BENJAMIN NETANYAHU BIOGRAPHY IN HINDI

Amit Kumar Sachin

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बेंजामिन नेतन्याहू  (इसराल के प्रधानमंत्री)

BENJAMIN NETANYAHU(PRIME MINISTER OF ISRAEL )

 
 1996 में देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने।
 उनके नेतृत्व में इजरायल ने रक्षा, साइबर सुरक्षा और विज्ञान
 व प्रौद्यगिकी
 में शानदार तरक्की की।
 पिछले साल इजरायल दुनिया के आठ सबसे शक्तिशाली देशों में शुमार हुआ।
 बेंजामिन कहते हैं, जब विरोधी मुझ पर हमले कर रहे होते हैं,
 तब मेरा पूरा ध्यान इस बात पर होता है कि 
किस तरह देश को और शक्तिशाली और संपन्न बनाया जाए।

बेंजामिन का जन्म इजरायल की राजधानी तेल अवीव में हुआ। यह 1949 की बात है। उनके जन्म के महज एक साल पहले ही इजरायल बतौर राष्ट्र अस्तित्व में आया था। शुरुआती पढ़ाई येरुशलम में हुई। वह तीन भाई थे, एक उनसे बड़ा और दूसरा छोटा। 1963 में पिताजी को एक अमेरिकी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर की नौकरी मिली, तो पूरा परिवार वहां चला गया। अमेरिकी माहौल में ढलने में उन्हें कोई खास दिक्कत नहीं हुई। उनके लिए अमेरिका नया मुल्क नहीं था। पहले भी माता-पिता कुछ वर्ष अमेरिका में रह चुके थे।

उन दिनों इजरायल सियासी जद्दोजहद से जूझ रहा था। इजरायली सेना को कई मोर्चो पर संघर्ष करना पड़ रहा था। इसी माहौल के बीच भाई योनातन का अमेरिका में मन नहीं लगा और 1968 में वह स्वदेश लौट आए। येरुशलम स्थित हिब्रू यूनिवर्सिटी में पढ़ाई शुरू की, पर कुछ दिनों के बाद पढ़ाई छोड़कर सेना में शामिल हो गए।

दूसरी तरफ, बेंजामिन लंबे समय तक माता-पिता के साथ अमेरिका में रहे, जबकि छोटे भाई ने इजरायल में अपनी पढ़ाई जारी रखी। परिवार के आधे सदस्य इजरायल और आधे अमेरिका में रह रहे थे, इसलिए उनके लिए अमेरिका दूसरे घर जैसा ही था। दोनों भाइयों से अक्सर स्वदेश के हाल-चाल मिलते रहते थे। स्नातक डिग्री हासिल करने के बाद बेंजामिन भी स्वदेश लौट आए और सेना में शामिल हो गए।

सन् 1967 से 1970 के बीच बेंजामिन सेना के कई महत्वपूर्ण अभियानों में शामिल रहे। 1972 में एक अभियान के दौरान उनके कंधे में गोली भी लगी। 1975 में दोबारा उच्च शिक्षा के लिए वह अमेरिका चले गए।

यह वाकया 1976 का है। युगांडा के एन्तेबे में अगवा किए सौ इजरायली नागरिकों को छुड़ाने के सैन्य अभियान में बड़े भाई योनातन को जान गंवानी पड़ी। वह तारीख थी चार जुलाई, 1976। बेंजामिन केंब्रिज यूनिवसिर्टी में पढ़ाई कर रहे थे। उस दिन अमेरिकी अपने देश का 200वां स्थापना दिवस मना रहे थे। चारों ओर जश्न का माहौल था। तभी हॉस्टल में फोन की घंटी बजी। फोन इजरायल से था। दूसरी तरफ छोटा भाई था। उसने भर्राई आवाज में बताया, योनातन नहीं रहे। यह सुनते ही बेंजामिन के पांव के नीचे से जमीन खिसक गई। मम्मी-पापा न्यूयॉर्क सिटी में थे। फोन पर उन्हें यह खबर देने की हिम्मत नहीं हुई।

