रेप से लड़कर गायकी को अपना सब कुछ देने वाली मल्लिका-ए-ग़ज़ल- बेगम अख्तर साहिबा

Amit Kumar Sachin

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बेगम अख्तर साहिबा (मल्लिका-ए-ग़ज़ल)

BEGUM AKHTAR BIOGRAPHY IN HINDI

भारत में शास्त्रीय रागों पर आधारित गजल गायकी में बेगम अख्तर का प्रमुख स्थान है उनकी तारीफ में
उर्दू के अजीम शायर कैफी आजमी की कही यह पंक्ति ही काफी है- ‘गजल के दो मायने होते हैं, पहला गजल और दूसरा बेगम अख्तर। उनकी गायकी जहां एक ओर चंचलता और शोखी भरी थी, वहीं दूसरी ओर उसमें शास्त्रीयता और दिल को छू लेने वाली गहराइयां भी थीं। आवाज में गजब का लोच, रंजकता और भाव अभिव्यक्ति के कैनवास को अनंत रंगों से रंगने की क्षमता के कारण उनकी गाईं ठुमरियां बेजोड़ हैं।बेहद साफ आवाज और शुद्ध उर्दू उच्चारण रखने वाली बेगम अख्तर हिंदुस्तानी संगीत की कोहिनूर हीरा हैं।बेगम अख्तर के बारे में काफी कुछ लिखा और पढ़ा गया पर उनके व्यक्तित्व के बारे में बहुत कम लोग ही जानते है | आईये जानते है बेगम अख्तर के बारे में ——-

बचपन से ही  बनना चाहती थीं पार्श्व गायिका

बेगम अख्तर का जन्म सात अक्तूबर 1914 उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में हुआ था । उनके बचपन का नाम बीबी था । बेगम अख्तर बचपन से ही पार्श्व गायिका बनना चाहती थीं लेकिन उनके परिवार वाले उनकी इस इच्छा के सख्त खिलाफ थे।लेकिन उनके चाचा ने उनके शौक को आगे बढ़ाया। कुलीन परिवार से ताल्लुक रखने वाली अख्तरी बाई को संगीत से पहला प्यार सात वर्ष की उम्र में थियेटर अभिनेत्री चंदा का गाना सुनकर हुआ। उस जमाने के विख्यात संगीत उस्ताद अता मुहम्मद खान, अब्दुल वाहिद खान और पटियाला घराने के उस्ताद झंडे खान से उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत की दीक्षा दिलाई गई।

गाने सिखने से किया मना

बचपन में संगीत सिखने के वक्त उस्ताद मोहम्मद खान और बेगम अख़्तर के बीच ऐसी घटना हुई कि बेगम अख़्तर ने गाना सीखने से मना कर दिया। उन दिनों बेगम अख़्तर सही सुर नहीं लगा पाती थीं। उनके गुरु ने उन्हें इसके बारे में कई बार सिखाया और जब वह नहीं सीख पाई तो उन्हें डांट दिया। जेसके कारन बेगम अख्तर रोने लगी और उन्होंने कहा की मुझसे नहीं हो पा रहा है मै गाना नहीं सीखूंगी । तब उनके उस्ताद ने कहा बस इतने में ही हार मान गयी | ऐसे हिम्मत नहीं हारते | मेरी बहादुर बिटिया चलो एक बार फिर से सुर लगाने में जुट जाओ। उनकी यह बात सुनकर बेगम अख़्तर ने फिर से रियाज़ शुरू किया और सही सुर लगाये।

गाना सुनकर उस्ताद के आँखों   में आया आंसू 

तिस में दशक में बेगम अख्तर ने पारसी थियेटर में कम करना शुरू किया जिसके कारन उनका रियाज छुट गया | इस बात से उनके गुरु अत खान बहुत नाराज़ हुए और उन्होंने कहा जब तक तुम नाटक में काम करना नहीं छोड़ती मैं तुम्हें गाना नहीं सिखाऊंगा। उनकी इस बात पर बेगम अख़्तर ने कहा आप सिर्फ एक बार मेरा नाटक देखने आईये उसके बाद आप जो कहेंगे,वह मैं करूंगी। उस रात मोहम्मद अता खान बेगम अख़्तर के नाटक तुर्की हूर देखने गये। जब बेगम अख़्तर ने उस नाटक का गाना ‘चल री मोरी नैय्या’ गाया तो उनकी आंखों में आंसू आ गये और नाटक समाप्त होने के बाद बेगम अख़्तर से उन्होंने कहा बिटिया तू सच्ची अदाकारा है जब तक चाहो नाटक में काम करो।

