कहते है की जब इरादे बुलंद हो तो एवेरेस्ट सरीखा चट्टान भी हमारे लक्ष्य को पाने से नहीं रोक सकता है इसकी सबसे बेहतरीन उदहारण है अरुणिमा सिन्हा . उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर की रहने वाली अरुणिमा सिन्हा एक पैर Artificial होने के बावजूद भी दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी-एवरेस्ट को फतह करने वाली विश्व की पहली महिला पर्वतारोही बनी . जो लोग थोड़ी सी कठिन परिस्थितियों के आगे ही घुटने टेक देते है उनके लिए अरुणिमा सिन्हा एक प्रेरणादायक मिसाल है .
क्या आप कल्पना कर सकते है की एक लड़की को चलती ट्रेन से बहार फेंक दिया जाता है और वह वह रात भर अपने कटे हुए पैर के साथ रेलवे ट्रैक पर आते जाते ट्रेन को देखती रहती है . डॉक्टर उन्हें बोलते है की वो दोबारा अपना स्पोर्ट्स कैरियर शुरू नहीं कर सकती . ऐसी कठिन परिस्थितियों में एवेरेस्ट फतह करना तो दूर क्या कोई लड़की उस पर चढ़ने के बारे में भी सोच सकती है . लेकिन इसको सच कर दिखाया अरुणिमा सिन्हा ने जो प्रेरणा की अद्भुत मिसाल है
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अरुणिमा सिन्हा का जन्म और शिक्षा
20 जुलाई 1988 को उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर अरुणिमा सिन्हा का जन्म हुआ था . अपनी शुरूआती पढाई लिखाई उन्होंने उत्तर प्रदेश से ही पूरी की .उसके बाद उन्होंने नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग, उत्तरकाशी से पर्वतारोहण का कोर्स किया। बचपन में , अरुणिमा सिन्हा को वॉलीबॉल और फुटवॉल खेलने में ज्यादा मन लगता था
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ट्रेन हादसा
CISF की परीक्षा में शामिल होने के लिए अरुणिमा को दिल्ली जाना पड़ा । 21 अप्रैल 2011 को, पद्मावत एक्सप्रेस में यात्रा के दौरान, कुछ बदमाशों ने उनसे सोने की चेन और बैग छिनने की कोशिश की। जब अरुणिमा ने इसका विरोध किया, तो बदमाशों नेगुस्से में अरुणिमा सिन्हा को चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया। जब अरुणिमा नीचे गिरीं तो एक ट्रेन दूसरे ट्रैक से आ रही थी। जब तक अरुणिमा जब तक खुद को पटरी से हटा पाती तब तक ट्रेन उसके पैर को कुचलती हुई आगे बढ़ गई। बाद में इस दुर्घटना के बारे में लोगों ने बताया की उनके पैरों के ऊपर से लगभग 49 रेलगाड़ियाँ गुजरी थी
एक पैर काटना पड़ा
उसके बाद गाँव के लोगों द्वारा अरुणिमा को अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां डॉक्टरों को उसकी जान बचाने के लिए उनका एक पैर काटना पड़ा । जिसके कारण अरुणिमा की जान तो बच गई लेकिन उसे अपना एक पैर हमेशा के लिए खो दी । यह एक खिलाड़ी के लिए कितने दुःख की बात है वह खिलाडी ही समझ सकता है खासकर जब वह राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी हो । इस घटना ने अरुणिमा के सारे सपने को एक पल में ही चकनाचूर कर दिया , भाग्य ने अरुणिमा सिन्हा से भारत के लिए वॉलीबॉल खेलने का अवसर छीन लिया था।
बेबसी और लाचारी को नहीं स्वीकारा
“ट्रेन दुर्घटना में मैंने अपना पैर खो दिया।” अस्पताल में बस बिस्तर पर पड़ी थी। परिवार के लोग, मुझे देखने के बाद,अपने आप में दिन भर रोते रहते थे . हमें एक बच्चे और गरीब के रूप में सहानुभूति की दृष्टि के साथ देखते या संबोधित करते थे जो मुझे स्वीकार्य नहीं था। लेकिन मुझे जीना था, मुझे कुछ करना था। मैंने अपने दिमाग में कुछ अलग करने का फैसला किया, जो दूसरों के लिए एक मिसाल बन सके
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दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ने का लिया फैसला
