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नाकामी से निकला कामयाबी का रास्ता
अरुणाभ कुमार, संस्थापक, टीवीएफ
(ARUNABH KUMAR,FOUNDER-THE VIRAL FEVER)
टीवी देखने का था शौख
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के रहने वाले अरुणाभ कुमार को बचपन से ही टीवी देखने का बड़ा शौख था |लेकिन उनके पिताजी पढाई को लेकर सख्त थे उन्हें यह कतई पसंद नहीं था की बच्चे टीवी देखे | इसलिए जब अरुणाभ ने टीवी देखने की जिद की तो पहले उनके पिताजी ने मना किया फिर बाद में उन्होंने तय किया की टीवी सिर्फ रविवार को ही देखा जायेगा
पिताजी चाहते थे की बेटा इंजीनियर बने
अरुणाभ के पिताजी चाहते थे की बेटा बड़ा होकर इंजीनियर बने | इसलिए हाईस्कूल पास करने के बाद अरुणाभ आईआईटी जेईई की तैयारी में जुट गए | पहली कोशिश में वह नाकाम रहे जिससे उनके घरवाले बहुत नाराज हुए ।सबको यह लगा की शायद उनकी तैयारी में ही कमी थी उसके बाद अरुणाभ ने कोटा जाकर तैयारी करना शुरू कर दिया
समय के साथ उनकी पसंद बदलती गई
पहले सेमेस्टर के दौरान मेरे अंदर अर्थशास्त्री बनने की ख्वाहिश थी, दूसरे साल में मैंने सोचा कि एमबीए करूंगा, तीसरे साल मन में आया कि आईएएस बनने की कोशिश करते हैं। तय नहीं कर पा रहा था कि क्या करूं।
थिएटर की तरफ हुआ रुझान
मैंने महसूस किया कि शायद फिल्म मेकिंग ऐसा काम है, जो मैं करना चाहता हूं। मैंने लाइब्रेरी से किताब लेने के लिए अपने एक प्रोफेसर को खत लिखा। उन्होंने उन्होंने यह कह कर खत फाड़ दिया कि इंजीनियरिंग के छात्र को फिल्म मेकिंग की किताब क्यों चाहिए?
इंटरनेट पर ही फिल्म निर्माण से सम्बंधित जानकारीयां की हासिल
इन सब के बावजूद अरुणाभ के मन से फिल्म निर्माण का भूत नहीं उतरा । इसके बाद उन्होंने इंटरनेट पर ही फिल्म निर्माण से सम्बंधित तमाम जानकारीयां हासिल की। खड़गपुर से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह मुंबई आ गए। यहां उन्हें एक अमेरिकी एयरफोर्स प्रोजेक्ट में बतौर रिसर्च कंसल्टेंट नौकरी मिल गई। इस दौरान उनका संपर्क मुंबई में लेखन और थिएटर से जुड़े कुछ युवाओं से हुआ ।
प्रोडक्शन हाउस ने नहीं दिया काम
अच्छा वेतन और भरपूर सुविधाओं के बावजूद उनका मन नहीं लगा और उन्होंने नौकरी छोड़ दी ।उन्होंने तय किया कि वह निर्देशन करेंगे। अरुणाभ ने कई सारे प्रोडक्शन हाउस के चक्कर लगाए, पर किसी ने मौका नहीं दिया। यशराज के दफ्तर पर चौकीदार ने अंदर नहीं जाने दिया, तो सुभाष घई के प्रोडक्शन हाउस ने भी लौटा दिया। शाहरुख की रेड चिली कंपनी में भी यही हुआ।
गैर-पंजीकृत सोसाइटी बनाई
अरुणाभ ने एक उपाय निकला । उन्होंने एक गैर-पंजीकृत सोसाइटी बनाई। इससे उन्होंने अमेरिका व फ्रांस में पढ़ने वाले दो दोस्तों को भी जोड़ा। इस सोसाइटी के नाम से 15 प्रोडक्शन हाउस को खत लिखे गए। खत में कहा गया कि वे प्रोडक्शन हाउस की मदद से भारतीय सिनेमा पर अध्ययन करना चाहते हैं। नतीजा सुखद था। सात प्रोडक्शन हाउस ने जवाब दिया।
अरुणाभ कहते हैं,
‘रेड चिली का दफ्तर मेरे घर के करीब था, लिहाजा मैंने उनके साथ काम करने फैसला किया। जब मैं रेड चिली के दफ्तर पहुंचा, तो गार्ड ने सर कहकर मेरा स्वागत किया।’ रेड चिली में उनकी मुलाकात फिल्म निर्देशक फराह खान से हुई। अरुणाभ को ओम शांति ओम फिल्म में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम करने का मौका मिला। यह अनुभव उनके लिए शानदार रहा। इस दौरान उन्होंने फिल्म मेकिंग से जुड़ी बारीकियों को समझा और सीखा।
Delhi Belly में भी काम किया
एमटीवी ने उनके आईडिया को किया ख़ारिज
2009 में उन्होंने एमटीवी के लिए इंजीनियर्स डायरी नाम से एक शो तैयार किया। सभी लोगो को उनका आईडिया पसंद आया पर एमटीवी ने इसे खारिज कर दिया। फिर उन्होंने कॉलेज क्युटियापा नाम से दूसरा शो बनाया, उसे भी एमटीवी ने खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शक मूर्ख हैं। उन्हें ऐसे शो पसंद नहीं आएंगे। तब अरुणाभ ने सोचा कि किसी टीवी चैनल या प्रोडक्शन हाउस को आइडिया देने से बेहतर है कि वह खुद यू-ट्यूब पर अपने वीडियो अपलोड करें।
द वायरल फीवर (टीवीएफ) नाम की कंपनी बनाई
वर्ष 2010 में उन्होंने द वायरल फीवर (टीवीएफ) नाम की कंपनी बनाई। उनका पहला वीडियो यू-टयूब पर हिट रहा। उनके दूसरे वीडियो राउडीज को पांच दिन के अंदर करीब दस लाख लोगों ने पंसद किया। इसके बाद उन्होंने बेअरली स्पीकिंग नाम का शो बनाया।इसमें एक टीवी एंकर और आप नेता केजरीवाल की पैरोडी की गई। टीवीएफ आज ऑनलाइन एंटरटेनमेंट क्षेत्र की सबसे सफल कंपनियों में है।अरुणाभ कहते हैं-
अगर आप नए हो, तो अनुभवी लोग आपके आइडिया को आसानी से गलत साबित कर देते हैं। इसमें निराश होने की बात नहीं है। अगर आपको यकीन है कि आप सही हैं, तो यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप इसे साबित करके दिखाएं।