SAKDIYAH MAROOF BIOGRAPHY IN HINDI

Amit Kumar Sachin

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सादिया मारूफ (SAKDIYAH MAROOF)

(इंडोनेशियाई कॉमेडियन)
मुल्क में लड़कियों पर बहुत सारी पाबंदियां थीं।
 मैं हास्य-व्यंग्य के जरिये कट्टरपंथियों पर हमले करने लगी।
 मगर मुङो हमेशा इस बात का खौफ रहता था 
कि कहीं घरवालों को इसकी भनक न लग जाए।
 खुशनसीब हूं कि तमाम लोगों ने मेरा साथ दिया।
इंडोनेशिया के कट्टर मुस्लिम परिवार में जन्मी सादिया को बचपन से ही अनेक पाबंदियों का सामना करना पड़ा। उनका परिवार सेंट्रल जावा के पेकालोनगन शहर में रहता था। घर में सुख-सुविधाओं की कोई कमी नहीं थी, पर परंपरावादी परिवार में बेटियों को बाहर घूमने-फिरने व करियर बनाने की आजादी नहीं थी। होश संभालते ही लड़कियों को घर-गृहस्थी के काम-काज सिखाए जाते, ताकि ससुराल में दिक्कत न आए। सादिया को ये पाबंदियां कभी रास नहीं आईं। घरवालों ने सोचा, बच्ची बड़ी होगी, तो संभल जाएगी। सादिया जब 10वीं कक्षा में थीं, तभी एक दिन उनके लिए रिश्ता आया।

जब यह बात सादिया को पता चली, तो वह भड़क गईं। साफ शब्दों में कह दिया- मैं शादी नहीं करने वाली। मुङो यूनिवर्सिटी में पढ़ना है। शादी के बारे में बाद में सोचूंगी। अम्मी ने यह बात अब्बू को बताई, तो वह चिंतित हो गए। खानदान में 16 साल की उम्र के बाद बेटियों को मायके में रखने का रिवाज कभी नहीं रहा। शादी में देर हुई, तो पता नहीं, बाद में अच्छे रिश्ते मिले या नहीं।घर में कोहराम मच गया। बच्ची शादी से मना कर रही है। अगर रिश्तेदारों में बात फैली, तो क्या होगा? मगर क्या करते, बेटी की जिद थी। अब्बू उन्हें यूनिवर्सिटी भेजने को तैयार हो गए।

 सादिया बताती हैं- अब्बू ने पढ़ने की इजाजत दी, पर कई शर्तो के साथ। उन्होंने कहा कि मैं कॉलेज में सिर्फ पढ़ाई करूंगी, किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लूंगी, कभी कॉलेज से बाहर घूमने नहीं जाऊंगी। और हां, सबसे अहम बात कि किसी लड़के से बात नहीं करूंगी। अब्बू की सारी शर्ते मानने के बाद 2007 में वह योगियाकार्ता की गजा मादा यूनिवर्सिटी आ गईं।

वहां पहुंचकर पहली बार उन्हें आजादी का एहसास हुआ। पढ़ाई के साथ उन्होंने वे सारे काम किए, जिसके लिए उन्हें मना किया गया था। सादिया ने गाना सीखा। लड़कियों के संग बाहर घूमने गईं। मौका मिला, तो गंभीर मसलों पर लड़कों के संग बहस भी की। घर में लड़कियों से उम्मीद की जाती थी कि वे धीमी आवाज में बोलेंगी। मगर कॉलेज में कोई नहीं था टोकने वाला।

