स्कूल के दिनों में वह अखबार बेचा करता था। अखबार की कमाई से उसके ऊपरी खर्चे आसानी से निकल आते थे। 11 साल की उम्र में उसने पहला निवेश किया। शेयर के उतार-चढ़ाव का खेल उसे भाने लगा। पढ़ाई के साथ बिजनेस भी चलता रहा। एक के बाद एक बड़ी कंपनियों में निवेश के साथ मुनाफे की रफ्तार बढ़ती गई। देखते ही देखते वह दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति बन गया। पर बेशुमार दौलत के इस मालिक को अपनी अमीरी पर जरा भी गुमान नहीं। कहने को तो वह दुनिया का सबसे अमीर बिजनेसमैन है, पर जीने का अंदाज बेहद साधारण है। शायद इसलिए कि उसे आम लोगों की फिक्र थी। इसलिए उसने जरूरतमंदों की मदद का बीड़ा उठाया। दुनिया के सबसे बड़े दानदाताओं में शुमार इस बिजनेसमैन का नाम है वारेन बफेट।
वारेन बफेट का जन्म 30 अगस्त, 1930 में अमेरिका के नेब्रास्का प्रांत में हुआ। परिवार में तीन भाई-बहन थे। उनके पिता होवार्ड बफेट स्टॉक ब्रोकर थे। आसानी से घर चल जाता था। पर वारेन शुरू से स्वावलंबी स्वभाव के थे। वह नहीं चाहते थे कि उनके ऊपरी खर्चों का बोझ पिता पर पड़े।
लिहाजा, स्कूल के दिनों में वह हॉकर बन गए। सुबह स्कूल जाने से पहले वह घरों में अखबार पहुंचाया करते थे। इससे उनका जेब खर्च आसानी से निकल आता था। मां लीला स्टाहल बफेट घर संभालती थीं। उन्होंने बेटे के पार्टटाइम जॉब पर कभी आपत्ति नहीं की। एक दिन वारेन पिता के संग शेयर मार्केट गए। उन्होंने पहली बार शेयर बाजार की गहमागहमी देखी। शेयर के गिरते-उठते दाम और इस पर ब्रोकरों का रोमांच, यह सब देखकर वारेन अभिभूत हो गए। उन्हें यह बिजनेस काफी दिलचस्प लगा। फिर वह अक्सर पिता के संग शेयर मार्केट जाने लगे। वारेन ने 11 साल की उम्र में पहला शेयर खरीदा। प्रति शेयर कीमत 38 डॉलर थी। यह उनका पहला निवेश था। खरीद के अगले ही दिन शेयर का दाम घटकर 27 डॉलर हो गया। वारेन उदास हो गए। पिता ने कुछ दिन इंतजार करने की सलाह दी। कुछ दिन बाद शेयर की कीमत 40 डॉलर हो गई। वारेन ने झट से अपने शेयर बेच दिए। पर कुछ दिनों बाद उसी शेयर के दाम 200 डॉलर हो गए। अब वारेन को शेयर बाजार की बारीकियां समझ में आने लगी थीं। पढ़ाई के साथ बिजनेस में उनकी दिलचस्पी बढ़ने लगी।
वारेन शुरू से ही हिसाब-किताब में पक्के थे। गणित के सवाल तो वह चुटकियों में हल कर लेते थे। घाटे और मुनाफे का ब्योरा पेश करने की बात आती, तो सब वारेन बफेट को याद करते। महज 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने अखबार की बिक्री संबंधी बिजनेस शुरू कर दिया। बिजनेस में दिलचस्पी बढ़ रही थी, पर वारेन शिक्षा की अहमियत खूब समझते थे। लिहाजा उन्होंने बिजनेस के साथ अपनी पढ़ाई जारी रखी। 20 साल की उम्र में वारेन ने कोलंबिया बिजनेस ऑफ स्कूल में दाखिला लिया। यहां उनकी मुलाकात बेन्जामिन ग्राहम से हुई, जो उस समय के जाने-माने प्रतिभूति विश्लेषक थे। वारेन को ग्राहम से काफी कुछ सीखने को मिला। इस बीच 1952 में यानी 22 साल की उम्र में वारेन ने सुसैन थॉम्सन से शादी की। दो साल बाद ग्राहम ने वारेन को अपनी कंपनी में नौकरी दी। यहां वारेन को 12,000 डॉलर प्रतिवर्ष वेतन मिलता था। वर्ष 1956 में ग्राहम के रिटायर होने के बाद वारेन अपने घरेलू शहर ओमाहा लौटे। यहां आकर उन्होंने बफेट पार्टनरशिप लिमिटेड नाम से कंपनी बनाई। 32 साल की उम्र में वह करोड़पति बन चुके थे। 1965 में उन्होंने बर्कशायर हैथवे कंपनी का नियंत्रण पूरी तरह अपने हाथों में ले लिया। तब वह महज 35 साल के थे।
