TATHAGAT AVATAR TULSI BIOGRAPHY HINDI

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तथागत अवतार  तुलसी

(TATHAGAT AVATAR TULSI)

बिहार में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। 

चाहे वो भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर हों, 

गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह हों

 या फिर 12 साल की उम्र में आईआईटी पास करने वाला सत्यम।

ये सभी विलक्षण प्रतिभा के धनी रहे हैं।

 ऐसा ही एक युवा तथागत अवतार तुलसी है

 जिसने महज 10 साल की उम्र में ग्रेजुएशन करके इतिहास बना दिया था।
तथागत अवतार  तुलसी (Tathagat Avatar Tulsi)का जन्म बिहार के एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार में नौ सितंबर, 1987 को हुआ था।पटना निवासी तुलसी नारायण के तीन पुत्रों में सबसे छोटे तथागत ही है।  तथागत के सबसे बड़े भाई नार्थ इस्ट में एक सेन्ट्रल स्कूल में सीनियर टीचर है। नंबर दो पटना में रहकर वकालत कर रहे है। तुलसी की विलक्षणता का अहसास उनके माता-पिता को उनके छह साल के होने पर ही हो गया था | इन्होंने 9 वर्ष की उम्र में हाईस्कूल पास किया, 10 वर्ष की उम्र में बी.एस.सी और 12 वर्ष की उम्र में एम.एस.सी. की परीक्षा  70.5 प्रतिशत अंकों के साथ पास कर गिनीज बुक्स ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज करा लिया। यही नहीं, तथागत ने 21वें साल में प्रवेश करते ही इंडियन स्कूल ऑफ साइंस, बेंगलुरू से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त कर ली। वहीं, 23 साल की उम्र में आईआईटी, मुंबई ने तथागत को बतौर एसोसिएट प्रोफेसर अपने से जोड़ लिया।। अगस्त 2009 में उन्होंने जेनरलाइजेशन ऑफ क्वांटम सर्च अलोगरिद्म विषय पर पीएचडी प्राप्त की।

बचपन से ही बुद्धिमान 

जब मै 6 साल का था तो गणित के लम्बे लम्बे सवाल बिना पेन और पेंसिल के बड़ी आसानी से हल कर लेता था
और इस कारन मै Mathematical Whiz kid के नाम से लोकप्रिय हो गया ।14 फरवरी1994 को आज (AAJ PAPER) पेपर में पहली बार मेरे बारे में कुछ छपा । उसके कुछ दिनों बाद जनसत्ता अख़बार में पहले पृष्ठ पर मेरे बारे में आर्टिकल छपा। उसके बाद बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने मुझे अपने आवास पर निमंत्रित किया और पुरस्कार राशि और कंप्यूटर देने की घोषणा की ।शुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विसेज के संस्थापक डॉ बिंदेश्वर पाठक ने अच्छे शिक्षा व्यवस्था के लिए दिल्ली में रहने के लिए मुझे वित्तिय सहायता भी की । एक 6 साल के लड़के के लिए ये सब चीजें ऐसी थी जिसको मैं अपने शब्दों में बयां नहीं कर सकता हूँ ।इन सबका मेरे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा ।

पुस्तक पढ़ कर जानने की इच्छा तीव्र हुई

9 सितम्बर 1993 को मेरे 16 वे जन्मदिन पर मेरे पिताजी ने प्रोफेसर स्टीफेन हाकिंग का प्रसिद्ध किताब “A Brief History of Time” मुझे गिफ्ट में दिया । मुझे ये किताब देने के पीछे पिताजी का कारण ये था कि मैं बार बार उनसे ब्रम्हांड  , पृथ्वी , तारे के बारे में प्रश्न पूछ पूछ कर उन्हें परेशान करता रहता था। मैंने ये किताब तीन दिन में ख़त्म कर दी और अब मैं ब्लैक होल्स ,आइंस्टीन थ्योरी ,क्वांटम मैकेनिक्स के बारे में जानने लग गया था।उसके बाद मैं एक दूसरी प्रसिद्ध पुस्तक “In Search of Big Bang ” को पढ़ना शुरू किया।उसके बाद मैं हमेशा वैज्ञानिक प्रश्नों के बारे में सोचता रहता था ।मैं अपना ध्यान स्कूल की पढाई पर केंद्रित नहीं कर पा रहा था।मैं कुछ रिसर्च करना चाहता था और स्कूल की पढ़ाई इसमे बहुत बड़ी बाधा थी । तब मैंने जितनी जल्दी हो सके स्कूल के पढ़ाई ख़त्म करने का निर्णय लिया।