 कई बार वह कॉलेज की दीवार फांदकर शाम को सहेलियों के संग बाहर जाने लगीं। शाम को खुली हवा में घूमने का एहसास अद्भुत था। इससे पहले यह मौका कभी नहीं मिला था उन्हें। सादिया बताती हैं कि यूनिवर्सिटी में पहली बार लड़कियों के सामने चीखने और तेज आवाज में अपनी खुशी जाहिर करने का मौका मिला। उस खुशी को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। हालांकि कैंपस में लड़कों और लड़कियों के बीच दूरी बनाए रखने की परंपरा जारी थी।
सेमिनार के दौरान लड़के व लड़कियां अलग-अलग बैठते थे। बीच में परदा होता था, ताकि वे एक-दूसरे से बात न कर सकें। सादिया बताती हैं- लड़कों और लड़कियों के बीच परदा डालने की बात मुङो बहुत अजीब लगी। ऐसा बेतुका नियम बनाने वालों पर मुङो हंसी आती थी। एक बार स्टेज पर एक कार्यक्रम के दौरान मैंने इस मसले पर व्यंग्य किया। हर शाम अब्बू का फोन आता।

वह सिर्फ पढ़ाई के बारे में बात करते और अपनी शर्ते याद दिलाते। सादिया भी एक आज्ञाकारी बेटी की तरह उनकी हां में हां मिलाती रहतीं। कभी हिम्मत नहीं हुई कि वह उनसे अपने मन की बात कह सकें। मगर यूनिवर्सिटी के अंदर वह खुद को आजाद महसूस कर रही थीं। मुल्क में धर्म के नाम पर महिलाओं पर लगी पाबंदियों पर पहली बार उन्हें जुबान खोलने का मौका मिला। सीधे सरकार या संस्था पर सवाल उठाने की आजादी नहीं थी, इसलिए वह व्यंग्य के जरिये अपनी बात कहने लगीं। कॉलेज के दोस्तों को उनका अंदाज पसंद आने लगा। सब तरफ उनकी चर्चा होने लगी

। कई बार उन्होंने स्टेज पर खड़े होकर महिलाओं पर लगी पाबंदियों का मजाक उड़ाया। कॉमेडी के जरिये वह ऐसे मसलों पर अपनी राय जाहिर करने लगीं, जिनके बारे में पहले कभी किसी की मुंह खोलने की हिम्मत नहीं हुई। सादिया बताती हैं- हमारे मुल्क में कभी किसी लड़की ने स्टेज पर खड़े होकर हास्य-व्यंग्य की बातें नहीं कीं। मैंने पहली बार यह दुस्साहस किया। मेरी बातें लोगों के दिलों तक पहुंचने लगीं।धीरे-धीरे शोहरत बढ़ने लगी। कॉलेज के बाहर भी शो होने लगे। वह देश की पहली महिला स्टैंड-अप कॉमेडियन बन गईं।
नेशनल टीवी ने उनके शो का लाइव प्रसारण किया गया। सादिया बताती हैं, हमारे मुल्क में तो लड़कियों को सपने देखने की भी इजाजत नहीं है। जब मैंने कॉमेडी शो करने शुरू किए, तो मुङो हर पल यही खौफ रहता कि कहीं घरवालों को इसकी भनक न लग जाए या कट्टरपंथी जमातें खफा न हो जाएं। उनकी कॉमेडी सिर्फ लोगों को हंसाने के लिए नहीं थी। इसका मकसद था, महिला-विरोधी मानसिकता पर चोट करना। इस पहल के लिए उन्हें ओस्लो फ्रीडम फोरम अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।

 कई बार देश से बाहर भी शो करने का मौका मिला। ऑस्ट्रेलिया के एक अखबार ने उनका इंटरव्यू किया। इससे घरवालों को पता चल गया कि सादिया कॉमेडियन बन गई हैं। पहले वे नाराज हुए, पर बाद में उन्हें यकीन हो गया कि बेटी सही रास्ते पर चल रही है।

मुल्क में लड़कियों पर बहुत सारी पाबंदियां थीं। मैं हास्य-व्यंग्य के जरिये कट्टरपंथियों पर हमले करने लगी। मगर मुङो हमेशा इस बात का खौफ रहता था कि कहीं घरवालों को इसकी भनक न लग जाए। खुशनसीब हूं कि तमाम लोगों ने मेरा साथ दिया।
सादिया मारूफ
इंडोनेशियाई कॉमेडियन
वाया – हिंदुस्तान

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