दोस्तों आज हम बताने जा रहे है बिहार के एक ऐसे लाल की जिन्हें जिस काम की अपेक्षा की जाती है, वे उसे पूरा कर दिखाते हैं. वे बिना थके अपेक्षाओं से भी आगे बढ़कर अपने काम को अंजाम देते हैं.अपनी लगन, निष्ठा और साहस के साथ वे इस बात की मिसाल हैं कि नौकरशाह को जनसेवा के प्रति कितना समर्पित होना चाहिए. बिहार में सड़कों और बिजली की सूरत बदलने का श्रेय इन्हे ही जाता है . जी हा हम बात कर रहे है नागरिक प्रशासन के लिए प्रधानमंत्री का एक्सलेंस अवार्ड से सम्मानित 1991 बैच के आइएएस ऑफिसर अमृत प्रत्यय की
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टूटी हुई कुर्सियां ,दिवारों में सीलन,और फटे हुए परदे ; हम कोई कबाड़ खाने की तस्वीर बयां नहीं कर रहे बल्कि कुछ सालो पहले बिहार राज्य पुल निर्माण निगम (BRPNN) के दफ्तर का ऐसा ही हाल था. वर्ष 2006 में इसकी हालत बहुत खराब थी। राज्य सरकार तक ने इसे बंद करने का मन बना लिया था .इसी दफ्तर में बैठकर बिहार को रफ्तार देने की जिम्मेदारी थमाते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने IAS अधिकारी प्रत्यय अमृत तो बिहार राज्य पुल निर्माण निगम BRPNN का मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया था.
साल 2006 में जब प्रत्यय अमृत ने जिम्मेदारी संभाली थी तब BRPNN के खाते में महज 47 करोड़ रूपय थे. लेकिन IAS प्रत्यय अमृत ने महज दो साल में वो कारनामा कर दिखाया जिसे देख कर सरकार भी हैरान थी. कल तक आर्थिक तंगी से परेशान BRPNN दो साल के भीतर ही कोसी बाढ़ के दौरान मुख्यमंत्री राहत कोष के लिए 20 करोड़ रुपये दान करने की स्थिति में था. प्रत्यय अमृत ने अपने दम पर ना सिर्फ दिवालिया हो चुके एक उपक्रम को चलाया बल्कि उसे इतना आगे ले गए की जुलाई 2009 में बिहार राज्य पुल निगम, आइएसओ 9001:2000 और 1410:2004 प्रमाणित कंपनी बन गई . जहां एक ओर बिहार में 30 साल में 300 पुल बने थे वहीं प्रत्यय अमृत के निर्देशन में महज तीन साल में 314 पुलों का निर्माण हो गया।
प्रत्यय अमृत गोपालगंज जिला के हथुआ सब डिविजन के भरतपुरा गांव का निवासी है . उनके पिताजी बीएनमंडल यूनिवर्सिटी के वॉयस चांसलर थे. उनकी मां भी प्रोफेसर थीं. उनकी पढ़ाई लिखाई मुजफ्फरपुर से शुरू हुई. 10वीं आसनसोल से हुई. दिल्ली से बारहवीं और हिंदू कॉलेज से बीए व एमए किया. उन्होंने हिस्ट्री से ऑनर्स किया था. पोस्ट ग्रेजुएशन के अगले ही दिन उन्हें वैंकटेश्वर कॉलेज में लेक्चररशिप का जॉब मिल गया था. कुछ महीनों तक उन्होंने वहां भी पढ़ाया है. उसके बाद 1990 में आइपीएस और 1991 में आइएएस बने .
