DEVENDRA JHAJHARIA BIOGRAPHY IN HINDI

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devendra jhajhariya
Devendra Jhajharia Biography In Hindi
देवेंद्र झाझरिया(रियो पैरा-ओलंपिक विजेता)
 

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राजस्थान के चुरू जिले में आठ वर्ष की उम्र में पेड़ पर चढ़ते वक्त उन्हें करीब 11 हजार वोल्ट का करंट लगा था और उस वक्त वे इतने जल चुके थे कि एक रात भी जिंदा रह पाएंगे या नहीं यह तय नहीं था। इस एक्सीडेंट में उनका बाया हाथ खराब हो गया था जिसे काटना पड़ा लेकिन जुझारू देवेंद्र और उनके परिजनों ने हार नहीं मानी और फिर शुरू हुई उनकी सफलता की तरफ बढ़ने की कहानी।
देवेंद्र झाझरिया (Devendra Jhajharia) का परिवार काफी निर्धन था। माता-पिता की सारी उम्मीदें बेटे पर टिकी थीं। वे बस एक ही सपने के साथ जी रहे थे कि बेटा पढ़-लिखकर अच्छी नौकरी करे, ताकि घर के हालात सुधर सकें। देवेंद्र का परिवार राजस्थान के चूरू जिले के एक छोटे से गांव में रहता था। देवेंद्र जब पांच साल के हुए, तो पिताजी ने गांव के सरकारी स्कूल में दाखिला करा दिया। मां को बेटे की मासूम शरारतों पर खूब प्यार उमड़ता, मगर यह फिक्र भी लगी रहती कि कहीं इसे चोट न लग जाए। स्कूल से लौटते समय अक्सर देवेंद्र पेड़ पर चढ़ जाते थे। तब वह आठ साल के थे।

पेड़ पर चढ़ते वक्त लगा बिजली का करंट 

देवेंद्र झाझरिया (Devendra Jhajharia) एक दिन शाम को स्कूल से लौटते वक्त सड़क किनारे पेड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे कि अचानक बाएं हाथ में तेज झनझनाहट महसूस हुई। पेड़ के आस-पास मौजूद बच्चों को उनकी तेज चीख सुनाई दी। लोगों ने उन्हें पेड़ से नीचे गिरते देखा। गांव वाले भागकर देवेंद्र के घर पहुंचे और उनकी मां को बताया। यह सुनकर मां दौड़कर वहां पहुंचीं। बेहोशी की हालत में उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया। डॉक्टर ने बताया कि इसे बिजली का करंट लगा है। होश आया, तो सामने मां खड़ी थीं। उन्होंने आंसू पोंछते हुए कहा, तुम्हें बिजली का करंट लगा है। पर चिंता मत करो, अब तुम ठीक हो।

काटना पड़ा हाथ 

दरअसल देवेंद्र झाझरिया (Devendra Jhajharia) जिस पेड़ पर चढ़े थे, उसकी टहनियों के बीच से 11,000 वोल्ट का बिजली का तार गुजर रहा था। धोखे से बायां हाथ तार पर पड़ा और पूरा हाथ झुलस गया। देवेंद्र ने देखा कि उनके पूरे हाथ पर पट्टी बंधी है। हाथ उठाने की कोशिश की, तो उसमें कोई हलचल नहीं हुई। लगा, जैसे हाथ में जान ही न हो। वह बार-बार मां से पूछते रहे- मेरा हाथ कब ठीक होगा?
सब चुप थे। किसी के पास उनके सवाल का जवाब नहीं था। घरवाले डॉक्टर से मिन्नतें कर रहे थे। मां घर बेचकर भी बेटे का इलाज कराने को तैयार थीं। कई दिनों की कोशिश के बाद डॉक्टर ने कह दिया कि इसका हाथ अब काटना पड़ेगा, नहीं तो जहर पूरे शरीर में फैल जाएगा। यह सुनते ही मां के होश उड़ गए। बेटे की जिंदगी का सवाल था, इसलिए डॉक्टर को ऑपरेशन की इजाजत दे दी। पिता परेशान थे। तमाम सवाल थे उनके सामने। क्या अब बेटा अपाहिज बनकर जिएगा? क्या होगा इसका? पढ़ाई कैसे करेगा?
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देवेंद्र झाझरिया (Devendra Jhajharia)

घर से निकलना किया बंद 

देवेंद्र झाझरिया (Devendra Jhajharia) अस्पताल से डिस्चार्ज होकर घर पहुंचे। अब उनका एक हाथ कट चुका था।वह बताते हैं- ऑपरेशन के बाद पहली बार घर से निकला, तो बड़ा अजीब लगा। सब मेरी ही तरफ देख रहे थे। मुङो लगा, जैसे वे मेरा कटा हुआ हाथ देखकर हंस रहे हैं। मैंने घर से निकलना बंद कर दिया। मां बेटे की मनोदशा समझ रही थीं। बड़ा बुरा लगता था, जब लोग देवेंद्र पर दया दिखाते या कोई तंज कसते।

