CHETESHWAR PUJARA BIOGRAPHY IN HINDI

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Greater Noida, India - Sept. 11, 2016: India Blue batsman Cheteshwar Pujara celebrate Double Century against India Red during the Duleep Trophy Final Match at Shaheed Vijay Singh Pathek Sports Complex at Greater Noida, Uttar Pradesh, India, on Sunday, September 11, 2016. EXPRESS PHOTO 11 09 2016.
 
चेतेश्वर पुजारा (CHETESHWAR PUJARA)
भारतीय  क्रिकेटर
 
मां की मौत के बाद पापा की जिम्मेदारी बढ़ गई।
 घर में सुबह जल्दी उठकर मां की तरह मेरे लिए नाश्ता बनाते।
 मेरी हर जरूरत का ध्यान रखते। 
स्टेडियम में पहुंचते ही कोच बनकर मुङो क्रिकेट की ट्रेनिंग देते। 
मेरी कामयाबी पापा की मेहनत का नतीजा है।

गुजरात के राजकोट शहर में जन्मे चेतेश्वर ने बचपन से परिवार में क्रिकेट का माहौल देखा। पिता अरविंद शिवलाल रणजी खिलाड़ी थे। घर में क्रिकेटरों का आना-जाना लगा रहता था। पापा के संग अक्सर स्टेडियम में मैच देखने का मौका भी मिलता था।

