प्राचीन काल से ही भोजपुरी में पहेलियाँ जिसे भोजपुरी में बुझौवल कहते है प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। भोजपुरी में अध्यात्म पक्ष को लेकर भी पहेलियाँ कही गयी है । 350 वर्ष पूर्व संतकवि धरनी दास के शब्द प्रकाश में पेहानी प्रसंग शीर्षक से भोजपुरी पहेलियां लिखी थी जो इस प्रकार है
रुख न बिरिछ बसे ताहा सुगा, अंग बिराजे पहिरे लूगा।
मुंह पर मासा लच्छन मान, से बुझे से खरा सयान।।
राउ अकेले रहे खड़ माही , आपु सँवारे बल से छाँही।
बूझ इयारे लगे ना चोट , भीतर खंधक बाहर चोर।।
नारी एक बहुतन्ह सुखदाई , पिएना पानी पेट भर खाई।
चार महीना ताकर चांउ , पांचवे मास रहे कि जाऊं।।