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ऐनी दिव्या
सबसे युवा बोइंग 777 कमांडर
रिश्तेदारों को जब पता चला कि मैं पायलट की ट्रेनिंग लेने जा रही हूं, तो उन्हें यकीन नहीं हुआ, वे खूब हंसे। फिर उन्होंने पापा से कहा कि हवाई जहाज उड़ाना लड़कियों के बस की बात नहीं है। बेटी को डॉक्टर या टीचर बनाइए। लेकिन पापा ने किसी की नहीं सुनी।
ये कहानी एक ऐसे लड़की की है जिसने यह सिद्ध कर दिया की अगर आपके अन्दर इच्छा शक्ति हो तो मुश्किल से मुश्किल परिस्थितिया भी आपको  लक्ष्य से डिगा नहीं सकती है | 
There are stories that remind us that we should never give up on our dreams. There are stories that prove that if our willpower is strong, then no matter how bumpy the road is, the heart can always achieve what it desires. One such encouraging story is of Anny Divya, world’s youngest woman commander to fly Boeing 777. Born in Pathankot, Anny wanted to become a pilot ever since she was a child. However, her journey towards attaining that goal wasn’t easy. In a conversation with HT, Captain Anny Divya, who is currently based in Mumbai, reveals how she battled her way to achieve success.

प्रारंभिक जीवन 

दिव्या का जन्म पंजाब के पठानकोट जिले में हुआ। पापा सेना में थे। थोड़ी बड़ी हुईं, तो पापा का ट्रांसफर आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा शहर में हो गया। पठानकोट और विजयवाड़ा के खान-पान, भाषा और संस्कृति में काफी अंतर था। लिहाजा वहां के माहौल में ढलने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा। सबसे बड़ी परेशानी थी भाषा की। दिव्या की पढ़ाई केंद्रीय विद्यालय से हुई।