पांच साल की उम्र से उनका स्कूल जाना शुरू हुआ। पढ़ाई में तेज थे, पर मन बैट-बॉल में ज्यादा लगता था। पापा ने भी तय कर लिया कि अगर बेटा क्रिकेटर बनना चाहता है, तो उसे रोकूंगा नहीं। आठ साल की उम्र से उनकी ट्रेनिंग शुरू हो गई। क्लास में पढ़ाई के बाद वह सीधे क्रिकेट एकेडमी चले जाते और फिर शाम को पापा के संग घर लौटते। शुरुआती ट्रेनिंग पापा से मिली। बतौर कोच वह बहुत सख्त थे। घंटों प्रैक्टिस कराते और गलती होने पर सबके सामने खूब डांट लगाते। टाइम को लेकर बहुत पाबंद थे। सोकर देर से उठना या फिर ट्रेनिंग के लिए देरी करना उन्हें कतई पसंद नहीं था।
चेतेश्वर बताते हैं, ट्रेनिंग के दौरान पापा सख्त कोच की तरह व्यवहार करते थे। एकेडमी में उनके लिए सभी बच्चे एकसमान थे। वह सभी खिलाड़ियों के कोच थे, सिर्फ मेरे नहीं।तेरह साल की उम्र में चेतेश्वर को राज्य की टीम में खेलने का मौका मिला। उनका प्रदर्शन उम्दा रहा। इस दौरान मां ने पापा के निर्देश के मुताबिक, बेटे के खान-पान और फिटनेस का पूरा ख्याल रखा। पापा का सपना था कि बेटा देश के लिए खेले, और चेतेश्वर जानते थे कि इस सपने को साकार करने के लिए अनुशासन जरूरी है। उन्होंने पिता के हर निर्देश का पूरी शिद्दत से पालन किया।
चेतेश्वर बताते हैं, आज भी मैं खान-पान को लेकर बहुत अनुशासित हूं। सही समय पर सोना और डाइट के मुताबिक खाना मेरी आदत में शुमार है।समय के साथ उनके खेल में निखार आता गया। दरअसल, 12 साल की उम्र में उन्होंने सौराष्ट्र की टीम से खेलते हुए अंडर 14 मैच में बड़ौदा के खिलाफ 306 रन बनाकर सुर्खियां बटोरी थीं। एक तरफ पिता बेटे को महान क्रिकेटर बनाने का सपना बुन रहे थे, तो दूसरी तरफ मां का इस बात पर जोर था कि बेटा सफल खिलाड़ी बनने के साथ अच्छा इंसान भी बने। वह हमेशा उन्हें सलाह देतीं कि सुबह उठकर ईश्वर की प्रार्थना करने के बाद ही घर से बाहर निकलो।
चेतेश्वर बताते हैं, मां बहुत धार्मिक थीं। उन्होंने मुङो प्रार्थना करना सिखाया। वह चाहती थीं कि मैं एक अच्छा इंसान बनूं। उनके लिए कामयाबी से ज्यादा महत्वपूर्ण यह बात थी। दिलचस्प बात यह रही कि उन्होंने खेल के साथ पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया। स्कूल में वह हर कक्षा में टॉपर रहे। कई साल तक क्लास मॉनीटर भी रहे।बात 2005 की है। उन दिनों वह अंडर 19 टीम में थे। अचानक मां की तबियत खराब हुई। जांच के बाद पता चला कैंसर है। यह सुनकर चेतेश्वर सन्न रह गए। मगर पापा ने यकीन दिलाया कि इलाज के बाद सब ठीक हो जाएगा। मां अस्प्ताल में थीं। इधर, चेतेश्वर को क्रिकेट मैच के लिए अक्सर बाहर जाना पड़ता था। रोजाना मां से बात होती थी फोन पर। वह मां को अपनी सेहत का ख्याल रखने को कहते और मां उन्हें दिल लगाकर खेलने को कहतीं।
 चेतेश्वर बताते हैं, उस दिन मैं भावनगर में खेल रहा था। सुबह मां से फोन पर बात हुई। शाम को खेल के बाद लौट रहा था कि रास्ते में मां के निधन की खबर मिली। उस लम्हे को बयां करना मुश्किल है।मां के गुजर जाने के बाद अचानक उनका जीवन बदल गया। तब वह महज 19 साल के थे। समझ में नहीं आ रहा था कि अब आगे क्या होगा? क्या पहले की तरह पढ़ाई के साथ क्रिकेट खेल पाएंगे? घर के तमाम काम, जो मां बड़ी आसानी से संभाल लेती थीं, उन्हें अब कौन संभालेगा? उनकी छोटी-बड़ी जरूरतों का ध्यान कौन रखेगा? मगर पापा ने उनसे कहा, तुम कुछ मत सोचो। बस क्रिकेट पर ध्यान दो। मां का सपना पूरा करना है, तो बस बैट-बॉल पर ध्यान दो।
पापा ने घर की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली। वह मां की तरह बेटे के खान-पान और कपड़ों का ध्यान रखने लगे। चेतेश्वर बताते हैं, मां के जाने के बाद घर में बस मैं और पापा रह गए। पापा जल्दी सुबह उठते, घर के काम निपटाते, मेरे लिए नाश्ता तैयार करते और फिर ऑफिस जाते। मेरे लिए उन्होंने मां और पिता, दोनों की भूमिका निभाई।
समय के साथ चेतेश्वर का क्रिकेट सफर रफ्तार पकड़ता गया। अक्तूबर, 2010 में उनकी इंट्री अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में टेस्ट मैच के साथ हुई। 2012 में न्यूजीलैंड के खिलाफ खेलते हुए शतक जड़ा। उसी साल नवंबर में इंग्लैंड के खिलाफ खेलते हुए दोहरा शतक लगाया। साल 2013 में एक बार फिर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेलते हुए दोहरा शतक बनाया। जल्द ही वह देश के बेहतरीन बल्लेबाजों में शुमार किए जाने लगे। पिछले सप्ताह रांची टेस्ट में वह 500 गेंद खेलने वाले भारत के पहले बल्लेबाज बने। इस मैच में उन्होंने दोहरा शतक जमाया। चेतेश्वर कहते हैं, इस कामयाबी के पीछे मेरे पापा की मेहनत और उनका संघर्ष है। साथ ही, मां का आशीर्वाद भी मेरे साथ है, जो मुङो सफल खिलाड़ी और नेक इंसान बनाना चाहती थीं।।

साभार-हिंदुस्तान
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