कुछ ही दिनों पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित भारतीय हॉकी की गोलकीपर सविता पुनिया के गोलकीपर बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प है . सविता पुनिया ने दादाजी की जिद पर परिवार से दूर रहकर हॉकी खेलना शुरू किया . सविता पुनिया के परिवार की आर्थिक हालत इतनी ख़राब थी की गोलकीपिंग के लिए सेफ्टी किट खरीदने के लिए उनके पिता को अपने एक रिश्तेदार से पैसे उधार लेने पड़े . सविता ने अपने परिवार को कभी गलत साबित नहीं होने दिया और उसने न सिर्फ अपने राज्य का बल्कि अपने देश का भी नाम रोशन किया . लेकिन दुःख की बात है की 10 साल तक भारतीय हॉकी टीम के साथ खेलने के बाद भी अभी तक उन्हें नौकरी का आश्वाशन ही मिल रहा है .
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SAVITA PUNIA BIOGRAPHY IN HINDI
सविता पुनिया का जीवन परिचय
सविता पुनिया का जन्म 11 जून 1990 को हरियाणा के एक छोटे से गाँव में हुआ था . बात 2004 की है जब उनके दादाजी रंजित पुनिया पहली बार दिल्ली गए . वहां उन्हें एक रिश्तेदार के साथ हॉकी मैच देखने का अवसर मिला . हॉकी मैच देखकर उन्हें इतना मजा आया की उन्होंने सोचा की काश ! मेरा भी कोई बच्चा हॉकी का खिलाडी होता . कुछ दिन बाद दादाजी दिल्ली से वापस गांव आए। लेकिन उनके मन में हॉकी मैच के रोमांचकारी पल अब भी ताजा थे। कुछ लोगों से इस बारे में चर्चा की, तो पता चला कि लड़के ही नहीं, लड़कियां भी हॉकी खेलती हैं। उस समय सविता छह साल की थीं। दादाजी ने तय किया कि उनकी पोती हॉकी खेलेगी। पापा ने भी दादाजी की बात मान ली।
हॉकी की ट्रेनिंग के लिए स्कूल में हुआ दाखिला
हॉकी की ट्रेनिंग गांव में रहकर संभव नहीं थी,इसलिए सविता का दाखिला सिरसा के महाराजा अग्रसेन बालिका स्कूल में कराया गया। दरअसल इस स्कूल में खेल की बेहतरीन सुविधाएं थीं, इसलिए दादाजी को लगा कि यहां पढ़ने से पोती को खेल में जाने का मौका मिलेगा। तब वह कक्षा छह की छात्रा थीं। स्कूल गांव से करीब दो घंटे की दूरी पर था। स्कूल में हॉस्टल की सुविधा थी। इसलिए सविता को हॉस्टल में डाल दिया गया .पापा ने सविता से वादा किया कि वह अक्सर उनसे मिलने आया करेंगे।
माँ की बहुत याद आती थी
शुरुआत में सविता का स्कूल में बिल्कुल मन नहीं लगता था। मां की बड़ी याद आती थी। वह कोई न कोई बहाना बनाकर घर आ जाती थीं। जब वापस जाने का वक्त आता, तो आंखों में आंसू भरकर मां से कहतीं, मैं नहीं जाऊंगी तुम्हें छोड़कर। मां लीलावती भी भावुक होकर पति और ससुर को समझाने की कोशिश करतीं कि बेटी को हॉस्टल न भेजा जाए। पर पापा मोहिंदर बेटी को समझा-बुझाकर वापस भेज देते। शुरुआत के एक साल यूं ही बीत गए। ज्यादातर समय फिटनेस दुरुस्त करने में बीता।
उधार लेकर दिया सेफ्टी किट
