महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा का जन्य उत्तर प्रदेश के फरखाबाद नगर में हुआ था ।
इनके पिता श्री योविन्द सहाय वर्मा इन्दौर के. एक कॉलेज में अध्यापक थे और
माता धर्मपरायण महिला थीं। माता से रामायण और महाभारत की कथाएँ
चुनते रहने के कारण शैशव से ही महादेवीजी के मन में साहित्य के प्रति आकर्षण
उत्पन हो गया था। इन्होने प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम० ए० किया।
दर्शन का महादेवीजी ने विशेष अध्ययन किया और संगीत तथा चित्रकला में
भी इनकी अभिरुचि है। भारत सरकार ने साहित्य-सेवा के लिए मह्ायदेवीजी
को प्रग्रभूषण” से अलंकृत किया है ।
महादेवीजी ने मुख्यतः गीतों की रचना की है, जिनमें वेदना की मार्मिक
अभिव्यक्ति हुई है । इनके गीतों के मूल में प्रायः एक हीं भाव है : असीम,
अग्रोचर और परोक्ष प्रिय के प्रति प्रणय-निवेदन । कवयित्री की विरह-विकल
आत्मा दीपश्चिखा के समान अविराम जलती है । वेदना की अग्नि में मन का
सात कतुष भस्म हो जाता है, अतः ये सहर्ष उसका वरण करती हैं- तुमको
पीड़ा में ढूँढ़ा, तुममें ढूँढँँगी पीड़ा” ।
महादेवी वर्मा ने स्निग्ध और सरल तत्सम-प्रधान भाषा का प्रयोग किया
है । ताहित्य और संगीत का जैसा मणिकांचन योग इनके गीतों में मिलता है,
वैत्ा अन्यत्र नहीं । कवयित्री के अतिरिक्त ये प्रौढ़ गद्य-लेखिका भी हैं–ऐसा
श्रेष्ठ गद्य वास्तव में बहुत कृम कवियों ने लिखा है ।
नीहार’, रश्मि, ‘नीरजा’, सान्ध्यगीत’ (जो ‘यामा’ में संकलित है) तथा
|. दीपशिखा’ कवयित्री की प्रसिद्ध काव्य-कृतियाँ हैं