एक संत गांव से गुजर रहे थे। शाम हो रही थी। उन्होंने देखा कि एक बच्चा मंदिर में दीया चढ़ाने जा रहा है। संत ने बच्चे को रोक कर पूछा, ‘बेटा, इसे तुमने जलाया है ना। तब यह बताओ कि दीये में जो ज्योति है, वह कहां से आयी है?’ बच्चा परेशान हो गया। उसने कहा, ‘इसे मैंने जलाया जरूर है, लेकिन नहीं जानता कि यह कहां से आयी?’ तभी बच्चे को कुछ सूझा। उसने खट से दीया बुझा दिया। फिर पलटकर पूछा,‘अब तो यह ज्योति आपके सामने गयी है, जरा बताओ तो कहां चली गयी?’सन्न रह गये संत। उन्होंने बच्चे को गले लगा कर कहा, ‘मुझे माफ कर दे बेटा। आज के बाद मैं कोई गलत सवाल नहीं करूंगा। जिस सवाल का जवाब मैं नहीं दे सकता, मुझे पूछना भी नहीं चाहिए। तुम मुझे माफ कर दो। मुझे भी कहां पता है कि मेरे दीये में जो ज्योति जल रही है, वह कहां से आती है? जब मेरे दीये से चली जाएगी, तब कहां जाएगी? पहले अपने दीये का तो पता कर लूं, फिर कुछ और देखूंगा।’