MARIYAPPAN THANGAVELU BIOGRAPHY IN HINDI

Amit Kumar Sachin

Updated on:

मरियप्पन थंगावेलु

(पैरालंपिक गोल्ड मेडलिस्ट)

हादसे ने मेरे पैर छीन लिए
मां ने इलाज के लिए लोन लिया।
मगर कोई फायदा नहीं हुआ।
मैं हमेशा के लिए विकलांग हो गया,
लेकिन मां ने हिम्मत नहीं हारी।
मुङो पढ़ाया-लिखाया और खेलने की आजादी भी दी।
इसीलिए आज मैं इस मुकाम पर हूं।
मरियप्पन का जन्म तमिलनाडु के सेलम जिले से 50 किलोमीटर दूर पेरियावादागामपट्टी गांव में हुआ। बचपन में ही पिता परिवार छोड़कर चले गए। परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। चार बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी अकेले मां पर आ गई। गुजर-बसर करने के लिए कुछ दिनों तक उन्होंने ईंट भट्टे पर मजदूरी की। बाद में सब्जी बेचने लगीं। दुश्वारियों भरे दिन थे वे। सब्जी बेचकर इतनी कमाई नहीं हो पाती थी कि चारों बच्चों को भरपेट खाना खिलाया जा सके। इसके बावजूद मां चाहती थीं कि किसी तरह बच्चों की पढ़ाई जारी रहे, ताकि आगे चलकर उन्हें अच्छी जिंदगी नसीब हो। खुद अनपढ़ होने के बावजूद उन्होंने चारों बच्चों को स्कूल भेजा।पर नई मुसीबतें उनका इंतजार कर रही थीं।
 मरियप्पन तब पांच साल के थे। एक दिन पैदल स्कूल जा रहे थे। तभी रास्ते में सामने से आती तेज रफ्तार बस ने उन्हें टक्कर मार दी। बस का पहिया उनके नन्हे पैरों को कुचलता हुआ आगे बढ़ गया। वह बेहोश हो गए। राहगीरों ने खून से लथपथ बच्चे को पास के सरकारी अस्पताल तक पहुंचाया। इलाज शुरू हुआ, पर उनकी हालत बिगड़ती गई। फिर किसी ने प्राइवेट अस्पताल ले जाने का सुझाव दिया। वहां डॉक्टर ने मां से कहा कि इलाज में बहुत खर्च आएगा। मां गिड़गिड़ाने लगीं- कुछ भी कीजिए डॉक्टर साहब। मेरे बेटे के पांव ठीक कर दीजिए। आनन-फानन में किसी तरह तीन लाख रुपये का लोन लिया। कुछ लोगों ने उन्हें टोका- इतनी बड़ी रकम है, कहां से चुकाओगी? मां का जवाब था- बेटा अपने पांव पर खड़ा हो जाए, इसके लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूं।
 कुछ महीने इलाज चला। समय के साथ उम्मीदें धूमिल होती गईं। आखिरकार एक दिन डॉक्टर ने साफ कह दिया कि अब आपका बेटा कभी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाएगा।मरियप्पन के घुटने के नीचे का हिस्सा पूरी तरह खराब हो गया था।
 मरियप्पन कहते हैं, लोगों ने कहा कि ड्राइवर ने शराब पी रखी थी, इसलिए यह हादसा हुआ। मगर मेरे लिए यह सब मायने नहीं रखता। किसी को कोसने से कुछ हासिल नहीं होता है। मैंने हकीकत को स्वीकार किया और आगे बढ़ने की कोशिश की। हादसे ने उन्हें हमेशा के लिए अपाहिज बना दिया। मगर मां ने हिम्मत नहीं हारी। सब्जी बेचने के साथ ही वह दूसरों के घरों में चौका-बर्तन करने लगीं, ताकि बेटे की पढ़ाई का खर्च निकल सके। वह जानती थीं कि शिक्षा ही वह ताकत है, जो उनके बेटे को बेहतर जिंदगी दे सकती है। इसलिए तमाम अड़चनों के बावजूद मरियप्पन का स्कूल जाना बंद नहीं हुआ।
