बड़ी कामयाबी के लिए बड़ा त्याग
सानिया को बचपन में तैराकी का शौक था। पढ़ाई में उसका खूब मन लगता था। हमउम्र बच्चों के संग खेलने की बजाय उसे अपने कमरे में चुपचाप बैठकर किताबें पढ़ना ज्यादा पसंद था। बड़ी होकर डॉक्टर बनने की ख्वाहिश थी। तब कौन जानता था कि वह एक दिन टेनिस की दुनिया का सबसे बड़ा नाम बन जाएगी और उनकी शोहरत प्रांतों, देशों और महाद्वीपों की सीमाएं लांघते हुए पूरे विश्व में फैल जाएगी! शुरुआत में उसका परिवार मुंबई में रहता था। यहीं सानिया का जन्म हुआ। कुछ समय बाद, परिवार हैदराबाद चला गया। उस समय वह छह साल की थी। पेशे से पत्रकार पिता इमरान मिर्जा को खेल में गहरी दिलचस्पी थी। वह खेल की खबरें कवर किया करते थे। खिलाड़ियों का इंटरव्यू लेते हुए पिता के मन में तमन्ना जगी कि उनकी बेटी टेनिस खेले। उन्हें खुद टेनिस खेलना पसंद था। एक दिन उन्होंने बेटी को टेनिस रैकेट थमाते हुए कहा, इसे खेलकर देखो, बड़ा मजा आएगा। उसने अनमने ढंग से रैकेट थाम लिया। तैराकी की शौकीन सानिया तब नहीं जानती थी कि एक दिन टेनिस उसका जुनून बना जाएगा।
कुछ दिनों बाद वाकई उन्हें टेनिस में मजा आने लगा। वह पापा के संग सूरज उगने से पहले उठती और घंटों प्रैक्टिस करती। बेटी की लगन देख पापा को अपना सपना साकार होता नजर आया। उन्होंने उसे प्रोफेशनल ट्रेनिंग दिलवाने का फैसला किया। दोनों कोच के पास गए। कोच बच्ची की प्रतिभा से प्रभावित तो थे, पर उसकी कम उम्र उन्हें खल रही थी। उन्होंने सानिया को ट्रेनिंग देने से मना कर दिया। पापा बहुत निराश हुए। पर एक सप्ताह बाद उसी कोच का फोन आया। उन्होंने कहा, ‘मैंने आज तक इतनी छोटी बच्ची को इतना बेहतरीन टेनिस खेलते नहीं देखा। मैं इसे ट्रेनिंग देने को तैयार हूं।’
हैदराबाद के निजाम क्लब में ट्रेनिंग शुरू हुई। जब बाकी बच्चे घर पर पार्टी करते या बाहर घूमने जाते, उस समय सानिया धूप में पसीना बहाती थी। वर्ष 2003 में वह पहली बार इंडिया फेड कप टीम में खेली। उसने तीनों सिंगल मैच जीते। जब भी शहर के बाहर टूर्नामेंट के लिए जाती, मां उसके संग होती। सनिया कहती है, ‘मेरे टेनिस करियर के लिए मां ने बहुत त्याग किए। वह मेरे संग लंबा सफर करती। कई बार छोटी बहन को पापा के सहारे छोड़कर मेरे संग बाहर रहती। मेरे लिए उन्हें घर, परिवार और रिश्तेदारों से दूर रहना पड़ा। आज जहां भी हूं, उनकी वजह से हूं।’
टेनिस की वजह से वह पढ़ाई से दूर रहने लगी। जाहिर है, टेनिस प्रैक्टिस व स्कूल का समय एक ही था। ऐसे में, उसके पास दोनों में से एक को चुनने का ही विकल्प था। यकीनन, टेनिस उसे पसंद था, पर पढ़ाई से दूर रहने का ख्याल कचोटने लगा। वह क्लास में अव्वल आना चाहती थी। फिर एक दिन उसने पापा-मम्मी से साफ कह दिया कि अब वह स्कूल जाएगी, भले ही टेनिस छोड़ना पड़े। उस समय वह कक्षा चार में थी। सानिया बताती है, ‘एक दिन प्रिंसिपल ने बुलाया। मुझे लगा कि वह डांटेंगी। पर उन्होंने कहा कि तुम बेहतरीन टेनिस खेलती हो, उस पर ध्यान दो। मैंने पूछा, मैम क्लास में नहीं आई, तो मेरे 95 फीसदी अंक कैसे आएंगे? उन्होंने समझाया कि पढ़ाई करने के लिए टेनिस छोड़ने की जरूरत नहीं है।’
सानिया की पढ़ाई जारी रही। उसने सेंट मैरी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली। 1999 में वर्ल्ड जूनियर टेनिस चैंपियनशिप से करियर की शुरुआत हुई। इसके बाद 2003 में विंबलडन में डबल्स मैच में जीत मिली। दो साल बाद, यानी 2005 में उसकी अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग 42 हो गई। किसी भारतीय टेनिस खिलाड़ी के लिए यह सबसे बड़ी रैंकिंग थी। 2009 में वह किसी ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट में जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनी। 18 साल की उम्र में उसे पद्मश्री से सम्मानित किया गया। अब वह डबल्स की रैंकिंग में नंबर एक खिलाड़ी बन गई है। आज पूरी दुनिया में सानिया की शोहरत है। पर शुरुआती दिन काफी मुश्किल भरे थे।
बेटी की प्रोफेशनल ट्रेनिंग के खर्च को जुटाने के लिए परिवार को काफी मशक्कत करनी पड़ी। सबसे बड़ी दिक्कत थी परंपरागत सोच वाले समाज के बीच रहकर बेटी को लीक से हटकर जीने की प्रेरणा देना व रुढ़िवादियों के हमलों से उसे महफूज रखना। उन दिनों बहुत कम लोग खेल में करियर का सपना देखते थे। सानिया को क्लास की बजाय टेनिस कोर्ट में देखकर रिश्तेदार तंज कसते थे। कुछ कहते, खेल में क्या रखा है, बेटी को टीचर या डॉक्टर बनाओ। कई रिश्तेदार यह भी कहता कि खेलकूद करने वाली लड़की से कौन शादी करेगा? सानिया बताती हैं, ‘रिश्तेदारों ने मां से कहा कि धूप में खेलने से इसका रंग सांवला हो रहा है। काली हो गई, तो कौन शादी करेगा।’ लोगों की परवाह किए बगैर सानिया आगे बढ़ती रही। कट्टरपंथियों ने उसकी पोशाक को लेकर सवाल भी उठाए। जब कोई विवाद हुआ, माता-पिता साथ खड़े रहे। सानिया की छोटी बहन अनम कहती हैं, ‘अप्पी बहुत मेहनती हैं। रोजाना छह घंटे प्रैक्टिस करती हैं। दो घंटे जिम में रहती हैं। खाने-पीने को लेकर वह अनुशासित हैं। लंबी यात्राओं के बाद भी वह थकती नहीं हैं। सच कहूं, मेरी अप्पी सुपर ह्यूमन हैं।’
प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी