गिन्नी माही (GINNI MAHI)
पॉप गायिका
मैंने बचपन में दादी से सुना था कि समाज में दलितों के साथ भेदभाव किया जाता था।
हमारे घर में संत रविदास और डॉ भीमराव अंबेडकर से जुड़ी तमाम किताबें थीं।
मम्मी-पापा से मैंने उनके बारे में सुना था।
इसी से मुङो उनके गीत गाने की प्रेरणा मिली।

गिन्नी पंजाब प्रांत के जिस इलाके में पली-बढ़ीं, वहां बड़ी संख्या में दलित समाज के लोग रहते थे। उनका संयुक्त परिवार था। मम्मी-पापा के अलावा दादी, चाचा, ताऊ और चचेरे भाई-बहन सब एक साथ रहते थे। एक ही मकान में। यह मकान उनके दादाजी ने बनवाया था। सबका खाना एक चूल्हे में ही पकता।
पापा और ताऊ अक्सर संत रविदास और बाबा साहेब से जुड़े कार्यक्रमों में जाते थे। जब भी मौका मिलता, नन्ही गिन्नी भी चल देती उनके साथ। पापा अक्सर संत रविदास और अंबेडकर से जुड़ी तमाम किताबें और पत्रिकाएं खरीदकर लाते थे। वह इन्हीं महापुरुषों की कहानियां सुनकर बड़ी हुईं।
समय के साथ इन महापुरुषों के बारे में उनकी दिलचस्पी बढ़ती गई। वह उनके बारे में लिखी किताबें पढ़ने लगीं। जब कोई बात समझ में नहीं आती, तो दादी से पूछ लेतीं। दादी बड़े प्यार से पोती को किस्सों के जरिये सामाजिक ताने-बाने का पाठ समझातीं।
गिन्नी बताती हैं, हम भी दलित समाज से हैं, पर सच कहूं, तो मेरे साथ कभी किसी तरह का भेदभाव नहीं हुआ। दादी बताती थीं कि कैसे पुराने जमाने में दलितों के साथ भेदभाव होता था। उनका अपमान होता था। मैंने पापा से बाबा साहेब और संत रविदास के किस्से सुने थे, इसलिए वे मेरे रोल मॉडल बन गए।
गिन्नी तब सात साल की थीं। दादी और मम्मी को सुनकर धार्मिक गीत गुनगुनाने लगीं। घरवालों ने गौर किया कि बेटी तो बहुत अच्छा गाती है। तब पापा ने संगीत की शिक्षा दिलवाने का फैसला किया। जालंधर के लाला जगत नारायण स्कूल में उनका दाखिला हो गया। पापा ने हिदायत दी कि संगीत के साथ पढ़ाई भी करनी है। संगीत के चक्कर में पढ़ाई मत भूल जाना।

ट्रेनिंग शुरू होते ही उनकी दिनचर्या काफी व्यस्त हो गई। सुबह साढ़े पांच बजे उठकर दो घंटे रियाज करना, फिर जल्दी से तैयार होकर स्कूल के लिए निकलना। स्कूल की पढ़ाई के बाद संगीत की शिक्षा और देर शाम घर लौटकर दो घंटे का रियाज। थक जाती थीं, पर वह बहुत खुश थीं। दो साल की शिक्षा के बाद उन्हें जालंधर के जंडियाला गांव में आयोजित एक मेले में गाने का मौका मिला। वह पहली बार स्टेज पर गाने जा रही थीं। मम्मी-पापा, दादी, ताऊ सभी चिंतित थे। पता नहीं,बच्ची सबके सामने गा पाएगी या नहीं? भीड़ देखकर कहीं घबरा न जाए? मगर गिन्नी बिल्कुल परेशान नहीं थीं।
स्टेज पर पहुंचते ही वह आत्म-विश्वास के साथ गाने लगीं। उनके कोमल स्वर का जादू कुछ यूं बिखरा कि दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए। शुरुआत में वह धार्मिक गीत गाया करती थीं। फिर संत रविदास और बाबा साहेब की प्रशंसा भरे गीत गाने लगीं। गिन्नी कहती हैं, हर शो से पहले दादी मुङो आशीर्वाद देकर विदा करती हैं। स्टेज पर पहुंचकर मैं उन्हें याद करती हूं और मेरा आत्म-विश्वास बढ़ जाता है।
आस-पास के इलाकों में उनके गीत मशहूर होने लगे। इस बीच एक लोकल म्यूजिक कंपनी ने उन्हें गाने का मौका दिया। उनके दो अलबम गुरां दी दीवानी और गुरुपर्व है कांशी वाले दा को बहुत पसंद किया गया। जैसे-जैसे गिन्नी के गीतों की मांग बढ़ने लगी, परिवार ने महसूस किया कि बेटी के साथ एक टीम होनी चाहिए। उन्होंने कुछ गीतकारों से संपर्क किया, जो दलित समाज को जागृत करने वाले गीत लिख सकें।
पापा ने उनके नाम पर गिन्नी म्यूजिकल ग्रुप बनाया। शोहरत बढ़ती गई। खासकर उनके गीतों का पॉप अंदाज युवाओं को खूब पसंद आया। यू-ट्यूब पर भी उनके गीत खूब पसंद किए गए। बाबा साहब दे गीत ने खूब शोहरत दिलाई। इस गीत में उन्होंने यह बताया कि बाबा साहेब को जिंदगी में किन मुश्किलों से जूझना पड़ा। मैं धीह हां बाबा साहिब दी, जिन्हां लिखया सी सविधान पंक्तियों ने खूब धमाल मचाया। गिन्नी कहती हैं, मैं किसी जाति को नीचा दिखाना नहीं चाहती। चाहती हूं, जाति के नाम पर होने वाली कुरीतियां बंद हों। पूरे पंजाब में उनके गीतों की चर्चा होने लगी।
यू-ट्यूब के जरिये विदेश में भी उन्हें सुना गया। वर्ष 2013 में ब्रिटेन और इटली में शो करने का ऑफर आया। उस समय वह दसवीं में पढ़ रही थीं। उन्होंने जाने से मना कर दिया। गिन्नी कहती हैं, विदेश जाने से मेरी पढ़ाई पर असर पड़ता, इसलिए मैंने तय किया कि मैं पंजाब से बाहर नहीं जाऊंगी। बाबा साहेब चाहते थे कि बेटियां शिक्षित हो। इसलिए मैं खूब पढ़ना चाहती हूं।
इस बीच कुछ राजनीति दलों ने भी उनसे संपर्क किया। कई बार राजनीति मंच पर गाने के प्रस्ताव भी मिले, लेकिन परिवार ने बेटी को राजनीति से दूर रखा। पिता राकेश चंद्र माही कहते हैं, राजनीति से हमारा कोई लेना-देना नहीं है। मैंने अपनी बेटी को कभी राजनीतिक मंचों पर नहीं गाने दिया। हमारा मिशन बहुत पवित्र है। हम जातिवाद को खत्म करना चाहते हैं।
गिन्नी अपने गीतों में ड्रग्स और कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ भी आवाज उठाती हैं। उनका मानना है कि बेटियों की शिक्षा के बगैर कोई समाज तरक्की नहीं कर सकता। गिन्नी कहती हैं, मैं लोगों से अपील करती हूं कि अपनी बेटियों को स्कूल जरूर भेजें। बेटियां पढ़ेंगी, तभी समाज का विकास होगा। तभी सामाजिक कुरीतियां बंद होंगी और तभी जात-पांत का भेद खत्म होगा।प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी
साभार -हिंदुस्तान अख़बार