जब वह चमचमाती सफेद कार से जिसपर “जजशिप आॅन ड्युटी” की लाल पट्टी लगी हुई थी सुरक्षा प्रहरीयों के बीच इस्लामपुर जिले के डिंजापुर के राष्ट्रीय लोक अदालत में जज की कुर्सी तक पहुँची तो यह क्षण न सिर्फ उसके लिए बल्कि उन जैसी हर ट्रांसजेंडर के लिए गर्व का विषय बन गया। यह समाज जहाँ आज भी अपनी दकियानूसी और पूर्वाग्रहों से ग्रसित विचारधारा के कारण सामाजिक तंत्र में उनकी भूमिका को स्वीकार नहीं कर पा रहा है वहीं एक जज के रुप में ट्रांसजेंडर का चुना जाना एक मील का पत्थर साबित होगा।
जोयिता मंडल उन लाखों ट्रांसजेंडरों में से एक हैं जिन्हें लिंग भेद के कारण उपेक्षाओं का शिकार होना पड़ा। परंतु वह इस बात के लिए दृढ़निश्चयी थी कि इस सामाजिक कुंठा को वह जरुर तोड़ेगी। 2011 से ही जोयिता ट्रांसजेडर समाज के लिए काम कर रही हैं। जब यह बात उनके जानने वालों और समुदाय में पता चली तो फेसबुक पर बधाईयों का तांता लग गया। उम्मीद की नई किरण का आगाज हुआ। जिसका सभी ने तहे दिल से स्वागत किया।
जोयिता के संघर्ष की कहानी रोंगटे खड़ी कर देने वाली है। उन्हें भी वह सभी जिल्लत और जहालत का सामना करना पड़ा जो हर ट्रांसजेडर को झेलना पड़ता है। जब वह स्कूल काॅलेज में पढ़ने के लिए जाती थीं तो उनके क्लासमेट और अन्य साथियों के द्वारा ताने कसे जाते थे और फब्तियाँ की जाती थी। परिस्थियों से परेशान जोयिता को पढ़ाई छोड़नी पड़ी। अपना पेट पालने के लिए उन्हें सड़कों और ट्रैफिक सिंग्नलों पर भीख तक माँगना पड़ा। जहाँ लोग कुछ पैसे दे कर इनसे पीछा छुड़ाना चाहते थे। इसके साथ ही साथ उन्हें उत्सवों के अवसर पर घर-घर नाचना गाना भी पड़ा। यह सब करना उनकी मजबूरी थी क्योंकि उनके ट्रांस होने के कारण उन्हें कोई काम नहीं देना चाहता था।
पहले जोयिता की पहचान मात्र एक ट्रांस के रुप में थी। 2010 की बात है जब वह एक होटल में कमरा लेने गई तो उन्हें असम्मान देते हुए कमरा नहीं दिया गया और उन्हे रात वहीं बस स्टैण्ड के किनारे सो कर गुजारनी पड़ी। यह वही बस स्टैण्ड था जहाँ वह भीख माँगा करती थी। एक वह भी दिन थे और एक आज का दिन है जब उसी बस स्टैण्ड से महज 5 मिनट की दूरी पर जोयिता मंडल का कार्यालय है। जहाँ वह न्यायधीश के रुप में नियुक्त की गई हैं।
जोयिता ने ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए कई कार्य किए है। 2011 से ही उन्होंने इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान निभाया है। लोक अदालत में अब वह बैंक से लोन के मामलो को देखेंगी।
जीवन संघर्ष के हर पहलू का डट कर मुकाबला करने वाली जोयिता ने जहाँ भूख मिटाने के लिए भीख तक माँगें वहीं अपने समुदाय के प्रति लोगों के कुंठाग्रस्त मानसिकता को तोड़ने के लिए कई सामाजिक काम भी किए। कई वर्षो के जद्दोजहद और अनगिनत दर्द भरे अनुभवों ने भी जोयिता के संकल्प को विचलित नहीं कर पाए। आज सफलता के शीर्ष पर पहुँची जोयिता मंडल की उपलब्धि उनके लिए तो गर्व की बात है साथ ही साथ एलजीबीटी समुदाय के लिए एक प्रेरणा और देश के लिए भी गर्व की बात है।