दोस्तों आज हम बताने जा रहे है एक ऐसे शख्स के बारे में जिनका जन्म तो बिहार में हुआ लेकिन वे चार बार नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके है . छह दशक से भी लम्बी राजनितिक सफ़र वाले इस नेता ने नेपाल को माओवादी संघर्ष से निजात दिलाने और उन्हें राजनीति की मुख्यधारा में जोड़ने में अहम भूमिका निभाई . जी हाँ हम बात कर रहे है नेपाल के शीर्ष राजनेता और नेपाली कांग्रेस के भूतपूर्व अध्यक्ष गिरिजा प्रसाद कोइराला के बारे में .
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जन्म
गिरिजा प्रसाद कोइराला का जन्म 4 जुलाई 1925 को बिहार के सहरसा जिले में हुआ था . उनके पिता का नाम कृष्णा प्रसाद कोइराला था जो की उस समय नेपाल से निर्वासित होने के कारण बिहार में रह रहे थे . उनकी पढाई लिखाई भारत में ही हुयी . उन्होंने उच्च शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कालेज से प्राप्त की . कोइराला नेपाल के उन नेताओ में से थे जिन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और इस दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा। वे आजीवन भारत के साथ अच्छे संबंधों के पक्षधर रहे।
मजदूरों के हक के लिए चलाया अभियान
नेपाल में उनका परिवार बिराटनगर में रहता था। वहां उन्होंने 1947-48 में जूट मिल के मजदूरों के हक के लिए जोरदार अभियान चलाया। यह अभियान ही उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत रही। 1948 में उन्होंने नेपाल ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना की और चार साल बाद नेपाल कांग्रेस के मोरांग जिला प्रमुख बने।
सात साल जेल में रहना पड़ा
नेपाल में 1959 में हुए पहले लोकतांत्रिक चुनाव में कोइराला के भाई बी.पी. कोइराला और उनकी पार्टी को जबरदस्त जीत मिली। लेकिन राजा महेन्द्र के नेतृत्व वाली सरकार ने कोइराला को गिरफ्तार कर लिया। गिरिजा प्रसाद कोइराला को सात साल जेल में रहना पड़ा।
लोकतांत्रिक रूप से चुने गए पहले प्रधानमंत्री
1967 में कोइराला जेल से रिहा हुए और अपनी पार्टी और कुछ नेताओ के साथ निर्वासन में भारत चले गए . 1975 में वे नेपाली कांग्रेस के महासचिव बने . करीब ग्यारह साल बाद 1971 में उन्होंने स्वदेश वापसी की। वे 1990 के जन आन्दोलन में मुख्य रूप से सक्रीय रहे . लगातार संघर्ष झेलते हुए 1991 में वह प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए. तब वह देश में लोकतांत्रिक रूप से चुने गए पहले प्रधानमंत्री बने।
चार बार बने नेपाल के प्रधानमंत्री
कोइराला कुल चार बार देश के प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए। सन् 1991 से 1994, 1998 से 1999, 2000 से 2001 और 2006 से 2008 तक उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली। मई 2008 में वह अंतरिम सरकार के कार्यकारी प्रधानमंत्री भी बने। वह अपनी बेटी सुजाता कोइराला को भी देश की प्रधानमंत्री बनते देखना चाहते थे, लेकिन उनका यह सपना उनके साथ ही चला गया।
माओवादी संघर्ष से दिलाया निजात
नेपाल को माओवादी संघर्ष से निजात दिलाने और उन्हें राजनीति की मुख्यधारा में जोड़ने में कोइराला ने अहम भूमिका निभाई। उनके करिश्मे की वजह से ही माओवादियों और सात राजनीतिक दलों के बीच 12 सूत्री समझौते का खाका तैयार करना संभव हो सका और नेपाल में हिंसा के लंबे दौर की समाप्ति हुई। इस समझौते से ही नेपाल में राजतंत्र समाप्त हुआ और देश में लोकतंत्र की स्थापना हुई।
लोकतान्त्रिक हिन्दू राष्ट्र के समर्थक
जहाँ माओवादियों ने 40 हजार निरपराध लोगों की हत्या की. नेपाल की संरचना (आधारभूत ढांचा) को बिगाड़ने का कार्य किया, वहीँ गिरजा बाबू ने गाँधीवादी रास्ता निकाला. वास्तव में वे नेल्सन मंडेला के पश्चात् दुनिया में वर्तमान समय के दुसरे लोकतान्त्रिक योद्धा थे. वे हिन्दू किंगडम के नहीं लोकतान्त्रिक हिन्दू राष्ट्र के समर्थक थे, उन्होंने अपनी रणनीति के द्वारा माओवादियों की अलोकतांत्रिक सरकार को सत्ताच्युत करके लोकतान्त्रिक साकार का गठन कराया. वे मानते थे कि नेपाल व भारत का हित समान है. भारत का विरोध करने वाला नेपाल का हितैषी नहीं हो सकता.