सविता की उस समय लम्बाई तीन फीट आठ इंच थी और वो क्लास में सबसे लम्बी भी थी । साथ ही उनके अंदर गजब की एकाग्रता भी थी, जो विपक्षी टीम के मूवमेंट को समझने के लिए बहुत जरूरी है। कोच सुंदर सिंह को लगा कि इस लड़की को गोलकीपर बनाया जा सकता है। गोलकीपिंग की ट्रेनिंग शुरू हुई। सविता का प्रदर्शन वाकई बढ़िया रहा। कोच के कहने पर पापा उनके लिए रक्षक किट लेकर आए। इसकी कीमत थी करीब 20,000 रुपये। इसके लिए पापा को एक रिश्तेदार से उधार लेना पड़ा। पर वह बहुत खुश थे। उनका एक ही सपना था कि बेटी बेहतरीन गोलकीपर बने।
सविता कहती हैं-
पापा ने किट के लिए रुपये उधार लिए, तो मुझे लगा कि मैं कितनी भाग्यशाली हूं, मेरे घरवाले मुझे खिलाड़ी बनाना चाहते हैं, जबकि गांव की लड़कियों को घर से बाहर निकलने की भी इजाजत नहीं थी।
लक्ष्य को लेकर बेहद गंभीर
अब सविता अपने लक्ष्य को लेकर बेहद गंभीर थी । उसका एक ही लक्ष्य था, बेहतरीन गोलकीपर बनना। स्कूल टीम में उनका प्रदर्शन शानदार रहा। उसने बहुत मेहनत किये और घर जाना बंद कर दिया । 18 साल की उम्र में उन्हें नेशनल टीम में जगह मिली। 2009 में जूनियर एशिया कप में कांस्य पदक मिला। दादाजी की खुशी का ठिकाना नहीं था।
सविता कहती हैं-
दादाजी पढ़े-लिखे नहीं थे, पर मेरे बारे में खबरें पढ़ने के लिए उन्होंने पढ़ना सीखा। एक बार जब मैं टूर्नामेंट से घर लौटी, तो दादाजी ने अखबार दिखाते हुए कहा, देखो इसमें तुम्हारी तारीफ छपी है। उनका उत्साह देखकर मैं रो पड़ी।
आर्थिक हालत अभी भी नहीं सुधरे
अब सविता मशहूर हो चुकी थीं और गांव में उनके परिवार का सम्मान बढ़ गया। लेकिन घर के आर्थिक हालात अभी भी पहले जैसे ही थे । पापा दवा की दुकान में काम करते थे। मुश्किल से घर के खर्चे पूरे हो पाते थे। सविता के पास आय का कोई जरिया नहीं था।
बीमार माँ ने कभी भी सविता को नहीं रोका
मां बीमार हो तो अमूमन लड़कियों को घर का काम संभालने की नसीहत दी जाती है। लेकिन जब सविता ने खेलना शुरू किया तो उनकी मां को लीलावती देवी को गठिया हो गया था। घर में दिक्कत थी कि काम कौन करे? सविता हॉकी खेलती थी और उनकी मां कतई नहीं चाहती थी की वह घर के काम में उलझ कर रह जाये । उन्होंने सविता को हॉकी खेलने के लिए बाहर भेज दिया।
सविता कहती हैं-
मुझे अपनी जरूरतों के लिए पापा से पैसे मांगने पड़ते थे। मैं जब भी मेडल जीतकर आती थी, मां एक ही सवाल करतीं- अब तो तुझे नौकरी मिल जाएगी न? यह सुनकर दुख होता था।
दादाजी हरपल मेरे साथ है
2013 में उन्हें बड़ी कामयाबी मिली, जब भारतीय टीम को वुमेन एशिया कप में कांस्य पदक मिला। उस दौरान गोलकीपर सविता सुर्खियों में छाई रहीं। जापान में हॉकी वल्र्ड लीग में भी उनका प्रदर्शन शानदार रहा। 2015 में उन्हें बलजीत सिंह गोलकीपर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इस मौके पर दादा नहीं थे। सविता बताती हैं- 2013 में दादाजी हमें छोड़कर चले गए। पर मुझे लगता है कि वह हर पल मेरे साथ हैं और मुझे आशीर्वाद दे रहे हैं।