एक के बाद एक बड़े निवेश के साथ मुनाफे का सिलसिला चल पड़ा। वारेन ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने दोस्तों और सलाहकारों को लेकर वारेन हमेशा से ही सजग थे। वारेन कहते हैं कि आप किस तरह के इंसान हैं, यह इस बात से तय होता कि आपके आस-पास कैसे लोग हैं? आपकी तरक्की और बरबादी में इन लोगों की अहम भूमिका होती है। वर्ष 2008 में वारेन बफेट की कुल संपत्ति 62 अरब डॉलर थी। फोर्ब्स ने उन्हें दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति करार दिया। वह बर्कशायर हैथवे कंपनी के सीईओ हैं। लेकिन वारेन बफेट ने कभी अपनी सफलता और दौलत पर गुमान नहीं किया। वारेन को दिखावा बिल्कुल पसंद नहीं है। वह खुद को शानोशौकत से दूर रखते हैं। वह आज भी ओमाहा के उसी साधारण से मकान में रहते हैं, जो उन्होंने 1958 में मात्र 31,500 डॉलर में खरीदा था। इस घर में मात्र तीन बेडरूम हैं। बेशुमार दौलत के मालिक वारेन खुद कभी प्राइवेट जेट से यात्रा नहीं करते। उनका मानना है कि इंसान को वही काम करना चाहिए, जो उसे अच्छा लगे। वारेन बफेट कहते हैं, काम ऐसा चुनो कि सुबह उठते ही मन करे कि झट से ऑफिस पहुंच जाएं। अगर आप बेमन से नौकरी करने जाएंगे, तो कभी सफल नहीं होंगे।
वारेन ने हमेशा एक साधारण व्यक्ति का जीवन जीने की कोशिश की है। उनका मानना है कि पैसे से खुशियां नहीं खरीदी जा सकतीं। उनके शौक बेहद साधारण हैं। उन्हें डूबते सूरज के बीच समुद्र किनारे नंगे पांव चलना काफी पसंद है। उन्हें कॉफी शॉप में बैठक आते-जाते लोगों को देखकर सुकून मिलता है। वारेन कहते हैं, जीवन के साधारण पलों में बेशुमार खुशियां छिपी हैं। दूसरों से तुलना करके उनसे ज्यादा कमाने की धुन आपको कभी संतुष्ट नहीं कर सकती।
लिहाजा, स्कूल के दिनों में वह हॉकर बन गए। सुबह स्कूल जाने से पहले वह घरों में अखबार पहुंचाया करते थे। इससे उनका जेब खर्च आसानी से निकल आता था। मां लीला स्टाहल बफेट घर संभालती थीं। उन्होंने बेटे के पार्टटाइम जॉब पर कभी आपत्ति नहीं की। एक दिन वारेन पिता के संग शेयर मार्केट गए। उन्होंने पहली बार शेयर बाजार की गहमागहमी देखी। शेयर के गिरते-उठते दाम और इस पर ब्रोकरों का रोमांच, यह सब देखकर वारेन अभिभूत हो गए। उन्हें यह बिजनेस काफी दिलचस्प लगा। फिर वह अक्सर पिता के संग शेयर मार्केट जाने लगे। वारेन ने 11 साल की उम्र में पहला शेयर खरीदा। प्रति शेयर कीमत 38 डॉलर थी। यह उनका पहला निवेश था। खरीद के अगले ही दिन शेयर का दाम घटकर 27 डॉलर हो गया। वारेन उदास हो गए। पिता ने कुछ दिन इंतजार करने की सलाह दी। कुछ दिन बाद शेयर की कीमत 40 डॉलर हो गई। वारेन ने झट से अपने शेयर बेच दिए। पर कुछ दिनों बाद उसी शेयर के दाम 200 डॉलर हो गए। अब वारेन को शेयर बाजार की बारीकियां समझ में आने लगी थीं। पढ़ाई के साथ बिजनेस में उनकी दिलचस्पी बढ़ने लगी।