प्रत्यय अमृत कहते है की अन्य घरों की तरह ही उनके घर का भी माहौल था. शुरुआत से ही उनको माता-पिता का गाइडलाइन मिला है. उन दिनों लोग अपने बच्चों को हॉस्टल में रख कर नहीं पढ़ाते थे. हमारी आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद हमारे पैरेंट्स ने हम भाई-बहनों को हॉस्टल में रख कर पढ़ाया. हम तीनों भाई-बहन सोचते थे कि जिस कठिनाई में रख कर पैरेंट्स हमें पढ़ा रहे हैं, ऐसे में हमें कुछ कर दिखाना चाहिए. उसके बाद हम लोग परिश्रम करते रहे. माता-पिता का आशीर्वाद रहा. हम आइएएस बने. हम सबने पढ़ाई की एक स्ट्रेटजी तैयार की थी. मैं हमेशा ग्रुप स्टडी को पसंद करता हूं. ध्यान रख कर लाइट माइंड के दोस्तों के साथ ऐसा ग्रुप बनायें. प्रत्यय अमृत की बहन भी आइएएस है.
आपने अक्सर सुना होगा की एक फोन ने किसी शख्स की किस्मत बदल दी. लेकिन ऐसा पहली बार हुआ जब एक फोन ने पुरे राज्य की किस्मत बदल दी हो. 1991 बैच के अधिकारी प्रत्यय अमृत उस समय दिल्ली में डेपुटेसन पर थे. तभी बिहार के एक अधिकारी ने उन्हे फोन कर पूछा कि क्या वो बिहार आना चाहते हैं. बिहार में उन्हें एक मृत पड़ी संस्थान बिहार राज्य पुल निर्माण निगम को चलाने की जिम्मेदारी दी जा रही थी, लेकिनबिहारी होने के कारण बिहार प्रेम उन्हें वापस बिहार खींच लाया. फिर क्या था एक बिहारी ने जो कर के दिखाया वो आज सबके सामने है
ऐसा नहीं है की प्रत्यय अमृत ने ये सब बड़ी आसानी से कर दिखाया बल्कि उन्हें अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा. प्रत्यय अमृत ने जब काम संभाला था तब विभाग के कर्मचारियों का मनोबल टूट चुका था. प्रत्यय अमृत के पास पेंडिंग पड़ी योजनाओं की एक लंबी सूची थी. जिसमें से कुछ तो 17 साल से लंबित पड़े प्रोजेक्ट थे. पिछले एक दशक में जिस विभाग को चूस कर खोखला बना दिया गया था उसी विभाग को चमकाकर प्रत्यय अमृत ने बिहार को रफ्तार देने का काम किया. बिहार राज्य पुल निर्माण निगम के प्रबंध निदेशक (BRPNN) के रूप में, उन्होंने तीन साल में लगभग 300 प्रमुख पुल परियोजनाओं के पूरा होने का निरीक्षण किया था. ऐसे माहोल में जहां एक ईंट लगाना भी मुश्किल था वहां 300 पुल का काम पूरा करवाना किसी पहाड़ को हिलाने से कम नहीं था.
प्रत्यय का मानना है कि कर्मचारियों को काम करने के लिए बेहतर सुविधा और माहौल जरुर मुहैया करानी चाहिए, तभी आप अधिक से अधिक परिणाम पा सकते हैं। प्रत्यय ने चुनौती को समझते हुए सबसे पहले अपनी टीम को मजबूत करने की ठानी. उन्होंने अपनी टीम के अधिकारियों और इंजीनियरों को आउट-ऑफ-द-बॉक्स समाधान निकालने की छूट दी. जब अधिकारियों को काम करने की आजादी मिली तो किसी ने अपने बॉस को निराश नहीं किय़ा. हलांकी तारीफ टीम लीडर की भी करनी होगी क्योंकि जब जब उन्हें लगा की टीम ने कोई बड़ा काम किया है तब-तब उन्होंने अपनी टीम को सम्मानित भी किया. इंजीनियरों और कर्मचारियों में जो विश्वास प्रत्यय अमृत ने दिखाया उसका ही परिणाम था कि BRPNN आज इतनी बहतर स्थिति में है .