स्कूल का सफ़र 

जब मैं आठ साल का था तो नियम के अनुसार मुझे 6 क्लास की परीक्षा देने की इजाजत नहीं थी पर फिर भी मैंने परीक्षा दिया।स्कूल के वार्षिकोत्सव में के दिन परिणाम सुनाया गया जिसमें मेरा नाम नहीं था। यह मेरे लिए आश्चर्यजनक था क्योंकि मेरी परीक्षा बहुत ही अच्छी गयी थी।सब लोग काफी खुश थे सिवाय मेरे। मैं पूरी तरह से निराश हो गया था क्योंकि मेरा सारा परिश्रम बर्बाद हो गया था । उसके बाद स्कूल ऑथिरिटी ने बताया कि मैंने न सिर्फ क्लास में टॉप किया है बल्कि पूरे स्कूल में टॉप किया है , लेकिन वे मुझे प्रोमोट नहीं कर सकते क्योंकि में अंडर एज हूँ।लेकिन ये बात कोई नहीं जानता था।

दिल्ली उच्च न्यायलय भी जाना पड़ा 

अक्टूबर 10996 के अंतिम सप्ताह में मुझे गवर्नमेंट ऑफ़ दिल्ली की तरफ से मुझे एक पत्र आया I श्री पी के दुबे ने मुझे Age Relaxation Granted किया था।अब मैं अपनी पढ़ाई बिना किसी रुकावट के जारी रख सकता था ।मैंने सेल्फ स्टडी के बल पर सातवाँ, आठवाँ, नौंवा, और दसवाँ का बहुत सारा चीज ख़त्म कर दिया था।अब मैं फिर से सातवाँ क्लास नहीं पड़ना चाहता था। मैंने पिताजी से बोला तो उन्होंने एक 9 साल के लड़के को 10 वी क्लास की परीक्षा देने के लिए CBSE वालो से इजाजत मांगी ।लेकिन CBSE के लोग इसके पूर्णतः विरुद्ध हो गए और हमें इजाजत नहीं दी।फिर अंत में हमें दिल्ली उच्च न्यायलय का दरवाजा खटखटाना पड़ा । इस केस ने अन्तर -राष्ट्रिय मीडिया का भी ध्यान आकर्षित किया।और अंततः जित हमारी हुई और “Tathagat got HC Tathastu !”.

कॉलेज का यादगार समय (1997-1999)

मैं नहीं जानता की ये तीन सालों के बारे में मै  क्या लिखूं। क्योंकि मैं बच्चा नहीं था क्योंकि मैंने इस समय कॉलेज ख़त्म कर दिया था । जवान भी नहीं था क्योंकि मैं 12 साल से भी छोटा था ।बस मै  ये जनता था कि जल्दी से जल्दी मुझे पढ़ाई ख़त्म करनी है और रिसर्च शुरू करनी है।अब तक मैं मीडिया की नजरों में स्टार बन गया था।
इसके बाद मैंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।

 28 अप्रैल 1998 को पटना विश्वविद्यालय से B.sc करने की इजाजत मांगी।एक ऑफिसियल इंटरव्यू के बाद मुझे डायरेक्ट B.sc. की परीक्षा देने की इजाजत मिल गयी।लेकिन तीनो साल की परीक्षा एक साथ देने का कोई नियम नहीं था ।मैं पटना उच्च न्यायालय का शुक्रिया करना चाहूंगा जिसने सिर्फ मेरे   लिए ये नियम तोडा और मै 10 वर्ष की अवस्था में ग्रेजुएट की परीक्षा पास कर सका ।