पढ़ाई के साथ खेल में भी उनका खूब मन लगता था। उन्हें वॉलीबॉल बहुत पंसद था। मगर खेल टीचर को लगा कि उनका शिष्य ऊंची कूद में कहीं ज्यादा अच्छा प्रदर्शन कर पाएगा। लिहाजा उन्होंने मरियप्पन को हाई जंप के लिए प्रेरित किया। इस प्रेरणा ने मरियप्पन के अंदर कुछ कर गुजरने का जज्बा पैदा किया। अब उनके लिए हर अड़चन, हर चुनौती बेमानी थी। ट्रेनर ने उन्हें एहसास दिलाया कि वह सामान्य बच्चों से कहीं बेहतर खिलाड़ी और छात्र हैं। इसी एहसास से वह आगे बढ़ते रहे। 12वीं की परीक्षा पास करने के बाद बीबीए की डिग्री हासिल की।विकलांग होने के बावजूद वह सामान्य खिलाड़ियों के संग खेले। 14 साल की उम्र में सामान्य खिलाड़ियों के साथ मुकाबला करते हुए वह हाई जंप में दूसरे स्थान पर पहुंचे।
 मरियप्पन कहते हैं, मैंने कभी खुद को दूसरे से कम नहीं समझा। शारीरिक रूप से जरूर मैं दिव्यांग बन गया था, पर मन से मैं एक सामान्य बच्च था। मन की ताकत ने मुङो यहां तक पहुंचाया। कोच सत्यनारायण ने उन्हें 18 साल की उम्र में नेशनल पैरा एथलीट चैंपियनशिप में देखा। उन्हें यकीन हो गया कि लड़के में दम है और अगर इसे बेहतर ट्रेनिंग दी जाए, तो यह बहुत आगे जा सकता है। प्रोफेशनल ट्रेनिंग के लिए वह मरियप्पन को अपने साथ बेंगलुरु ले गए। वहां कड़े अभ्यास के बाद मरियप्पन 2015 में अव्वल खिलाड़ी बन गए। ट्रेनिंग के लिए घर से एकेडमी तक जाना और टूर्नामेंट के दौरान शहर से बाहर जाना आसान नहीं था। एक तरफ संसाधनों की कमी थी, तो दूसरी तरफ शारीरिक चुनौतियां। मगर बुलंद हौसले वाले मरियप्पन ने मुश्किलों को कभी अपनी राह की अड़चन नहीं बनने दिया।
 उनके कोच ई इलामपार्थी कहते हैं, मरियप्पन बहुत मेहनती और अनुशासित खिलाड़ी है। उसका जज्बा व लगन हम सबके लिए प्रेरक है।मरियप्पन ने पिछले साल रियो पैरालंपिक्स में पुरुषों की टी-42 हाई जंप में गोल्ड मेडल जीता। 21 साल के मरियप्पन 1.89 मीटर की जंप लगाने वाले पहले भारतीय बन गए। उनकी शानदार कामयाबी ने देश का नाम रोशन किया है। जल्द ही उनके संघर्ष और कामयाबी की कहानी फिल्मी परदे पर दिखने वाली है। तमिलनाडु की मशहूर डायरेक्टर ऐश्वर्या धनुष उनके जीवन पर फिल्म बना रही हैं। हाल में मरियप्पन को पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है।
 उनकी मां सरोज कहती हैं, मरियप्पन को लेकर हमेशा फिक्र रहती थी। मगर उसने अपनी मेहनत और लगन से सारी चिंताएं दूर कर दी। मुङो खुशी है कि पूरा देश उसे प्यार करता है।
साभार हिंदुस्तान अख़बार

Leave a Comment

Exit mobile version