पिता ने  पढ़ाई के साथ-साथ खेल के लिए  किया प्रेरित 

 मां हर पल उनके संग रहती थीं। उनकी हर छोटी-बड़ी जरूरत का ख्याल रखतीं। कुछ हफ्ते बाद उन्हें दोबारा स्कूल भेजने की तैयारी शुरू हो गई। मां ने स्कूल बैग तैयार कर दिया। लेकिन देवेंद्र झाझरिया (Devendra Jhajharia) को यकीन ही नहीं हो पा रहा था कि वह पहले की तरह दोबारा स्कूल जा पाएंगे।पिता ने बेटे को पढ़ाई के साथ-साथ खेल के लिए प्रेरित किया। वह दोबारा स्कूल जाने लगे।

Devendra Jhajharia के प्रेरणा स्रोत बने मिल्खा सिंह

देवेंद्र झाझरिया (Devendra Jhajharia) बताते हैं- उन दिनों मैंने धावक मिल्खा सिंह के किस्से सुने। किसी ने बताया कि मिल्खा के पास दौड़ने के लिए जूते तक नहीं थे, फिर भी उन्होंने कई मेडल जीते। वह मेरे रोल मॉडल बन गए। मैंने खुद से कहा कि मिल्खा जीत सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं?

 भाला फेंकने का किया  अभ्यास 

 धीरे-धीरे जिंदगी पटरी पर लौटने लगी। अब वह अपने भविष्य को लेकर काफी गंभीर हो चुके थे। देवेंद्र झाझरिया (Devendra Jhajharia) का पूरा ध्यान पढ़ाई पर था। एक हाथ खोने का गम गहरा तो था, पर इरादे पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा मजबूत थे। बचपन से उनके अंदर एक हाथ से चीजों को दूर तक फेंकने का हुनर था। पर कभी नहीं सोचा था कि यही हुनर उनकी नई पहचान बनाएगा। उन दिनों कुछ खिलाड़ी गांव में भाला फेंकने का अभ्यास कर रहे थे। देवेंद्र को यह खेल रोमांचकारी लगा। वह लकड़ी का भाला बनाकर अभ्यास करने लगे।

पहले ही टूर्नामेंट में जीता गोल्ड मेडल 

यह बात 1997 की है। तब वह 17 साल के थे। कोच आर डी सिंह की उन पर नजर पड़ी। उन्होंने देवेंद्र झाझरिया (Devendra Jhajharia) को ट्रेनिंग देने का फैसला किया। जिले के पहले भाला फेंक टूर्नामेंट में गोल्ड मेडल जीतकर उन्होंने साबित कर दिया कि हौसले बुलंद हों, तो इंसान कुछ भी हासिल कर सकता है। जीत के बाद तमाम गांव वाले मुबारकबाद देने घर पहुंचे। उम्मीदों को पंख लग चुके थे। कोच ने कहा, खूब मेहनत करो। अब तुम्हें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।

रियो पैरा-ओलंपिक में जीता गोल्ड 

राज्य व राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में जीत दर्ज कराने के बाद 2002 में देवेंद्र झाझरिया (Devendra Jhajharia) ने दक्षिण कोरिया में हुए पैसेफिक खेल में गोल्ड मेडल जीता। साल 2004 में उन्होंने एथेंस पैरा-ओलंपिक में गोल्ड मेडल अपने नाम किया और बाद में अपना ही रिकॉर्ड तोड़ते हुए 63़.97 मीटर भाला फेंककर नया वल्र्ड रिकॉर्ड बनाया। इसी साल उन्हें अजरुन पुरस्कार मिला। 2012 में देवेंद्र झाझरिया (Devendra Jhajharia) पद्मश्री से सम्मानित हुए। पिछले साल रियो पैरा-ओलंपिक में गोल्ड जीतकर देश का नाम रोशन किया। इसी हफ्ते उन्हें खेल रत्न देने की सिफारिश की गई है।

सेना का करें सहयोग, न खरीदें चीन के उत्पाद

रियो पैरा ओलंपिक में स्वर्ण पदक विजेता देवेंद्र झाझरिया (Devendra Jhajharia) ने कहा कि जनता पाकिस्तान का सहयोग करने वाले चाइना के उत्पाद नहीं खरीदें। झाझरिया रविवार को टाउन हाल में अभिनन्दन समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा पाक ने हमारे 18 जवान मारे लेकिन भारत के जवानों ने 38 पाक आतंकियों को उनकी ही जमीन पर मारकर दिखा दिया कि वे दुनिया में किसी से कम नहीं है। झाझड़िया ने कहा कि वे 14 साल से भारत का ध्वज लिए देश और विदेश में घूम रहे हैं। इसकी आन बान और शान को आज तक बरकरार रखा है। उन्होंने संघर्ष की कहानी सुनाते हुए कहा कि चूरू से एक नहीं बल्कि सौ देवेंद्र झाझरिया (Devendra Jhajharia) निकलने चाहिए।

साभार -हिंदुस्तान अख़बार

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