फिर मैंने जनवरी 1999 में M.Sc में एडमिशन लिया।इस बार मुझे न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाना पड़ा बल्कि बिहार के राज्यपाल श्री बी एम लाल ने मुझे इसकी इजाजत दे दी थी।और इस तरह पहली बार कोई 11 साल का लड़का Msc की परीक्षा पास किया था । यह अपने आप में एक विचित्र बात थी की कैसे 11 साल की अवस्था का लड़का Msc स्तर का फिज़िक्स के कांसेप्ट को  समझ सकता हैं। लेकिन मैं खुश था क्योंकि मैंने यह कर दिखाया था। ये तीन साल मेरे लिए अद्भुत था क्योंकि मैं यह समझ सकने में सक्षम नहीं था कि मेरे साथ क्या हो रहा है।

राष्ट्रिय स्तर की परीक्षा में भी परचम लहराया (2000-2002)

 M.Sc.करने के तुरंत बाद मेरा लक्ष्य National Eligibility Test (NET), क्वालीफाई करने का था जिसको CSIR Conduct करती थी।जूनियर फेलोशिप एंड लेक्चररशिप के लिए न्यूनतम उम्र सीमा 19 वर्ष थी लेकिन मैं 12 वर्ष का था । थोड़ी दिक्कत के बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तरफ से पेक्षा में बैठने के इजाजत मिल गयी और मैंने दिसम्बर 2000 में परीक्षा दिया।लेकिन ये इजाजत National Physical Laboratory (NPL). के इंटरव्यूकमिटी के पॉजिटिव रिकमेन्डेशन पर अधारीत थी । परीक्षा का परिणाम मई 2001 में निकला और इस तरह पहली बार मैंने कोई राष्ट्रिय स्तर की परीक्षा पास की थी और मैं न्यूज़ में छा गया।

  बचपन नहीं जी पाने का दुःख             

अपने बारे में बहुत सारी भ्रांतियो को साफ करते हुए तथागत ने कहा कि मैं भी सामान्य तौर पर बचपन चाहकर भी कहां बीता पाया हूं ? तथागत ने कहा कि बचपन को मैं नहीं जानता और इसका दुख अब होता है। सात साल की उम्र में छठी क्लास का स्टूडेंट रहा था। इसके बाद फिर कभी क्लास रूम में नहीं गया। लिहाजा आईआईटी में तो पहले अपने स्टूडेंट के साथ तालमेल बैठाना पड़ा। क्लासरूम के दांवपेंच को नहीं जानता था,और अभी भी नहीं जानता हूं। मगर मेरा यह सौभाग्य था कि आईआईटी मुंबई में पढ़ाने का मौका और मैं जल्द ही एडजस्ट कर गया। एक प्रोफेसर होने के बाद भी ज्यादातर सहयोगी समेत ज्यादातर टीचिंग स्टाफ और सिक्योरिटी वाले अक्सर और अमूमन तथागत को छात्र या प्रोफेसर के रूप में पहचानने में भूल कर जाते है।

बुद्धि और ज्ञान का अद्भुत संगम

तथागत की माने तो, ‘एक छात्र के लिए विश्लेषण, कल्पना और स्मरण की क्षमता उसकी मूल पूंजी है और जिसने भी अपने जीवन में इसे सही तरीके से अपनाया, सफलता उसके कदम चूमती रही।’ अकसर कहा जाता है कि बुद्धि जन्मजात होती है, ज्ञान अर्जित। लेकिन क्वांटम सर्च ऐल्गरिज्म पर अपना सिद्धांत प्रस्तुत करने वाले तथागत अवतार तुलसी में बुद्धि और ज्ञान का अद्भुत संगम है।

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