बेंजामिन कहते हैं, योनातन कवि हृदय थे, वह लेखक थे और चिंतक भी। मगर सबसे बड़ी बात यह थी कि वह एक सजग सैनिक थे। जंग के मैदान में उनका शौर्य और साहस काबिल-ए-तारीफ था। न्यूयॉर्क का सफर करीब सात घंटे का था। उन्होंने तुरंत कार निकाली और चल पड़े न्यूयॉर्क की तरफ। पूरे रास्ते अपने बचपन की पुरानी यादों में खोए रहे। योनातन के संग बिताए दिन खूब याद आए।लंबे सफर के बाद पापा के सामने पहुंचे, तो दिल कांप रहा था।

बेंजामिन कहते हैं, मैं घर पहुंचा, तो देखा कि पापा चहलकदमी कर रहे हैं। लगा, वह बेचैन हैं। मुझे  अचानक सामने देखा, तो चौंक पड़े। मेरे बिना कुछ बोले ही समझ गए कि मैं क्या कहने आया हूं। जैसे उन्हें आभास हो गया था। वह फूट-फूटकर रोने लगे। आज भी उस दिन को याद करता हूं, तो सिहर जाता हूं। बेटे के अंतिम दर्शन के लिए परिवार स्वदेश के लिए रवाना हुआ। पूरे सफर में किसी ने आपस में बात नहीं की।

इजरायल पहुंचे, तो मानो पूरा देश उनके सम्मान में खड़ा था। उनका सैनिक बेटा अब देश का हीरो था। स्वदेश की धरती पर पांव रखने पर एहसास हुआ कि बेटे ने कितनी बड़ी कुर्बानी दी है। योनातन ने अपनी जान देकर न केवल बंधक बने सौ इजरायली नागरिकों की रक्षा की थी, बल्कि सभी अपहरणकर्ताओं को मारकर अपने अद्भुत शौर्य का परिचय भी दिया था। पूरा देश उनकी शहादत पर नतमस्तक था। भाई के लिए देशवासियों का प्रेम और सम्मान देखकर बेंजामिन भावुक हो गए। तय कर लिया कि भाई की कुर्बानी को बेकार नहीं जाने देंगे।उन्होंने योनातन की याद में इजरायल में आतंकवाद विरोधी संस्थान खोला।

कुछ समय बाद वह पढ़ाई पूरी करने के लिए अमेरिका लौटे। अमेरिका में तत्कालीन इजरायली राजदूत मोशे एरेन्स ने 1982 में उन्हें वाशिंगटन में अपना डेप्युटी चीफ ऑफ मिशन नियुक्त किया। बेंजामिन अपनी बेबाक राय के लिए शुरू से जाने जाते हैं। जल्द ही वह अमेरिकी टेलीविजन पर होने वाली राजनीतिक बहसों में इजरायल का पक्ष मुखरता से रखने लगे।

उन्हें यूएन में इजरायल का स्थायी प्रतिनिधि नियुक्त किया गया। 1988 में फिर इजरायल लौटे और अपना सियासी सफर शुरू किया। खाड़ी युद्ध के दौरान वह अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इजरायल के प्रवक्ता के रूप में सुर्खियों में आए। 1996 में देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने। उनके नेतृत्व में इजरायल ने रक्षा, साइबर सुरक्षा और विज्ञान व प्रौद्यगिकी में शानदार तरक्की की। पिछले साल इजरायल दुनिया के आठ सबसे शक्तिशाली देशों में शुमार हुआ। बेंजामिन कहते हैं, जब विरोधी मुझ पर हमले कर रहे होते हैं, तब मेरा पूरा ध्यान इस बात पर होता है कि किस तरह देश को और शक्तिशाली और संपन्न बनाया जाए।

साभार- हिंदुस्तान अख़बार

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