अजीम प्रेमजी
( चेयरमैन, विप्रो लिमिटेड )
स्कूली पढ़ाई के बाद वह 12वीं कक्षा में पहुंच चुके थे। पिता चाहते थे कि कारोबार की कमान संभालने से पहले बेटा अमेरिका जाकर तालीम हासिल करे। अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी पहुंचकर अजीम को नया माहौल मिला। उन दिनों अमेरिकियों के लिए कंप्यूटर आम चीज थी, जबकि भारत में कंप्यूटर का चलन बिल्कुल न था। पहली बार उन्होंने आईटी के महत्व को जाना। सुनहरे भविष्य के सपनों के साथ वह पढ़ाई में जुट गए। परदेस में पढ़ाई पूरी करने के बाद वह स्वदेश लौटकर कुछ नया काम शुरू करना चाहते थे।
इस बीच अचानक पिताजी के इंतकाल की खबर आई। बीच में ही पढ़ाई छोड़कर अजीम घर लौट आए। वह कहते हैं, तब मैं 21 साल का था। कई लोगों ने कहा कि विदेश में पढ़ाई की है। तेल-साबुन के बिजनेस में मत पड़ो। बेहतर है कि मोटे वेतन और बढ़िया सुविधाओं वाली नौकरी कर लो। पीछे मुड़कर देखता हूं, तो लगता है कि बिजनेस संभालने का मेरा फैसला सही था। उन्होंने पिता के कारोबार की कमान थाम ली। काम करने का अंदाज ऐसा कि सब कहने लगे, बेटा तो पिता से भी ज्यादा तरक्की करेगा।
उन दिनों देश आईटी क्षेत्र में काफी पीछे था। अमेरिका से लौटे अजीम को इस क्षेत्र में बेशुमार संभावनाएं नजर आईं। उन्होंने इसी क्षेत्र में कंपनी के विस्तार का फैसला किया। सवाल उठा, भारत जैसे देश में, जहां बिजली-पानी के लिए तरसना पड़ता है, वहां भला कंप्यूटर कौन चलाएगा? पर अजीम तय कर चुके थे।
1980 में उन्होंने अपनी कंपनी का नाम बदलकर विप्रो लिमिटेड कर दिया। उनकी कंपनी अमेरिका के सेंटिनल कंप्यूटर कॉरपोरेशन के साथ मिलकर मिनी-कंप्यूटर बनाने लगी। लोगों की आशंकाएं गलत साबित हुईं। कारोबार बढ़ चला। देखते-देखते विप्रो देश की बड़ी कंपनी बन गई।
अजीम कहते हैं- यदि लोग आपके लक्ष्य पर हंस नहीं रहे हैं, तो इसका मतलब यह है कि लक्ष्य बहुत छोटे हैं। इसलिए किसी के हंसने की परवाह मत कीजिए।
अजीम भारत के धनाढ्यों में शुमार होने लगे। सन 1999 से लेकर सन 2005 तक वह भारत के सबसे धनी व्यक्ति रहे। सबसे बड़ी बात यह रही कि उन्होंने धन-दौलत के साथ सम्मान भी कमाया। अपनी कंपनी के कर्मचारियों के लिए वह दुनिया के सबसे अच्छे बॉस, तो आम लोगों के लिए सबसे अच्छे इंसान साबित हुए।
साल 2001 में ‘अजीम प्रेमजी फाउंडेशन’ की स्थापना की। इसका मकसद गरीब व बेसहारा लोगों की मदद करना है। यह फाउंडेशन कई राज्यों में सरकार के साथ मिलकर शिक्षा क्षेत्र में काम करता है। अजीम कहते हैं- हमारे देश में लाखों बच्चे स्कूल नहीं जाते। देश को आगे ले जाने के लिए शिक्षा सबसे जरूरी जरिया है।
जून, 2010 में दुनिया के दो सबसे बड़े दौलतमंद कारोबारी बिल गेट्स और वारेन बफेट ने ‘द गिविंग प्लेज’ अभियान शुरू किया। यह अभियान दुनिया के अमीर लोगों को इस बात के लिए प्रेरित करता है कि वे अपनी अकूत संपत्ति का कुछ हिस्सा परोपकार पर खर्च करें। अजीम इस अभियान में शामिल होने वाले पहले भारतीय बने।
सन 2010 में उन्होंने देश में स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए करीब दो अरब डॉलर का दान दिया। साल 2013 में उन्होंने अपनी दौलत का 25 फीसदी दान में दे दिया। अजीम कहते हैं, मुङो लगता है कि अगर ईश्वर ने हमें दौलत दी है, तो हमें दूसरों के बारे में जरूर सोचना चाहिए। ऐसा करके ही हम एक बेहतर दुनिया बना पाएंगे। टाइम मैग्जीन ने दो बार उन्हें दुनिया के शीर्ष 100 प्रभावशाली व्यक्तियों में शामिल किया। उन्हें पद्म भूषण व पद्म विभूषण से सम्मानित किया चुका है।प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी
पुरस्कार और सम्मान
- बिजनेस वीक द्वारा प्रेमजी को महानतम उद्यमियों में से एक कहा गया है
- सन 2000 में मणिपाल अकादमी ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया सन
- सन 2005 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया
- 2006 में ‘राष्ट्रीय औद्योगिक इंजीनियरिंग संस्थान, मुंबई, द्वारा उन्हें लक्ष्य बिज़नेस विजनरी से सम्मानित किया गया
- 2009 में उन्हें कनेक्टिकट स्थित मिडलटाउन के वेस्लेयान विश्वविद्यलाय द्वारा उनके उत्कृष्ट लोकोपकारी कार्यों के लिए डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया
- सन 2011 में उन्हें भारत सरकार द्वारा देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया
- सन 2013 में उन्हें ‘इकनोमिक टाइम्स अचीवमेंट अवार्ड’ दिया गया
- सन 2015 में मैसोर विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया
टाइम लाइन (जीवन घटनाक्रम)
1945: 24 जुलाई को अजीम रेमजी का जन्म मुंबई में हुआ
1966: अपने पिता की मृत्यु के बाद अमेरिका से पढ़ाई छोड़ भारत वापस आ गए
1977: कंपनी का नाम बदलकर ‘विप्रो प्रोडक्ट्स लिमिटेड’ कर दिया गया
1980: विप्रो का आई.टी. क्षेत्र में प्रवेश
1982: कंपनी का नाम ‘विप्रो प्रोडक्ट्स लिमिटेड’ से बदलकर ‘विप्रो लिमिटेड’ कर दिया गया
1999-2005: सबसे धनी भारतीय रहे
2001: उन्होंने ‘अजीम प्रेमजी फाउंडेशन’ की स्थापना की
2004: टाइम मैगज़ीन द्वारा दुनिया के टॉप 100 प्रभावशाली व्यक्तियों में शामिल किया
2010: एशियावीक के विश्व के 20 सबसे शक्तिशाली व्यक्तियों की सूचि में नाम
2011: टाइम मैगज़ीन द्वारा दुनिया के टॉप 100 प्रभावशाली व्यक्तियों में शामिल किया
2013: प्रेमजी ने अपने धन का 25 प्रतिशत भाग दान कर दिया और अतिरिक्त 25 प्रतिशत अगले पांच सालों में दान करने की भी घोषणा की
साभार – हिंदुस्तान अख़बार