पौड़ी-गढ़वाल के एक गांव में पैदा हुए अजित के पिता सेना में थे। फौजी बनाने के इरादे से उन्हें सैन्य स्कूल में भर्ती कराया। स्कूली पढ़ाई के बाद आगरा यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में एम ए किया। पढ़ाकू अजित यूनिवर्सिटी में टॉपर रहे। इसके बाद आईपीएस परीक्षा की तैयारी में जुट गए। 1968 में आईपीएस अफसर बने, तो केरल कैडर मिला।
उन दिनों पूर्वोत्तर के राज्य उग्रवादी हिंसा से जूझ रहे थे। आम जनता हिंसक घटनाओं से बेहाल थी। तेजतर्रार युवा अफसर अजित को उग्रवादियों के खिलाफ खुफिया अभियान में लगाया गया। अभियान सफल रहा। बडे़ अफसर उनके मुस्तैद अंदाज और साहसी तेवरों के कायल हो गए। अस्सी के दशक में मिजोरम में हालात अचानक बिगड़ने लगे। मिजो नेशनल फ्रंट देश के लिए नया खतरा बनकर उभरा। हालात को काबू में करना मुश्किल हो रहा था। ऐसे अफसर की तलाश शुरू हुई, जो संगठन के अंदर पैठ बनाकर उग्रवादी आंदोलन को कमजोर कर सके।
यह जटिल काम अजित के जिम्मे आया। उन्हें अपने ढंग से रणनीति बनाने और काम करने की छूट दी गई। नतीजा सुखद रहा। मिजो नेशनल फ्रंट में ऐसी फूट पड़ी कि सब देखते रहे गए। उन्होंने फ्रंट के कई बडे़ कमांडरों को संगठन से अलग कर दिया। टॉप कमांडरों के बिखराव से फ्रंट कमजोर पड़ गया। इसी के साथ मिजोरम में शांति बहाली का रास्ता आसान हो गया।
बात 1984 की है। पंजाब में हालात बेकाबू हो चले थे। आतंकवाद चरम पर था। खालिस्तानी अलगाववादी देश के टुकड़े करने के इरादे से सक्रिय हो गए थे। खालिस्तानी आंदोलन को कुचलना बहुत बड़ी चुनौती थी। सुरक्षा अभियान के दौरान सबसे जटिल काम था आतंकियों के बीच से सटीक खुफिया जानकारी जुटाना, ताकि उनसे निपटने की सही रणनीति बनाई जा सके। देश को एक बार फिर अजित की सेवाओं की जरूरत महसूस हुई। दिल्ली में वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मंत्रणा के बाद वह पंजाब के पवित्र शहर अमृतसर पहुंचे। ऑपरेशन ब्लूस्टार के पहले हालात का जायजा लेने के लिए कुछ दिन वह वहां रिक्शा चालक बनकर रहे। बाहर का माहौल समझने के बाद अगला कदम था स्वर्ण मंदिर में दाखिल होना। अजित मंदिर परिसर के अंदर एक सिख आतंकी के रूप में पहुंचे। आतंकियों के बीच वह इस कदर घुल-मिल गए कि किसी को भनक तक न लगी। अजित के अंदाज और हाव-भाव आतंकियों जैसे थे। स्वर्ण मंदिर के अंदर से उन्होंने कई अहम जानकारियां सरकार तक पहुंचाईं।
बाद में उन्हीं के खुफिया इनपुट के आधार पर सेना ने ऑपरेशन ब्लैक थंडर चलाकर मंदिर के अंदर से करीब तीन सौ सिख आतंकियों को गिरफ्तार किया। साथी अफसर उन्हें जेम्स बांड कहने लगे। उनकी छवि ईमानदार, मेहनती और वतनपरस्त अधिकारी की बन चुकी थी। 1988 में उन्हें ‘कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया।
साल 1999 में नेपाल से इंडियन एयरलाइन्स के विमान आईसी-814 का अपहरण करके आतंकी कंधार ले गए। तब सरकार को एक ऐसे अधिकारी की जरूरत थी, जो अपहरणकर्ताओं से बात करके उन्हें भारतीय नागरिकों को छोड़ने के लिए राजी कर सके। उन्होंने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया।
उनके करियर का सबसे रोमांचक दौर तब शुरू हुआ, जब उन्हें पाकिस्तान में जासूसी मिशन पर भेजा गया। उन्होंने सात साल पाकिस्तान में गुजारे। इस दौरान वह लाहौर में मुसलमान बनकर रहे। उनका काम था वहां से खुफिया जानकारी जुटाना। यह बेहद जोखिम भरा काम था।
लाहौर में एक दिलचस्पा वाकया हुआ। एक दिन शाम को वह किसी मजार पर गए। वहां बैठे सफेद दाढ़ी वाले मौलाना उन्हें अपने घर ले गए। अपने कमरे का दरवाजा बंद करके मौलाना ने उनसे पूछा, क्या तुम हिंदू हो? अजित बताते हैं- मैंने मौलाना से कहा कि नहीं, मैं मुसलमान हूं। इस पर वह बोले- मैं जानता हूं कि तुम हिंदू हो। तुम्हारे कान छिदे हैं। यह परंपरा सिर्फ हिंदुओं में है। मैंने दृढ़ता से कहा- जनाब, मेरा जन्म जरूर हिंदू परिवार में हुआ, पर अब धर्म बदलकर मैं मुसलमान बन गया हूं। मौलाना बोले- मैं जानता हूं कि तुम अब भी हिंदू हो। दरअसल, मौलाना खुद भी वहां रूप बदलकर रह रहे थे।
31 जनवरी, 2005 को डोभाल खुफिया ब्यूरो के निदेशक पद से रिटायर हुए। इसके बाद विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के प्रमुख बन गए। नरेंद्र मोदी सरकार ने उनकी क्षमताओं और अनुभव के मद्देनजर उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया। साल 2014 में आईएस के नियंत्रण वाले इराकी शहर तिकरित के एक अस्पताल में 46 भारतीय नर्सें फंस गई थीं। अजित डोभाल ने वहां से नर्सों की सुरक्षित वापसी के लिए अपने राजनयिक संपर्कों का इस्तेमाल किया।
पिछले महीने उरी में पाकिस्तानी आतंकियों द्वारा भारतीय सैनिकों की निर्मम हत्या के बाद अजित डोभाल ने सेना के साथ मिलकर आतंकियों को सबक सिखाने की रणनीति बनाई। भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान के नियंत्रण वाले कश्मीर में की गई सर्जिकल स्ट्राइक उसी रणनीति का नतीजा है।