BRPNN ने अपने स्थापना के तीस सालों में जहां सिर्फ 314 पुल बनाए थे वहीं 2006 में प्रत्यय अमृत के आने के बाद सिर्फ तीन साल में ही 336 पुल बनाकर ऐसा रिकार्ड बना दिया जिससे सभी लोग आश्चर्यचकित हो उठे . तीन साल में बने इसी 336 पुल की बदौलत ही नीतीश कुमार ने पूरे बिहार में सड़कों का जाल बिछाया. जिससे बिहार की पुरानी तस्वीर बदल गई. IAS अधिकारी प्रत्यय अमृत को जब BRPNN का मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया था उस वक्त विभाग के खाते में महज 47 करोड़ रूपय थे. लेकिन आज विभाग का कारोबार 768 करोड़ तक पहुंच गया है.जो संस्था बंद होने के कगार पर थी, उसने कोशी बाढ़ पीड़ितों के लिए 20 करोड़ रुपए की मदद दी.ये प्रत्यय अमृत के प्रयासों का ही परिणाम था कि जुलाई 2009 में बिहार राज्य पुल निगम, आइएसओ 9001:2000 और 1410:2004 प्रमाणित कंपनी बन गई। हलांकि इस काम के लिए उन्हें मेहनत भी बहुत करनी पड़ी है. जानकारों की माने तो अमृत ने इस काम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए 40 हज़ार किलोमीटर कर का सफर किया.
प्रत्यय अमृत के काम को जनता ने हमेशा सराहा है। जब ये कटिहार के जिलाधिकारी थे, पहली बार सरकारी और प्राइवेट संस्थाओं को जिला अस्पताल से मिलकर काम करने के लिए कहा। इसी तरह प्रत्यय अमृत जब छपरा के जिलाधिकारी थे तो पहली बार एशिया के सबसे बड़े पशु मेला सोनपुर में सीसीटीवी कैमरा को लगवाया, जो सुरक्षा के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण कदम था। वर्ष 2011 में प्रत्यय अमृत को बिहार स्टेट रोड डेवलपमेंट कारपोरेशन का मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया। मैनेजिंग डायेरेक्टर के तौर पर प्रत्यय अमृत ने निर्णय लिया कि संस्था के फंड का कुछ हिस्सा, आर्थिक रुप से पिछड़ी लड़कियों के पढ़ाई और उनको आत्मनिर्भर बनाने पर खर्च किया जाए। प्रत्यय अमृत को 2011 में पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के लिए प्रधानमंत्री एक्सिलेंस अवार्ड भी मिल चुका है।
यह जुलाई माह का एक दिन था. राजधानी पटना में दीघा-एम्स की सड़क के निर्माण में लगी कंपनी की गड्ढ़ा खोदने वाली भीमकाय मशीन अर्थमूवर ने गलती से बिजली के मोटे-मोटे केबल तारों को क्षतिग्रस्त कर दिया. इन केबलों के जरिए 220/132/33 केवी के खगौल ग्रिड सब-स्टेशन से दीघा ग्रिड को बिजली पहुंचाई जाती है. बिजली की यह लाइन पश्चिमी पटना के 2,00,000 से ज्यादा उपभोक्ताओं को बिजली की आपूर्ति करती है. केबलों के टूटने से पूरा पश्चिमी पटना अंधेरे में डूब गया. 132 केवी का खगौल केबल 2 दिसंबर, 2013 और 30 मार्च, 2014 को दो बार टूट चुका था. दोनों ही बार केबल की मरम्मत करने में हफ्ते भर से ज्यादा समय लगा था.
लेकिन 1991 बैच के आइएएस अधिकारी प्रत्यय अमृत को जिन्होंने एक माह पहले ही ऊर्जा सचिव का कार्यभार संभाला था, को पिछले रिकॉर्डों से कुछ भी लेना-देना नहीं था. उन्होंने विशेषज्ञों और आधुनिक केबलों को जोडऩे वाले उपकरणों का इंतजार करने की जगह कोई नया उपाय आजमाने का फैसला किया. वे इस कोशिश में कामयाब भी रहे और महज 36 घंटे के भीतर बिजली बहाल हो गई. उस वक्त तक मध्य प्रदेश के सतना से केबल विशेषज्ञ पहुंच भी नहीं पाए थे. उन्होंने यह सब कैसे किया. अपने इंजीनियरों के साथ सोच-विचार करने के बाद अमृत ने इंजीनियरों से कहा कि वे दीघा ग्रिड को बिजली की सप्लाई करने के लिए क्षतिग्रस्त केबल से एक अस्थायी लाइन स्थापित करें.
