राह कौन सी जाऊँ मैं? / अटल बिहारी वाजपेयी

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हिंदी कविता 

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का 16 अगस्त 2018 को निधन हो गया .  उन्हें  एक बार नहीं बल्कि तीन बार भारत के प्रधानमंत्री होने का गौरव प्राप्त हुआ. लेकिन वो सिर्फ नेता नहीं थे, उन विरले नेताओं में से थे, जिनका महज साहित्य में झुकाव ही नहीं था बल्कि  वो खुद लिखते भी थे. विविध मंचों से और यहां तक कि संसद में भी उन्होंने  अपनी कविताओं का पाठ कर सबको चकित कर दिया था . उनकी  कविताओं का एक एल्बम भी आ चुका है जिन्हें जगजीत सिंह ने भी अपनी अावाज़ दी है. पढ़िए उनकी कविता – कदम मिलकर चलना होगा .

चौराहे पर लुटता चीर
प्यादे से पिट गया वजीर
चलूँ आखिरी चाल कि बाजी छोड़ विरक्ति सजाऊँ?
राह कौन सी जाऊँ मैं?

सपना जन्मा और मर गया
मधु ऋतु में ही बाग झर गया
तिनके टूटे हुये बटोरूँ या नवसृष्टि सजाऊँ मैं?
राह कौन सी जाऊँ मैं?

दो दिन मिले उधार में
घाटों के व्यापार में
क्षण-क्षण का हिसाब लूँ या निधि शेष लुटाऊँ मैं?
राह कौन सी जाऊँ मैं ?

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