रामवृक्ष_बेनीपुरी
#जिनका_बिहारी_होने_पर_हमें_गर्व_है
रामवृक्ष बेनीपुरी (अंग्रेज़ी: Ramvriksh-Benipuri; जन्म- 23 दिसम्बर, 1899., मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार; मृत्यु- 9 सितम्बर, 1968, बिहार) भारत के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार और नाटककार थे। ये एक महान विचारक, चिन्तक, मनन करने वाले क्रान्तिकारी, साहित्यकार, पत्रकार और संपादक के रूप में भी अविस्मणीय हैं। बेनीपुरी जी हिन्दी साहित्य के ‘शुक्लोत्तर युग’ के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। ये एक सच्चे देश भक्त और क्रांतिकारी भी थे। इन्होंने ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम’ में आठ वर्ष जेल में बिताये। हिन्दी साहित्य के पत्रकार होने के साथ ही इन्होंने कई समाचार पत्रों, जैसे- ‘युवक’ (1929) आदि भी निकाले। इसके अलावा कई राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता संग्राम संबंधी कार्यों में भी संलग्न रहे।
रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म 23 दिसम्बर, 1899 ई. में बेनीपुर नामक गाँव, मुज़फ़्फ़रपुर ज़िला, बिहार में हुआ था। इन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव की पाठशाला में ही पाई थी। बाद में वे आगे की शिक्षा के लिए मुज़फ़्फ़रपुर के कॉलेज में भर्ती हो गए।
इसी समय राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने ‘रौलट एक्ट’ के विरोध में ‘असहयोग आन्दोलन’ प्रारम्भ किया। ऐसे में बेनीपुरीजी ने भी कॉलेज त्याग दिया और निरंतर स्वतंत्रता संग्राम में जुड़े रहे। इन्होंने अनेक बार जेल की सज़ा भी भोगी। ये अपने जीवन के लगभग आठ वर्ष जेल में रहे। समाजवादी आन्दोलन से रामवृक्ष बेनीपुरी का निकट का सम्बन्ध था। ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के समय जयप्रकाश नारायण के हज़ारीबाग़ जेल से भागने में भी रामवृक्ष बेनीपुरी ने उनका साथ दिया और उनके निकट सहयोगी रहे।
रामवृक्ष बेनीपुरी की आत्मा में राष्ट्रीय भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी, जिसके कारण आजीवन वह चैन की साँस न ले सके। उनके फुटकर लेखों से और उनके साथियों के संस्मरणों से ज्ञात होता है कि जीवन के प्रारंभ काल से ही क्रान्तिकारी रचनाओं के कारण बार-बार उन्हें कारावास भोगना पड़ता। सन 1942 में ‘अगस्त क्रांति आंदोलन’ के कारण उन्हें हज़ारीबाग़ जेल में रहना पड़ा था। जेलवास में भी वह शान्त नहीं बैठे सकते थे। वे वहाँ जेल में भी आग भड़काने वाली रचनायें लिखते। जब भी वे जेल से बाहर आते, उनके हाथ में दो-चार ग्रन्थों की पाण्डुलिपियाँ अवश्य होती थीं, जो आज साहित्य की अमूल्य निधि बन गई हैं। उनकी अधिकतर रचनाएँ जेल प्रवास के दौरान लिखी गईं।
उपन्यास – पतितों के देश में, आम्रपाली
कहानी संग्रह – माटी की मूरतें
निबंध – चिता के फूल, लाल तारा, कैदी की पत्नी, गेहूँ और गुलाब, जंजीरें और दीवारें
नाटक – सीता का मन, संघमित्रा, अमर ज्योति, तथागत, शकुंतला, रामराज्य, नेत्रदान, गाँवों के देवता, नया समाज, विजेता, बैजू मामा
संपादन – विद्यापति की पदावली
#साहित्यकारों_के_प्रति_सम्मान
