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सड़क पर पकौड़े बेचने से लेकर पटना का सबसे बड़ा ज्वैलर्स बनने की कहानी…
(CHAND BIHARI AGRAWAL BIOGRAPHY IN HINDI)
जमीन से फलक की बुलंदियों पर कैसे पहुंचा जा सकता है, ये चांद बिहारी अग्रवाल जैसे लोगों से सीखना चाहिए। किसी जमाने में फुटपाथ पर पकौड़े बेचने वाले चांद बिहारी ने आज पटना में ज्वैलर्स का इतना बड़ा शोरूम खोल दिया है कि उससे उन्हें हर साल 20 करोड़से भी ज्यादा का टर्नओवर हासिल होता है।
बचपन गरीबी में बिता
चांद बिहारी अग्रवाल जयपुर में पैदा हुए और वहीं पांच भाई-बहनों के साथ पले बढ़े। उनके पिता जी को सट्टा खेलने की आदत थी। सट्टा खेलना आज भले ही अपराध हो गया हो, लेकिन उस वक्त यह काम लीगल हुआ करता था। चांद के पिता ने शुरू में तो सट्टे से काफी पैसे बना लिए, लेकिन धीरे-धीरे उनकी किस्मत खराब होती गई और वे सारे पैसे लुटाते चले गए। घर की हालत इतनी बुरी हो गई कि चांद बिहारी स्कूल ही नहीं जा पाए। उनकी मां नवल देवी अग्रवाल ने घर का पूरा बोझ अपने कंधों पर ले लिया।
सड़क पर पकौड़े भी बेचने पड़े
1966 में जब चांद बिहारी महज 10 साल के थे तब वह अपनी मां और भाई रतन के साथ एक ठेले पर पकौड़े बेचा करते थे। उनके दो छोटे भाई स्कूल जाते थे और उनकी बहन घर का काम-धाम देखती थीं। चांद बताते हैं कि वे रोज 12 से 14 घंटे तक काम किया करते थे। वो कहते हैं, ‘स्कूल जाने का सपना, सपना ही लगता था, क्योंकि हमें पेट भरने के लिए भी पैसे चाहिए थे।’ उनके अनुसार यदि उन्हें स्कूली शिक्षा मिली होती तो वह और जल्दी सफल हो जाते लेकिन हालात ऐसे थे कि वह पढ़ ही न हीं सके।
साड़ियो की दुकान पर भी करना पड़ा काम
12 साल की उम्र में उन्होंने जयपुर में ही एक साड़ी की दुकान पर सेल्समैन के तौर पर काम करना शुरू कर दिया। इस काम से उन्हें हर महीने 300 रुपये मिलने लगे थे। उस जमाने में 300 रुपये काफी होते थे।
1972 में उनके बड़े भाई रतन की शादी हो गई। शादी के भेंट में मिले 5000 रुपयों से रतन ने जयपुर में 18 पीस चंदौरी साड़ियां खरीदीं और पटना में आकर उन्हें सैंपल के तौर पर दिखाया। यहां उनकी साड़ियां काफी पसंद की गईं। इसके बाद उन्होंने जयपुर से साड़ियां लाकर पटना में बेचने का काम शुरू कर दिया। पटना में ही रतन की ससुराल है।
पटना रेलवे स्टेशन के पास फुटपाथ पर भी खोली अपनी दुकान
खून पसीने से की कमाई से खड़ी दुकान भी हुई चोरी
पटना में राजस्थानी साड़ियां बेचने वाले वे अकेले थे। उस वक्त दिन भर की मेहनत से वे 25 प्रतिशत के मार्जिन के हिसाब से 250 से 300 रुपये रोज बना लेते थे। धीरे-धीरे वे हरेक दुकानों पर जा-जाकर लोगों से अपनी साड़ियां खरीदने के लिए कहने लगे। इस प्रोसेस से उन्होंने अपना एक रीटेल नेटवर्क खड़ा कर लिया। ठीक एक साल बाद उन्होंने कुछ पैसे बचाकर पटना के खड़ाकुआ इलाके में एक दुकान किराए पर ले ली। इसके बाद तो उनकी निकल पड़ी। दुकान लेने के बाद उनकी सेल हर महीने 80,000 से 90,000 रुपये हो गई, लेकिन दुर्भाग्य से 1977 में उनकी दुकान में चोरी हो गई। इसी साल चांद बिहारी की शादी हुई थी और खून-पसीने की कमाई से खड़ा किया हुआ पूरा बिजनेस धाराशाई हो गया। लगभग 4 लाख का नुकसान हुआ। उस जमाने में 4 लाख की रकम मायने रखती थी। इसके एक साल पहले ही रतन ने भी साड़ी का काम छोड़कर रत्न और आभूषण का काम शुरू कर दिया था। चांद बिहारी बताते हैं कि यह उनकी जिंदगी का सबसे बुरा दौर था। उस वक्त वे खुद को असहाय और कमजोर मान बैठे थे।
भाई ने दी ज्वैलरी में हाथ आजमाने की सलाह
इसके बाद रतन ने चांद बिहारी को संभाला और उनसे ज्वैलरी में हाथ आजमाने को कहा। उन्हें इस बिजनेस के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, लेकिन रतन ने उन्हें सब समझाया। उन्होंने 5,000 रुपये से रत्न और आभूषण की दुकान शुरू की। उनकी किस्मत अच्छी निकली और उनका यह बिजनेस भी चल पड़ा। इसके बाद चांद बिहारी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
यूपी और बिहार में अपना नाम जमाया
1988 में इसी धंधे की बदौलत उन्होंने दस लाख की पूंजी इकट्ठा की और सोने के व्यापार में कदम रख दिया। अपनी क्वॉलिटी और भरोसे के दम पर चांद बिहारी ने यूपी और बिहार में अपना नाम जमा लिया। 2016 में उनका टर्नओवर लगभग 17 करोड़ था। उनकी छोटी सी दुकान आज एक बड़ी कंपनी बन गई है। एक साल पहले ही उन्हें सिंगापुर में ऑल इंडिया बिजनेस ऐंड कम्यूनिटी फाउंडेशन की ओर से सम्मानित भी किया गया।