JASVINDER SANGHERA BIOGRAPHY IN HINDI

Amit Kumar Sachin

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जसविंदर संघेरा 

(ब्रिटेन में  सामजिक कार्यकर्ता )

पंद्रह साल की उम्र में मेरी शादी तय कर दी गई।
 इनकार किया, तो कमरे में कैद कर दिया गया।
 स्कूल जाना बंद हो गया। मैं क्या करती?
 घर छोड़कर भागना पड़ा।
 परिवार ने मुङो त्याग दिया, 
लेकिन मुझे  अपने फैसले पर किसी तरह की शर्म या पछतावा नहीं है।
 
 

वह 1950 का दौर था। जसविंदर के पिता काम की तलाश में ब्रिटेन आए और यहीं बस गए। परिवार ब्रिटेन के डर्बी इलाके में रहने लगा। यहीं जसविंदर का जन्म हुआ। मम्मी-पापा को हमेशा अपनी पांच बेटियों की चिंता रहती थी। वे जल्द से जल्द उनकी शादी करके जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते थी। बड़ी तीन बेटियों की शादी 14 या 15 साल की उम्र में करा दी गई थी। अब जसविंदर की बारी थी।

बेटियों को मायके में ससुराल की शिकायत करने की इजाजत नहीं थी। जब भी वे सास-ससुर के जुल्म या पति की शिकायत करतीं, तो उन्हें सलाह दी जाती कि वे हर हाल में ससुरालवालों को खुश रखें। मायके में तो बस वे मेहमान हैं। यह सुनकर बेटियां चुप रह जातीं। मगर जसविंदर का मिजाज जुदा था। बहनों की तरह चुप रहकर दर्द सहना उनके स्वभाव में नहीं था। वह पढ़-लिखकर एक स्वतंत्र जिंदगी जीना चाहती थीं।
उस समय वह 15 साल की थीं। एक दिन मां उन्हें बड़े प्यार से अपने कमरे में ले गईं। एक लड़के की फोटो दिखाते हुए कहा कि हमने यह लड़का पसंद किया है। इससे तुम्हारी शादी होगी। यह सुनते ही जसविंदर चीखीं, मैं नहीं करूंगी शादी। अब मां का लहजा सख्त हो गया। उन्होंने कहा, शादी तो करनी होगी। जब मैं तुम्हारी उम्र की थी, तो मेरी भी शादी हो गई थी। मगर बेटी अड़ गई, नहीं करूंगी शादी, चाहे जो हो जाए।
 अगले दिन से जसविंदर का स्कूल जाना बंद हो गया। उन्हें एक कमरे में बंद कर दिया गया। मां ने साफ कह दिया, जब तक तुम शादी के लिए राजी नहीं हो जाती, इसी कमरे में कैद रहोगी। सुबह-शाम कमरे में खाना मिल जाता था और फिर दरवाजा बंद कर दिया जाता। करीब छह हफ्ते यूं ही बीत गए। जसविंदर मौके की तलाश में थीं।
एक दिन कमरे की खिड़की खुली रह गई। रात के समय वह चुपके से भाग निकलीं। जाने से पहले पापा के नाम खत लिखा, मैं आपसे बहुत प्यार करती हूं, पर मैं वैसी बेटी नहीं बन सकती, जैसा आप मुङो बनाना चाहते हैं।घर से निकलने के बाद उन्होंने कुछ रातें पार्क की बेंच पर गुजारीं। इसके बाद स्कूल के दोस्त जेसी से मदद मांगी और उसके परिवार के साथ रहने लगीं।
जसविंदर बताती हैं, जेसी का परिवार खुले विचारों का था। उन्होंने मुझे  बहुत प्यार दिया। सोचती थी कि काश, मेरे परिवार के लोग भी ऐसे होते। इधर घर में हंगामा मच गया। बेटी के गायब होने की रिपोर्ट दर्ज कराई गई। पुलिस ने जल्द ही उन्हें खोज लिया। उन्होंने पुलिसवाले से कहा, मुझे   घर मत भेजिए। मम्मी-पापा मेरी जबरदस्ती शादी करवा देंगे।
 पुलिस वालों ने कहा, हम तुम्हें घर नहीं भेजेंगे, मगर तुम्हें घर पर फोन करके बताना होगा कि तुम सुरक्षित हो। जसविंदर बताती हैं- मम्मी ने फोन उठाया। मैंने सोचा कि वह कहेंगी, बेटी घर लौट आओ, पर उन्होंने कहा कि तुमने हमारी पंसद के लड़के से शादी न की, तो हम मान लेंगे कि तुम मर गई हो।मां की बात सुनने के बाद उन्होंने तय कर लिया कि चाहे जो हो जाए, अब घर नहीं लौटूंगी। रिश्तेदारी में खूब बदनामी हुई। लोग पिता को ताना मारने लगे कि इनकी बेटी भाग गई है। मजबूरी में परिवार ने जसविंदर की छोटी बहन से उस लड़के की शादी करा दी।
 उधर भागी हुई बेटी को परिवार की याद सताने लगी। कई बार वह चुपके से घर के बाहर आकर परिवार के लोगों को देखती। जसविंदर बताती हैं, मैं पापा को घर से बाहर जाते देखती, तो मन रो पड़ता। भाई-बहनों को देखती, तो मन करता कि उनके गले लग जाऊं। मगर हिम्मत नहीं पड़ी।
 इस बीच खबर मिली कि बड़ी बहन रोबिना ने आग लगाकर आत्महत्या कर ली है। यह सुनकर वह खूब रोईं। वह पहले से जानती थीं कि बहन को ससुराल में काफी सताया जा रहा था। एक बार जब रोबिना ने मां-पापा को बताया कि पति बहुत पीटता है, तो मां ने उससे कहा था कि ससुराल छोड़कर मत आना। बदनामी होगी।बहन के अंतिम संस्कार में जसविंदर घर तो पहुंचीं, पर किसी ने उनसे बात नहीं की। कहा गया कि दोबारा कभी मत आना। परिवार वालों को लगता था कि जसविंदर की वजह से उनकी काफी बदनामी हुई है। परिवार से उनकी दूरी बढ़ती गई।
 वह पढ़ाई के साथ नए मिशन से जुड़ गईं। उन्होंने कर्म निर्वाण नाम की संस्था बनाई। यह संस्था वैवाहिक उत्पीड़न व जबरदस्ती शादी के शिकार बने लोगों की मदद करती है। उन्होंने हजारों महिलाओं को उत्पीड़न से बचाया।
वर्ष 2007 में उन्हें सबसे प्रतिष्ठित महिला होने का खिताब मिला। 2009 में आई उनकी किताब डॉटर्स ऑफ शेम को बहुत पसंद किया गया। इस किताब में इज्जत के नाम पर बेटियों के संग होने वाले जुल्म को बयां किया गया है। 2009 में उन्हें द प्राइड ऑफ ब्रिटेन अवॉर्ड मिला।
 2013 में कमांडर ऑफ ब्रिटिश एम्पायर का सम्मान मिला। जसविंदर कहती हैं, मैं आज दो बेटियों की मां हूं। मैंने उन्हें पढ़ने और जीने की पूरी आजादी दी है। मैं खुश हूं कि मैंने बेटियों पर जुल्म करने वाली परंपरा को तोड़ने की हिम्मत दिखाई।
साभार – हिंदुस्तान अख़बार

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