रामवृक्ष बेनीपुरी की अनेक रचनाएँ, जो यश कलगी के समान हैं, उनमें ‘जय प्रकाश’, ‘नेत्रदान’, ‘सीता की माँ’, ‘विजेता’, ‘मील के पत्थर’, ‘गेहूँ और गुलाब’ आदि शामिल है। ‘शेक्सपीयर के गाँव में’ और ‘नींव की ईंट’, इन लेखों में भी रामवृक्ष बेनीपुरी ने अपने देश प्रेम, साहित्य प्रेम, त्याग की महत्ता और साहित्यकारों के प्रति जो सम्मान भाव दर्शाया है, वह अविस्मरणीय है। इंग्लैण्ड में शेक्सपियर के प्रति जो आदर भाव उन्हें देखने को मिला, वह उन्हें सुखद भी लगा और दु:खद भी। शेक्सपियर के गाँव के मकान को कितनी संभाल, रक्षण-सजावट के साथ संभाला गया है। उनकी कृतियों की मूर्तियाँ बनाकर वहाँ रखी गई हैं, यह सब देख कर वे प्रसन्न हुए थे। पर दु:खी इस बात से हुए कि हमारे देश में सरकार भूषण, बिहारी, सूरदास और जायसी आदि महान साहित्यकारों के जन्म स्थल की सुरक्षा या उन्हें स्मारक का रूप देने का भी प्रयास नहीं करती। उनके मन में अपने प्राचीन महान साहित्यकारों के प्रति अति गहन आदर भाव था। इसी प्रकार ‘नींव की ईंट’ में भाव था कि जो लोग इमारत बनाने में तन-मन कुर्बान करते हैं, वे अंधकार में विलीन हो जाते हैं। बाहर रहने वाले गुम्बद बनते हैं और स्वर्ण पत्र से सजाये जाते हैं। चोटी पर चढ़ने वाली ईंट कभी नींव की ईंट को याद नहीं करती।
पत्रकार और साहित्यकार के रूप में बेनीपुरीजी ने विशेष ख्याति अर्जित की थी। उन्होंने विभिन्न समयों में लगभग एक दर्जन पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया। उनकी लेखनी बड़ी निर्भीक थी। उन्होंने इस कथन को अमान्य सिद्ध कर दिया था कि अच्छा पत्रकार अच्छा साहित्यकार नहीं हो सकता। उनका विपुल साहित्य, शैली, भाषा और विचारों की दृष्टि से बड़ा ही प्रभावकारी रहा है। उपन्यास, जीवनियाँ, कहानी संग्रह, संस्मरण आदि विधाओं की लगभग 80 पुस्तकों की उन्होंने रचना की थी। इनमें ‘माटी की मूरतें’ अपने जीवंत रेखाचित्रों के लिए आज भी याद की जाती हैं।
रामवृक्ष बेनीपुरी 1957 में बिहार विधान सभा के सदस्य भी चुने गए थे। सादा जीवन और उच्च विचार के आदर्श पर चलते हुए उन्होंने समाज सेवा के क्षेत्र में बहुत काम किया था। वे भारतीयता के सच्चे अनुयायी थे और सामाजिक भेदभावों पर विश्वास नहीं करते थे।
रामधारी सिंह दिनकर ने एक बार बेनीपुरीजी के विषय में कहा था कि- “स्वर्गीय पंडित रामवृक्ष बेनीपुरी केवल साहित्यकार नहीं थे, उनके भीतर केवल वही आग नहीं थी, जो कलम से निकल कर साहित्य बन जाती है। वे उस आग के भी धनी थे, जो राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों को जन्म देती है, जो परंपराओं को तोड़ती है और मूल्यों पर प्रहार करती है। जो चिंतन को निर्भीक एवं कर्म को तेज बनाती है। बेनीपुरीजी के भीतर बेचैन कवि, बेचैन चिंतक, बेचैन क्रान्तिकारी और निर्भीक योद्धा सभी एक साथ निवास करते थे।”
वर्ष 1999 में ‘भारतीय डाक सेवा’ द्वारा रामवृक्ष बेनीपुरी के सम्मान में भारत का भाषायी सौहार्द मनाने हेतु भारतीय संघ के हिन्दी को राष्ट्रभाषा अपनाने की अर्धशती वर्ष में डाक-टिकटों का एक संग्रह जारी किया। उनके सम्मान में बिहार सरकार द्वारा ‘वार्षिक अखिल भारतीय रामवृक्ष बेनीपुरी पुरस्कार’ दिया जाता है।
रामवृक्ष बेनीपुरी जी का निधन 7 सितम्बर, 1968 को मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार में हुआ।