खेती कर सकें ।प्रशासन से जीतना इतना आसान नहीं था । लेकिन सीता अपने इलाके के महिलाओं में उम्मीद जगाने में कामयाब रही और इस साल जब निकाय चुनाव की घोषणा हुई तो उन्होंने तय किया कि वह चुनाव लड़ेंगी ।
चुनाव में जीत हासिल की
सीता बताती हैं -मैं कभी स्कूल नहीं गई और मुझे पढ़ना लिखना भी नहीं आता। लेकिन जिंदगी ने मुझे बहुत कुछ सिखाया। करीब 20 साल तक मैं शहर के तमाम छोटे बड़े घरों में काम किया । घर का माहौल देखा मैं लोगों के दर्द को समझती हूं । मैं जानती हूं लोगो के लिए क्या करना है । सीता को चुनाव में भरपूर समर्थन मिला और उन्होंने शानदार जीत हासिल की ।
दिलवाउंगी उनका हक़
सीता बताती है कि अब मैं जनप्रतिनिधि हु । प्रशासन को मेरी बात सुननी पड़ेगी । सबसे पहले मैं महिलाओं को जमीन दिलवाउंगी । गांव में स्कूल खुलवाउंगी । ताकि हमारे बच्चे अनपढ़ ना रह सके और उन्हें किसी भी तरह की मजदूरी नहीं करनी पड़े।