वारेन शुरू से ही हिसाब-किताब में पक्के थे। गणित के सवाल तो वह चुटकियों में हल कर लेते थे। घाटे और मुनाफे का ब्योरा पेश करने की बात आती, तो सब वारेन बफेट को याद करते। महज 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने अखबार की बिक्री संबंधी बिजनेस शुरू कर दिया। बिजनेस में दिलचस्पी बढ़ रही थी, पर वारेन शिक्षा की अहमियत खूब समझते थे। लिहाजा उन्होंने बिजनेस के साथ अपनी पढ़ाई जारी रखी। 20 साल की उम्र में वारेन ने कोलंबिया बिजनेस ऑफ स्कूल में दाखिला लिया। यहां उनकी मुलाकात बेन्जामिन ग्राहम से हुई, जो उस समय के जाने-माने प्रतिभूति विश्लेषक थे। वारेन को ग्राहम से काफी कुछ सीखने को मिला। इस बीच 1952 में यानी 22 साल की उम्र में वारेन ने सुसैन थॉम्सन से शादी की। दो साल बाद ग्राहम ने वारेन को अपनी कंपनी में नौकरी दी। यहां वारेन को 12,000 डॉलर प्रतिवर्ष वेतन मिलता था। वर्ष 1956 में ग्राहम के रिटायर होने के बाद वारेन अपने घरेलू शहर ओमाहा लौटे। यहां आकर उन्होंने बफेट पार्टनरशिप लिमिटेड नाम से कंपनी बनाई। 32 साल की उम्र में वह करोड़पति बन चुके थे। 1965 में उन्होंने बर्कशायर हैथवे कंपनी का नियंत्रण पूरी तरह अपने हाथों में ले लिया। तब वह महज 35 साल के थे।
एक के बाद एक बड़े निवेश के साथ मुनाफे का सिलसिला चल पड़ा। वारेन ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने दोस्तों और सलाहकारों को लेकर वारेन हमेशा से ही सजग थे। वारेन कहते हैं कि आप किस तरह के इंसान हैं, यह इस बात से तय होता कि आपके आस-पास कैसे लोग हैं? आपकी तरक्की और बरबादी में इन लोगों की अहम भूमिका होती है। वर्ष 2008 में वारेन बफेट की कुल संपत्ति 62 अरब डॉलर थी। फोर्ब्स ने उन्हें दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति करार दिया। वह बर्कशायर हैथवे कंपनी के सीईओ हैं। लेकिन वारेन बफेट ने कभी अपनी सफलता और दौलत पर गुमान नहीं किया। वारेन को दिखावा बिल्कुल पसंद नहीं है। वह खुद को शानोशौकत से दूर रखते हैं। वह आज भी ओमाहा के उसी साधारण से मकान में रहते हैं, जो उन्होंने 1958 में मात्र 31,500 डॉलर में खरीदा था। इस घर में मात्र तीन बेडरूम हैं। बेशुमार दौलत के मालिक वारेन खुद कभी प्राइवेट जेट से यात्रा नहीं करते। उनका मानना है कि इंसान को वही काम करना चाहिए, जो उसे अच्छा लगे। वारेन बफेट कहते हैं, काम ऐसा चुनो कि सुबह उठते ही मन करे कि झट से ऑफिस पहुंच जाएं। अगर आप बेमन से नौकरी करने जाएंगे, तो कभी सफल नहीं होंगे।
वारेन ने हमेशा एक साधारण व्यक्ति का जीवन जीने की कोशिश की है। उनका मानना है कि पैसे से खुशियां नहीं खरीदी जा सकतीं। उनके शौक बेहद साधारण हैं। उन्हें डूबते सूरज के बीच समुद्र किनारे नंगे पांव चलना काफी पसंद है। उन्हें कॉफी शॉप में बैठक आते-जाते लोगों को देखकर सुकून मिलता है। वारेन कहते हैं, जीवन के साधारण पलों में बेशुमार खुशियां छिपी हैं। दूसरों से तुलना करके उनसे ज्यादा कमाने की धुन आपको कभी संतुष्ट नहीं कर सकती।
दौलत और शोहरत कमाने के साथ वारेन ने हमेशा दूसरों को मदद करने की कोशिश की। बिजनेस की व्यस्तताओं के बीच उन्होंने खुद को सामाजिक सरोकार से जोड़कर रखा। वर्ष 2006 में वारेन ने अपनी संपत्ति दान करने का फैसला किया। उन्होंने अपनी 83 फीसदी दौलत बिल ऐंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन को दान करने की घोषणा की। टाइम पत्रिका ने उन्हें दुनिया के सौ प्रभावशाली लोगों में शुमार किया। अप्रैल 2012 में मेडिकल टेस्ट में पता चला कि वारेन बफेट को कैंसर हो गया। पर पांच महीने के सफल इलाज के बाद वारेन कैंसर से जंग जीत गए। 83 साल की उम्र में भी वह खुद को ऑफिस और सामाजिक कार्यों में बिजी रखते हैं।