अरुणिमा कहती हैं कि कटा हुआ पैर उनकी कमजोरी थी लेकिन उन्होंने इसे अपनी ताकत बना लिया। रेल दुर्घटना और उसके बाद की सभी घटनाओं ने अरुणिमा की आंखों में आंसू ला दिए, लेकिन उन आंसुओं ने उसे कमजोर करने के बजाय उसे साहस दिया और अरुणिमा ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का फैसला किया।
अरुणिमा कहती हैं,
“एम्स से छुटकारा पाने के बाद, दिल्ली के एक संगठन ने मुझे नकली पैर दिए। इसके बाद मैंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा । ट्रेन पकड़ी और सीधे जमशेदपुर पहुंची। वहां मैं बछेंद्री पाल से मिला, जिन्होंने एवरेस्ट को फतह करने के लिए मुझे शिष्य बनाने का फैसला किया। फिर, जैसे मुझे पर ही लग गए । उसके बाद मुझे लगने लगा कि अब मेरा सपना पूरा होगा।
बहुत कम लोगो ने प्रोत्साहित किया
अरुणिमा की शादी हुई और फिर तलाक हो गया, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। उनकी बड़ी बहन और उनकी मां ने उनका साथ दिया। दुर्घटना के बाद, कई लोग थे जो उनके घावों को कुरेदने वाले थे, लेकिन बहुत कम ही मरहम लगाने वाले थे। इस सब के बाद, उन्होंने अपने लक्ष्य को पाने के लिए अपना सारा प्रयास लगा दिया।
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खुद को साबित करने की थी ललक
अरुणिमा को पता था कि अगर वह एक नकली पैर के साथ एवरेस्ट को जीतने में सफल रहीं, तो वह ऐसा करने वाली दुनिया की पहली महिला बन जाएंगी। अरुणिमा खुद को साबित करने के साथ-साथ यह साबित करना चाहती थी कि शारीरिक दुर्बलता किसी के रास्ते में नहीं आ सकती। यदि किसी के पास अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्रबल, मानसिक शक्ति और इच्छाशक्ति है, तो कोई भी कमजोरी उसे रोक नहीं सकती है।
अरुणिमा कहती हैं,
“मैं बस इतना ही कहना चाहती हूं कि परिस्थितियां चाहे कितनी भी बदल जाए ।” लेकिन हमें अपने लक्ष्य से भटकना नहीं चाहिए बल्कि उनका सम्मान करना चाहिए और उनका सामना करना चाहिए। जब मैं हॉकी स्टिक लेकर खेलने जाता था, तो मोहल्ले के लोग मुझ पर हंसते थे, मेरा मजाक उड़ाते थे।
पाल की देखरेख में प्रशिक्षण पूरा करने के बाद 31 मार्च को अरुणिमा का मिशन एवरेस्ट शुरू हुआ। वह 52 दिन की चढ़ाई में 21 मई को माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराकर दुनिया की पहली विकलांग महिला पर्वतारोही बन गईं। अरुणिमा कहती हैं, “विकलांगता व्यक्ति की सोच में निहित है।
एवरेस्ट के शिखर पर चढ़ने के बाद निकले आँख से आंसू
हर कोई अपने जीवन में उच्च कठिनाइयों का सामना करता है, जिस दिन वह अपनी कमजोरियों को मजबूत करना शुरू कर देगा, हर ऊंचाई बौनी हो जाएगी। मैं एवरेस्ट के शिखर पर चढ़ने के बाद बहुत रोई लेकिन मेरे आँसू के अधिकांश अंश ख़ुशी के थे। मैंने दुःख को पीछे छोड़ दिया था और दुनिया के सर्वोच्च शिखर से एक नए तरीके से जीवन को देख रही थी ”
उनकी उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिए भारत सरकार ने 2015 में उन्हें चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान- पद्म श्री से सम्मानित किया। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरुणिमा की जीवनी – ‘बॉर्न अगेन इन द माउंटेन‘ का उद्घाटन किया।
इन पर्वत पर भी चढ़ी-:
इंडोनेशिया के कार्स्तेंस्ज़ पर्वत – 4,884 या 16023 फुट
अर्जेंटीना में अकोंकागुआ पर्वत – 6,961 मीटर या 22,838 फुट
यूरोप के एल्ब्रुस पर्वत – 5,621 मीटर या 18,442 फुट
अफ्रीका के किलिमंजारो पर्वत- 5,895 मीटर या 19,341 फ़ुट
माउंट एवेरेस्ट – 8,848 मीटर या 29,029 फुट
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Thanks for sharing such an inspirational story.