सरोजनी नायडू ने खुश होकर दी  साड़ी 

बेगम अख्तर ने 15 वर्ष की बाली उम्र में मंच पर अपनी पहली प्रस्तुति दी थी। यह कार्यक्रम वर्ष 1930 में बिहार में आए भूकंप के पीड़ितों के लिए आर्थिक मदद जुटाने के लिए आयोजित किया गया था, जिसकी मुख्य अतिथि प्रसिद्ध कवयित्री सरोजनी नायडू थीं। वह बेगम अख्तर की गायिकी से इस कदर प्रभावित हुईं कि उन्हें उपहार स्वरूप एक साड़ी भेंट की।

रेप की वीभत्सता को हराने वाली बेगम अख्तर

बेगम अख्तर ने कई उस्तादों से सीखा मगर संगीत की तालीम का यह सफर कोई सुखद सफर नहीं था। सात साल की उम्र में बिब्बो के एक उस्ताद ने गायकी की बारीकियां सिखाने के बहाने उनकी पोशाक उठाकर अपना हाथ उनकी जांघ पर सरका दिया। इस प्रसंग के बहाने बताते चलें कि बेगम अख्तर पर किताब लिखने वाली रीता गांगुली ने एक जगह कहा है कि संगीत सीखने वाली करीब 200 लड़कियों से उन्होंने बात की और लगभग सभी ने अपने उस्तादों को लेकर इस प्रकार की शिकायत की। बेगम अख्तर के साथ बचपन में एक हादसा हुआ जिसमे मात्र 13 वर्ष की कची उम्र में ही वो माँ बन गयी हुआ ऐसा की बिहार के एक राजा ने उनका कदरदान बनकर उन्हें उनकी कला को देखने के लिए बुलाया और उनका बलात्कार किया इसके बाद अख्तरी बाई प्रेग्नेंट हो गई और एक बच्ची को जन्म दिया जिसका नाम शमीमा है परन्तु लोकलाज के डर से उन्होंने इस बात को दुनिया से छुपाए रखा और शमीमा को अपनी छोटी बहन बताती रही काफी लंबे समय बाद दुनिया को पता चला कि यह उनकी बहन नहीं बल्कि उनकी नाजायज बेटी है | लेकिन इस क्रूर हादसे के बावजूद बेगम अख्तर ने दोबारा खुद को समेटा और जीवन को नए सिरे से शुरू किया।

अख़्तरी बाई से बेगम अख़्तर

1945 में जब उनकी शौहरत अपनी चरम सीमा पर थी तब उन्हें शायद सच्चा प्यार मिला और उन्हों ने इश्तिआक अहमद अब्बासी, जो पेशे से वकील थे, से निकाह कर लिया और अख़्तरी बाई फ़ैज़ाबादी से बेगम अख़्तर बन गयीं। गायकी छोड़ दी और पर्दानशीं हो गयीं। बहुत से लोगों ने उनके गायकी छोड़ देने पर छींटाकशी की, “सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली” लेकिन उन्होंने अपना घर ऐसे बसाया मानों यही उनकी इबादत हो। पांच साल तक उन्होंने बाहर की दुनिया में झांक कर भी न देखा।

सारे बंधन को तोड़कर संगीत को दिया अपना जीवन

शादी के बाद सामाजिक बंधनों की वजह से बेगम साहिबा को गाना छोड़ना पड़ा।बेगम अख्तर के लिए गायकी छोड़ना वैसा ही था, जैसे एक मछली का पानी के बिना रहना। वे करीब पांच साल तक नहीं गा सकीं, जिसके कारण उनका सेहत ख़राब हुआ और वह बीमार रहने लगीं। यही वह वक्त था जब संगीत के क्षेत्र में उनकी वापसी उनकी गिरती सेहत के लिए मददगार साबित हुई और 1949 में वह रिकॉर्डिग स्टूडियो लौटीं। उन्होंने लखनऊ रेडियो स्टेशन में तीन गजल और एक दादरा गाया। इस प्रस्तुति के बाद उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े और उन्होंने संगीत गोष्ठियों में गायन का रुख किया। गायकी का यह सिलसिला उनकी आखिरी सांस तक जारी रहा। बेगम साहिबा का आदर समाज के जाने-माने लोग करते थे। सरोजनी नायडू और शास्त्रीय गायक पंडित जसराज उनके जबर्दस्त प्रशंसक थे, तो कैफी आजमी भी अपनी गजलों को बेगम साहिबा की आवाज में सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाते थे।

