पिछड़ा आदमी हिंदी कविता - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जब सब बोलते थे वह चुप रहता था, जब सब चलते…
देश कागज पर बना नक्शा नहीं होता हिंदी कविता - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना यदि तुम्हारे घर के एक कमरे…
पाँव बढ़ाना चलते जाना - हिंदी कविता सर्वेश्वरदयाल सक्सेना हँसा ज़ोर से जब, तब दुनिया बोली इसका पेट भरा…
व्यंग्य मत बोलो - हिंदी कविता सर्वेश्वर दयाल सक्सेना व्यंग्य मत बोलो। काटता है जूता तो क्या हुआ पैर…