उत्तर प्रदेश के कैराना कस्बे में पली-बढ़ी मेहरुन्निसा कभी स्कूल नहीं गईं। तालीम के नाम पर उन्हें घर पर ही उर्दू-अरबी सीखने का मौका मिला। पिता मदरसे में इमाम थे। आर्थिक हालात कभी अच्छे नहीं रहे। मेहरुन्निसा बताती हैं कि हमारे गांव में बच्चों को स्कूल भेजने का रिवाज नहीं था। मगर मामू के बच्चे पढ़ते थे। उन्हें देखकर मेरे मन में भी उमंग जगी। मैं उनकी किताबें देखकर पढ़ने लगी। 14 साल की हुई, तो निकाह हो गया। ससुराल कैराना से करीब 30 किलोमीटर दूर बुढ़ाना गांव में थी। शौहर खेती करते थे। यहां भी आर्थिक तंगी ने पीछा नहीं छोड़ा। बड़े परिवार ने दुश्वारियों को और गंभीर बनाया। एक साल बाद बेटा हुआ। उसका नाम रखा नवाजुद्दीन। परिवार में नौ बच्चे थे, सात बेटे और दो बेटियां। खेती से खाने-पीने का इंतजाम हो जाता था, पर बच्चों की पढ़ाई का खर्च निकालना मुश्किल था। घर पर बच्चों को पढ़ाने के लिए एक सहेली से हिंदी सीखी। बच्चों का स्कूल में दाखिला कराया। मेहरुन्निसा कहती हैं- मायके में भी मेरा बड़ा परिवार था। हमने कभी नहीं सोचा कि कम बच्चे होने चाहिए, पर मैंने कोशिश की कि सभी बच्चे तालीम हासिल करें। मैंने बेटों और बेटियों में फर्क नहीं किया।
जब शौहर की कमाई कम पड़ने लगी, तो वह कपड़े सिलने लगीं। हालांकि शौहर को पसंद नहीं था कि बीवी काम करे। मेहरुन्निसा बताती हैं- नवाजुद्दीन के अब्बू नहीं चाहते थे कि मैं काम करूं। उनके आने के पहले मैं अपनी सिलाई-मशीन छिपा देती थी। सिलाई करने की वजह से गांव की तमाम महिलाओं से उनकी दोस्ती हो गई थी। कई महिलाएं तो घर पर सिलाई सीखने भी आती थीं, पर उन्होंने इसकी भनक शौहर को नहीं लगने दी। सिलाई के अलावा उन्हें खाना पकाने का भी शौक था। गांव की औरतें नए-नए पकवान सीखने के लिए भी उनके पास आतीं। कई अनपढ़ औरतों को उन्होंने उर्दू-अरबी पढ़ना सिखाया। इस वजह से गांव में कई सहेलियां बन गई थीं। उनके खानदान का फिल्मी दुनिया से कभी कोई नाता नहीं रहा। वह खुद कभी फिल्मों की शौकीन नहीं रहीं। एक बार एक दिलचस्प वाकया हुआ। निकाह के कुछ समय बाद वह शौहर के संग शहर में फिल्म दिखने गईं। पहली बार उन्होंने सिनेमा हॉल देखा। वह फिल्म थी आरजू। जब इंटरवल हुआ और हॉल में लाइट जली, तो शौहर उन्हें देखकर चौंक गए। मेहरुन्निसा बताती हैं- आधी फिल्म खत्म हो गई थी और मैंने चेहरे से नकाब ही नहीं हटाया था। नवाज के अब्बू खूब हंसे मुझ पर। मुझे पता ही नहीं था कि फिल्म देखने के लिए चेहरे से नकाब हटाना पड़ता है। मैं कभी बिना बुरके के बाहर नहीं गई। भले ही मेहरुन्निसा हमेशा परदे में रही हों, मगर उनके ख्यालात कभी पिछड़े नहीं रहे। जब बेटे नवाज ने कहा कि वह फिल्मों में काम करना चाहते हैं, तो उन्होंने खुशी-खुशी इसकी इजाजत दे दी। हां, रिश्तेदारों ने तंज कसे कि इसकी शक्ल एक्टर बनने लायक नहीं है। बेकार में वक्त बरबाद कर रहा है। मगर मेहरुन्निसा को अपने बेटे पर यकीन था।
बड़ा बेटा होने के नाते नवाजुद्दीन उनके सबसे करीब थे। उन्हें मुंबई में लंबा संघर्ष करना पड़ा। जब निराशा बढ़ जाती और हिम्मत जवाब देने लगती, तो वह अम्मी को फोन करते। उनसे बातें करने के बाद मानो उनमें नई ऊर्जा आ जाती थी। अम्मी ने कभी उनसे यह नहीं कहा कि चलो, बहुत हुआ। अब गांव लौट आओ। वह हमेशा यह समझाती थीं कि बेटा मेहनत कभी जाया नहीं होती। नवाजुद्दीन बताते हैं- अम्मी के अंदर बड़ा हौसला है। घर के हालात जो भी रहे हों, वह हमेशा चट्टान की तरह हमारे पीछे खड़ी रहीं। मैंने मुंबई में लंबा संघर्ष किया। कई बार लगा, वापस लौट जाऊं, मगर उन्होंने मुझे हारने नहीं दिया। शुरुआत में नवाजुद्दीन को फिल्मों में बहुत छोटे रोल मिले। गांव में कुछ लोगों ने उनकी हंसी उड़ाई। मेहरुन्निसा ने ऐसे लोगों को कभी जवाब नहीं दिया। साल 2012 में गैंग्स ऑफ वासेपुर से नवाजुद्दीन की बॉलीवुड में पहचान बनी। इसके बाद तो लोगों का नजरिया बदलने लगा। बजरंगी भाईजान और मांझी जैसी फिल्मों के बाद वह बड़े एक्टर बन गए। कामयाबी का सफर चल पड़ा। रिश्तेदार और पड़ोसी तारीफ करने लगे। मेहरुन्निसा कहती हैं- नवाजुद्दीन एक्टर बन गया, इससे बड़ी खुशी और क्या हो सकती है मेरे लिए? बहुत मेहनत की है मेरे बच्चे ने। उसके अंदर बड़ा सब्र है। आजकल मुंबई में हूं उसके साथ। बड़ा ख्याल रखता है मेरा। अल्लाह उसे और कामयाबी दे।
पिछले सप्ताह बीबीसी ने मेहरुन्निसा को सौ प्रभावशाली महिलाओं में शुमार किया। अब वह उत्तर प्रदेश के अपने गांव बुढ़ाना में बच्चों की शिक्षा के लिए काम करना चाहती हैं। उनकी ख्वाहिश है कि उनके इलाके की हर औरत पढ़े, ताकि वे अपने बच्चों को पढ़ा सकें। नवाजुद्दीन सिद्दीकी कहते हैं कि मेरी मां हमेशा गांव में रहीं। उनका जीवन संकीर्ण विचारधारा वाले माहौल में गुजरा। इसके बावजूद उन्होंने हम भाई-बहनों को अच्छी तालीम दिलवाई। हमें आगे बढ़ने का हौसला दिया। बीबीसी की सौ प्रभावशाली महिलाओं की सूची में उनका नाम शामिल होना मेरे लिए वाकई गर्व की बात है।