खुदा की नेमत बेगम अख्तर

उनकी गायकी जहां एक ओर चंचलता और शोखी भरी थी, वहीं दूसरी ओर उसमें शास्त्रीयता और दिल को छू लेने वाली गहराइयां भी थीं। आवाज में गजब का लोच, रंजकता और भाव अभिव्यक्ति के कैनवास को अनंत रंगों से रंगने की क्षमता के कारण उनकी गाईं ठुमरियां बेजोड़ हैं। बेगम अख्तर अपनी मखमली आवाज में गजल, ठुमरी, ठप्पा, दादरा और ख्याल पेश कर मशहूर होनेवाली एक सदाबहार गायिका थीं। उनकी गायकी आज भी लोगों को दीवाना बना देती है। बेहद साफ आवाज और शुद्ध उर्दू उच्चारण रखने वाली बेगम अख्तर हिंदुस्तानी संगीत की कोहिनूर हीरा हैं।

 मल्लिका-ए-गजल मिला उपनाम 

उन्होंने न सिर्फ़ संगीत की दुनिया में वापस कदम रखा बल्कि हिंदी फ़िल्मों में गायन के साथ अभिनय भी शुरू कर दिया। नाटकों से उनका रिश्ता 20 के दशक और हिंदी फ़िल्मों से 30 के दशक में ही जुड़ गया था।
बेगम अख्तर ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत एक दिन का बादशाह से की थी लेकिन दुर्भाग्य से उनकी यह फिल्म नहीं चल सकी. इसके कुछ समय बाद वो लखनऊ लौट आई और वहां पर उनकी मुलाकात निर्माता-निर्देशक महबूब खान से हुई बेगम अख्तर की प्रतिभा से महबूब खान काफी प्रभावित थे और उन्हें महबूब खान ने मुंबई बुलाया. अबकी बार मुंबई जाने के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और फिल्मों के साथ साथ है अपने गायकी के शौंक को भी बरकार रखा और मल्लिका-ए-गजल के नाम से पहचानी जाने लगी

पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित 

अदाकारा के रूप में उनकी आखिरी पेशकश थी सत्यजीत रे की बंगाली फ़िल्म ‘जलसा घर’ जिसमें उन्होंने शास्त्रीय गायिका का किरदार निभाया था। उन्होंने करीब 400 रचनाओं को अपना स्वर दिया। ढेरों पुरस्कार मिलने और असंख्य प्रशंसक हासिल करने के बावजूद बेगम अख्तर में लेशमात्र भी घमंड नहीं था। वे पूरी उम्र मशहूर उस्तादों से सीखती रहीं। उनकी इच्छा थी कि केवल अच्छा ही नहीं गाना है, बल्कि बेहतर से बेहतर भी होते जाना है। बेगम अख्तर ने 1961 में पाकिस्तान, 1963 में अफगानिस्तानऔर 1967 में तत्कालीन सोवियत संघ में भी अपने सुरों का जादू बिखेरा। भारत सरकार ने इस सुर साम्राज्ञी को पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित किया था। उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था।

ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया

बेग़म अख्तर गजल, ठुमरी और दादरा गायन शैली की बेहद लोकप्रिय गायिका थीं। उन्होंने ‘वो जो हममें तुममें क़रार था, तुम्हें याद हो के न याद हो’, ‘ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया’, ‘मेरे हमनफस, मेरे हमनवा, मुझे दोस्त बन के दवा न दे’, जैसी कई दिल को छू लेने वाली गजलें गायी हैं।

एक महान गायिका की अप्रतिम विदाई

1974 में बेगम अख्तर ने 30 अक्तूबर, अपने जन्मदिन के मौके पर कैफी आजमी की यह गजल गाई- ‘वो तेग मिल गई, जिससे हुआ था कत्ल मेरा, किसी के हाथ का लेकिन वहां निशां नहीं मिलता।‘ इसे सुनकर वहां मौजूद कैफी सहित तमाम लोगों की आंखें नम हो गईं। किसी को नहीं मालूम था कि इस गजल का यह मिसरा इतनी जल्द सच हो जाएगा। बेगम अख्तर जब अहमदाबाद के मंच पर ये पर गा रही थीं तब उनकी तबीयत काफी खराब थी। उनसे अच्छा नहीं गाया जा रहा था। ज्यादा बेहतर की चाह में उन्होंने खुद पर इतना जोर डाला कि उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा, जहां से वे वापस नहीं लौटीं। हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। लखनऊ के बसंत बाग में उन्हें सुपुर्दे-खाक किया गया। उनकी मां मुश्तरी बाई की कब्र भी उनके बगल में ही थी।

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