जमीन खोदने वाली मशीन अर्थमूवर ने केबल को क्षतिग्रस्त कर दिया था, लेकिन बारीकी से जांच करने पर पाया गया कि एक सर्किट के दो केबल और दूसरे सर्किट का एक केबल अब भी सही-सलामत था. अमृत ने इंजीनियरों से कहा कि वे इन्हीं तीन केबलों से एक वैकल्पिक सर्किट बनाएं और दीघा ग्रिड को दी जाने वाली बिजली बहाल करें. यह काफी मुश्किल और खतरनाक काम था. यह प्रयोग अगर असफल रहता तो स्थिति और भी बिगड़ सकती थी. लेकिन उनकी कोशिश काम कर गई. वहीं दूसरी ओर केबल मरम्मत के लिए सात दिन का जो अनुमान लगाया गया था, वह सही साबित हुआ. केबल की मरम्मत का काम पूरा होने के लिए आठ केबल-ज्वाइंट किट की जरूरत होती है, जिन्हें स्वीडन से मंगाना पड़ा और वे तीन दिन बाद ही पटना पहुंच पाए. केबल की मरम्मत करने में हफ्ते भर से ज्यादा समय लग गया. पर उपभोक्ताओं को मुसीबत नहीं झेलनी पड़ी, क्योंकि अमृत की कोशिशों से तैयार वैकल्पिक सर्किट से उन्हें बराबर बिजली मिलती रही.
एनर्जी कैफे को बिहार के विद्युत विभाग के मुख्यालय में बनाया गया है। इस कैफे का बनाने के लिए बिजली विभाग के सारे खराब और कबाड़ सामान का दोबारा इस्तेमाल किया गया है यहां तक की यहां के फर्नीचर तक पुराने कबाड़ से बने और एनर्जी कैफे नाम दिया गया है। आपको बता दें कि इस कैफे को बनाने का आइडिया बिहार के आईएएस और बिजली विभाग के सीएमडी रहें प्रत्यय अमृत का था। इस कैफे को प्रोफेशनल आर्टिस्ट मंजीत और नेहा सिंह ने डिजाइन किया है ।
दोनो लोगो को प्रत्यय ने टाॅस्क दिया था कि यहां पर जितनी भी चीजें है कबाड़ की उन्हें फिर से इस्तेमाल करके उन्हें आकर्षक बनाना है। दोनाे ने मिलकर पुराने ड्रम को काटकर कुर्सी का रूप तो क्वायल लपेटने वाले लकड़ी के मोटे गठ्ठर को सेंटर टेबल बना डाला। दोनों ने बताया कि कबाड़ को फिर से आकर्षक बनाना बहुत मुश्किल था लेकिन हमनें चीजो को नया रूप दे ही दिया । इलेकिट्रक पैनल्स को कुर्सी और टेबल बनाया तो इंसुलेटर भी काम आ गया।दोनो ने आॅयल ड्रम को बैठने का टूल तैयार किया और इंसुलेटर से डस्टबिन इसके अलावा बिजली के तारो से मार्डन आर्ट बनाये। मीनू का बनाने के लिए दीवाल घड़ी के साथ लकड़ी के पुराने टुकड़े का इस्तेमाल किया।
कैफे का एक सोफा लोगों को अपनी तरफ खास आकर्षित करता है। दरअसल एक पुरानी एंबेसेडर कार को आधा काट कर उसे सोफा में बदला गया है और उसमें गद्दे लगाये गये हैं।
स्वभाव से बहुत सरल प्रत्यय अमृत कभी भी हार न मानने वाले व्यक्ति हैं। उनका मानना है कि किसी भी काम को टालना नहीं चाहिए, उसे तुरंत करना चाहिए। यही जीवन में सफलता की कूंजी है। फेम इंडिया मैगजीन-एशिया पोस्ट सर्वे के ‘असरदार आईएएस 2018’ के सर्वे में विभिन्न पैरामीटर में की गई रेटिंग में प्रत्यय अमृत को प्रमुख स्थान पर पाया है।
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