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प्रकाश नांजप्पा (PRAKASH NANJAPPA )
भारतीय निशानेबाज
मेरे चेहरे को लकवा मार गया।
डॉक्टर ने कहा कि निशानेबाजी बंद करनी पड़ेगी।
मैं सहम गया। अब क्या होगा?
फिर तय किया कि खुद को हारने नहीं दूंगा।
अगले साल ही मेडल जीतकर साबित किया
कि हौसला साथ हो, तो रास्ते बन ही जाते हैं।
प्रकाश कर्नाटक के आईटी शहर बेंगलुरु में पले-बढ़े। पापा निशानेबाज थे, पर बेटे को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। उन्हें शुरू से गणित और विज्ञान पसंद थे। परिवार की तरफ से उन्हें अपना मनपसंद करियर चुनने की पूरी आजादी मिली। शौक के तौर पर उन्हें मोटरबाइक रेसिंग पसंद थी। मगर पढ़ाई के दबाव के चलते इस शौक को वह खास समय नहीं दे पाए।बात वर्ष 1999 की है। एक दिन पापा घर पर निशानेबाजी का अभ्यास कर रहे थे। उन्हें अगले तीन दिन बाद एक राज्य स्तरीय चैंपियनशिप में भाग लेना था। अभ्यास के दौरान पापा के कई निशाने चूक गए। इस पर प्रकाश को हंसी आ गई। उन्होंने कहा, लगता है कि आप सोते हुए निशाने लगा रहे हैं। पापा को बहुत बुरा लगा।
उन्होंने कहा, अगर तुम्हें लगता है कि निशाना लगाना इतना आसान है, तो तुम क्यों नहीं हाथ आजमाते। पहले निशाना लगाओ, तब समझ में आएगा कि कितना मुश्किल है। यह सुनकर प्रकाश चुप हो गए। मगर बात मन में घर कर गई। उन दिनों वह कॉलेज में पढ़ रहे थे। पापा की बात को उन्होंने चुनौती की तरह लिया।उन्होंने निशानेबाजी सीखनी शुरू की। मजा आने लगा। अब निशाना लगाना उनका शौक बन गया।
लेकिन असल फोकस पढ़ाई पर रहा। इस बीच उन्हें चार साल मिले निशानेबाजी सीखने के लिए। इंजीनियरिंग की डिग्री मिलने के बाद 2003 में कनाडा में एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी मिल गई। अच्छी नौकरी थी, बढ़िया वेतन था और भविष्य के लिए अच्छी संभावनाएं भी थीं। पर कुछ बात थी, जो उन्हें खल रही थी।फिर सोचा, क्यों न निशानेबाजी की ट्रेनिंग दोबारा शुरू की जाए? जब भी ऑफिस से फुरसत मिलती, टोरंटो के शूटिंग क्लब में निशाना लगाने पहुंच जाते। इस बीच जब भी घर से पापा को फोन आता, निशानेबाजी पर ही चर्चा होती।
प्रकाश बताते हैं, वह एक ही बात पूछते कि ऑफिस के बाद शूटिंग के लिए वक्त मिलता है? अगर मैं कहता नहीं, तो वह गुस्सा होकर फोन काट देते। अगले दो-तीन दिन बाद फिर उनका फोन आता और वह वही सवाल पूछते। पापा के लिए निशानेबाजी जुनून था, और वह चाहते थे कि प्रकाश इस क्षेत्र में उनका सपना पूरा करें। यह वह दौर था, जब अभिनव बिंद्रा जैसे निशानेबाज पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन कर रहे थे। इस बीच 2008 में कनाडा में राष्ट्रीय निशानेबाजी चैंपियनशिप हुई। प्रकाश ने उसमें हिस्सा लिया। नतीजा अप्रत्याशित था। उन्होंने गोल्ड जीता। पहली बार उन्हें लगा कि वह एक अच्छे निशानेबाज हैं। पापा ने उनसे कहा, तुम नौकरी करने के लिए नहीं, निशानेबाजी के लिए बने हो। यही तुम्हारी मंजिल है। घर लौट आओ।इंजीनियर की नौकरी छोड़कर वह स्वदेश लौट आए। कई घरेलू टूर्नामेंट जीते।
प्रकाश कहते हैं, जब कनाडा से लौटा, तब नहीं सोचा था कि एक दिन ओलंपिक के लिए क्वालिफाई कर पाऊंगा। यह सफर बहुत शानदार रहा है।वर्ष 2013 में वर्ल्ड कप मेडल जीतने वाले प्रकाश पहले भारतीय निशानेबाज बने। इस कामयाबी को मुश्किल से एक महीने ही बीते थे कि एक हादसा हो गया। वह एक निशानेबाजी प्रतियोगिता के लिए स्पेन जा रहे थे। विमान में अचानक उन्हें महसूस हुआ कि चेहरे पर कुछ हुआ है, पर समझ नहीं पाए क्या हुआ। होटल पहुंचे, शीशे में खुद को देखा, तो घबरा गए। ब्रश करने की कोशिश की, तो मुंह नहीं खुला। एक आंख अचानक बंद हो गई। दौड़कर रिसेप्शन की तरफ भागे। वहां मौजूद लोग उन्हें देखकर चौंक गए।
प्रकाश बताते हैं, उस समय मेरा चेहरा बहुत डरावना लग रहा था। मैं समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूं? मैं चिल्लाने लगा, मेरी मदद करो।इसके बाद उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया। अगले दिन से अभ्यास शुरू होना था, मगर वह अस्तपाल के बेड पर थे। डॉक्टरों ने कहा, आपके चेहरे पर लकवा मार गया है। कब तक ठीक होंगे, कुछ पता नहीं। खबर फैली, तो सब कहने लगे कि प्रकाश का करियर खत्म हो गया। जब तक आंख ठीक नहीं होगी, वह निशानेबाजी कैसे कर पाएंगे?
मगर धुन के पक्के इस निशानेबाज ने डॉक्टरों को गलत साबित कर दिया। प्रकाश कहते हैं, जब डॉक्टरों ने कहा कि निशानेबाजी मुङो बंद करनी पड़ेगी, तो मैं अंदर से टूट गया। मैंने उनसे कहा, मैं निशानेबाजी के बिना कैसे जिऊंगा? प्लीज कुछ कीजिए। प्रकाश की हालत सुधरने में कम से कम दो महीने लगे। मगर एक-एक पल बड़ी मुश्किल से बीता। पूरी तरह फिट होने में एक साल लगा, पर वह हारे नहीं। डॉक्टर भी उनका हौसला देखकर दंग थे।
सबको लगा था कि इस हादसे के बाद उनका प्रदर्शन पहले जैसा नहीं रहेगा। मगर उन्होंने 2014 में ग्लासगो कॉमनवेल्थ में रजत पदक जीतकर सारे कयासों को गलत साबित कर दिया।इस साल प्रकाश ने ओलंपिक के लिए क्वालिफाई किया। यह बहुत बड़ी कामयाबी थी। हालांकि वह इस बार ओलंपिक में कोई मेडल नहीं जीत सके, पर उनका हौसला सबके लिए प्रेरणास्रोत बना रहा। उन्होंने हारकर भी उन लोगों को जीत का संदेश दिया है, जो छोटी-छोटी मुश्किलों के सामने हिम्मत हार जाते हैं।