भाषा की अड़चन 

 सैन्य सेवा में होने की वजह से पापा का ट्रांसफर होता रहता था। उनके ट्रांसफर के साथ बेटी का स्कूल भी बदल जाता था। बाकी मुश्किलें तो मम्मी-पापा संभाल लेते थे, मगर स्कूल में होने वाली भाषा की अड़चन अकेले दिव्या को ही ङोलनी पड़ती थी। नई जगह पर बच्चे अपने इलाके की भाषा में बातचीत करते थे। जो बच्चे स्थानीय भाषा नहीं समझ पाते थे, वे अंग्रेजी का सहारा लेते थे, लेकिन दिव्या की दिक्कत यह थी कि उन्हें अंग्रेजी में बातचीत करना नहीं आता था। 
दिव्या बताती हैं- मैं अंग्रेजी बोलने के मामले में फिसड्डी थी। कई बार साथी बच्चे मेरा मजाक उड़ाते थे। लेकिन मैंने उनकी बातों को कभी दिल पर नहीं लिया। मेरा फोकस हमेशा पढ़ाई पर था। दिव्या को बचपन से आकाश में पंख फैलाए पक्षियों को उड़ते हुए देखना बहुत अच्छा लगता था। जी करता था कि काश उनके भी पंख होते और वह आसमान में उड़कर पूरी दुनिया की सैर कर आतीं। फिर उन्हें एहसास हुआ कि पंख नहीं हैं तो क्या हुआ, वह विमान में तो उड़ सकती हैं। बस यूं ही मन में एक खूबसूरत सपना बुन लिया। सोचा बड़े होकर हवाई जहाज उड़ाऊंगी। 
उन दिनों वह दसवीं कक्षा में थीं। उम्र थी 15 साल। क्लास के सारे बच्चे अपने करियर को लेकर संजीदा थे। कोई डॉक्टर बनना चाहता था, तो कोई इंजीनियर। कुछ पढ़ाकू मिजाज बच्चों ने तय कर लिया कि वे वैज्ञानिक बनेंगे या प्रोफेसर। ये वो बच्चे थे, जिन्हें किताबों में डूबे रहना पसंद था। दिव्या को भी किताबों से प्यार था, पर उनका सपना सबसे जुदा था। जब उन्होंने अपने दोस्तों से कहा कि वह पायलट बनना चाहती हैं, तो वे हंस पड़े। 
दिव्या कहती हैं- मुङो पढ़ाई करना बहुत पसंद था, पर आसमान में उड़ने की लालसा बहुत गहरी थी। 11वीं कक्षा पास करने के बाद उन्होंने मम्मी-पापा से कहा कि मैं पायलट बनना चाहती हूं। शुरू में यह बात घरवालों को थोड़ी अजीब लगी। इससे पहले परिवार या खानदान में कोई बच्च पायलट नहीं बना था। इसलिए उन्हें फिक्र हुई कि हमारी बच्ची विमान उड़ा भी पाएगी या नहीं। पर दिव्या तय कर चुकी थीं कि उन्हें पायलट ही बनना है और मम्मी-पापा ने उन्हें मायूस नहीं होने दिया। 
12वीं पास करने के बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी में पायलट ट्रेनिंग कोर्स के लिए आवेदन किया। ट्रेनिंग की फीस पापा के बजट से बाहर थी। परिवार में दिव्या के अलावा उनकी एक छोटी बहन और एक भाई भी था। तीन बच्चों पर खर्च के बाद इतनी बचत नहीं हो पाती थी कि बड़ी बेटी के लिए मोटी फीस अदा की जा सके। एक तरफ पापा इस उधेड़बुन में थे कि फीस का इंतजाम कैसे किया जाए, वहीं कुछ रिश्तेदार उनसे सवाल कर रहे थे कि आप बेवजह बेटी को पायलट बनाने के चक्कर में क्यों परेशान हैं? विमान उड़ाना लड़कियों के बस की बात नहीं है। उसे डॉक्टर या टीचर बनाइए। लेकिन पापा पर उनकी बातों का कोई असर नहीं हुआ।
 दिव्या कहती हैं- मम्मी-पापा के लिए मेरी फीस का इंतजाम करना आसान न था। पर उनके लिए मेरा सपना सबसे अहम था। मुश्किल के बावजूद उन्होंने मुङो ट्रेनिंग के लिए भेजा। आखिर दिव्या की ट्रेनिंग शुरू हुई। दो साल खूब कड़ी मेहनत की। उन्हें स्कॉलरशिप भी मिलने लगी। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद एअर इंडिया में बतौर पायलट नौकरी भी मिल गई। पापा तो मानो फूले नहीं समा रहे थे। बेटी विमान उड़ाएगी यह सोचकर ही वह रोमांचित हो उठे। रिश्तेदार, पड़ोसी बधाई देने पहुंचे। पापा उन्हें देखकर मुस्करा दिए। मन ही मन बोल उठे थे- हां, बेटियां भी विमान उड़ा सकती हैं।
 दिव्या 19 साल की उम्र में पहली बार विमान की कॉकपिट में पहुंचीं, तो लगा कि वाकई पंख निकल आए हैं और वह आसमान में सैर कर रही हैं। जल्द ही करियर बुलंदियों पर था। घरेलू उड़ान के बाद अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर जाने का मौका मिला। बचपन का सपना साकार होने लगा। पापा पर आर्थिक बोझ कम पड़े, इसलिए अपनी कमाई से दिव्या ने छोटे भाई-बहन को विदेश पढ़ने भेजा। मम्मी-पापा के लिए एक सुंदर सा घर भी खरीदा। 
दिव्या कहती हैं- मम्मी-पापा अगर मेरा साथ नहीं देते, तो मैं कभी पायलट नहीं बन पाती। उन्होंने मुझ पर अपना विश्वास जताया, इसलिए आज मैं इस मुकाम पर हूं। करियर के साथ दिव्या ने पढ़ाई जारी रखी। इस दौरान उन्होंने बीएससी (एविएशन) और लॉ में परा-स्नातक डिग्री हासिल की। पिछले दिनों उन्होंने लंदन और स्पेन में बोइंग विमान उड़ान की एडवांस ट्रेनिंग ली। अब उनका एक ही सपना था, दुनिया का सबसे बड़ा विमान, यानी बोइंग 777 उड़ाना। पिछले महीने यह सपना भी पूरा हुआ। 30 साल की उम्र में वह बोइंग 777 उड़ाने वाली दुनिया की सबसे कम उम्र की महिला पायलट बन गईं। 
ऐनी दिव्या
सबसे युवा बोइंग 777 कमांडर

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