2017 महिला एशिया कप के फाइनल यादगार
सविता कहती हैं, ‘मेरे लिए मेरे अतर्राष्ट्रीय करियर में भारत को 2017 में जापान में महिला एशिया कप के फाइनल में चीन के खिलाफ शूटआउट में शानदार बचाव कर खिताब जिताना हमेशा याद रहेगा। साथ ही भारत को 2016 के रियो ओलंपिक के लिए क्वॉलिफाई कराने में योगदान करना भी याद रहेगा। हम भले ही जापान से जकार्ता में एशियाई खेलों के फाइनल में महज एक गोल से हार कर स्वर्ण पदक जीतने से चूक गए लेकिन हमारी टीम ने पिछले करीब एक डेढ़ बरस से लगातार बेहतरीन प्रदर्शन किया।
अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित
एक तरफ सविता मेडल पर मेडल जीत रही थी तो दुसरे तरफ गाँव के कुछ लोग सविता के पापा को सलाह दे रहे थे की बहुत हो गया खेल कूद अब इसकी शादी करा दो कयोंकि मेडल जितने से पेट नहीं भरता . पर पापा ने बेटी का मनोबल नहीं गिरने दिया। एशियाड खेलों में भारतीय महिला हॉकी टीम ने रजत पदक जीता। इसके बाद अर्जुन पुरस्कार के लिए सविता के नाम की सिफारिश की गई। भारत की 28 बरस की बेहतरीन और मुस्तैद ओलंपिक हॉकी गोलरक्षक सविता पूनिया कहती हैं वह खुशकिस्मत हैं कि उन्होंने पहले ही बार अर्जुन अवॉर्ड के लिए आवेदन किया और यह अवॉर्ड मिल गया। अब अर्जुन पुरस्कार के बाद तो मुझे लगता है कि 4-5 साल तक कोई मेरी शादी की बात नहीं करेगा ।’
हरियाणा सरकार से नौ साल से मिल रहा नौकरी का आश्वासन
भारतीय हॉकी टीम की उपकप्तान सविता पूनिया ने अर्जुन अवॉर्ड के लिए नवाजे पर कहा, ‘मुझे अर्जुन अवॉर्ड अपनी पूरी भारतीय टीम की 18 लड़कियों, पूरे स्पोर्ट स्टाफ और परिवार से मिले सहयोग के कारण ही मिल पाया है। हॉकी दरअसल टीम गेम है। हॉकी में बिना पूरी टीम के सहयोग से किसी भी टीम की कामयाबी और जीत मुमकिन नहीं है। मैंने हॉकी में आज अर्जुन अवॉर्ड सहित जो कुछ भी पाया पूरी टीम के सहयोग के कारण ही पाया। मेरी हॉकी में कामयाबी में परिवार के समर्थन का बेहद अहम योगदान है। हरियाणा सरकार से मैं पिछले नौ बरस से नौकरी की गुहार कर रही हूं लेकिन मुझे केवल आश्वासन मिला लेकिन नौकरी नहीं।’
उम्मीद है जल्द ही नौकरी का इंतजार ख़त्म हो जायेगा
बेरोजगारी से परेशान रहीं सविता ने यह भी बताया कि खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने एशियन गेम्स में सिल्वर मेडल जीतकर टीम के लौटने के बाद उन्हें व्यक्तिगत रूप से नौकरी दिलाने का आश्वासन दिया है। पिछले 10 साल से भारतीय सीनियर टीम के साथ खेल रहीं गोलकीपर ने कहा, ‘एशियाड से लौटने के बाद राठौड़ सर ने खुद एक समारोह में मिलने पर मुझे बुलाकर नौकरी का आश्वासन दिया। मुझे उम्मीद है कि 9 साल का मेरा इंतजार अब खत्म हो जाएगा और पूरा ध्यान खेल पर लगा सकूंगी।’