क्या बताएँ आपसे हम हाथ मलते रह गए – हुल्लड़ मुरादाबादी (Hullad Moradabadi)

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क्या बताएँ आपसे हम हाथ मलते रह गए - हुल्लड़ मुरादाबादी

क्या बताएँ आपसे हम हाथ मलते रह गए – हुल्लड़ मुरादाबादी

हास्य कवि के रूप में प्रसिद्ध हुल्लड़ मुरादाबादी का असली नाम सुशील कुमार चड्डा था । उनका जन्म 29 मई 1942 को पाकिस्तान के शहर गुजरांवाला में हुआ था । बटवारे के समय उनका परिवार उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद शहर में आकर बस गया । वे हास्य के माध्यम से वर्तमान हालात और व्यवस्था पर तंज कसते थे । हुल्लड़ मुरादाबादी को उनकी कृतियों के लिए कलाश्री,अट्टहास सम्मान , हास्य रत्न आदि पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है।

क्या बताएँ आपसे हम हाथ मलते रह गए

गीत सूखे पर लिखे थे, बाढ़ में सब बह गए

भूख, महगाई, गरीबी इश्क मुझसे कर रहीं थीं

एक होती तो निभाता, तीनों मुझपर मर रही थीं

 

मच्छर, खटमल और चूहे घर मेरे मेहमान थे

मैं भी भूखा और भूखे ये मेरे भगवान् थे

रात को कुछ चोर आए, सोचकर चकरा गए

हर तरफ़ चूहे ही चूहे, देखकर घबरा गए

 

कुछ नहीं जब मिल सका तो भाव में बहने लगे

और चूहों की तरह ही दुम दबा भगने लगे

हमने तब लाईट जलाई, डायरी ले पिल पड़े

चार कविता, पाँच मुक्तक, गीत दस हमने पढे

चोर क्या करते बेचारे उनको भी सुनने पड़े

 

रो रहे थे चोर सारे, भाव में बहने लगे

एक सौ का नोट देकर इस तरह कहने लगे

कवि है तू करुण-रस का, हम जो पहले जान जाते

सच बतायें दुम दबाकर दूर से ही भाग जाते

अतिथि को कविता सुनाना, ये भयंकर पाप है

हम तो केवल चोर हैं, तू डाकुओं का बाप है

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